नशा-छुड़ाऊ गोलियों का दुरुपयोग

पंजाब में नशे का अभ्यस्त हो चुके युवाओं को, नशा-छुड़ाओ केन्द्रों में दी जाती गोली ने समाज और प्रशासन के समक्ष एक नई बड़ी समस्या पैदा कर दी है। इस समस्या ने जहां प्रदेश के लिए एक नई चुनौती ला खड़ी की है, वहीं प्रदेश में खुम्बों की भांति गांवों-शहरों में उभरते नशा छुड़ाओ केन्द्रों की स्याह पृष्ठ-भूमि की तस्वीर भी खोल कर रख दी है। इस स्थिति का एक त्रासद पक्ष यह है कि सरकार ने प्रदेश से नशे की अलामत को जड़ से खत्म करने के दावे के साथ ‘युद्ध नशे विरुद्ध’ शीर्षक तले एक व्यापक अभियान शुरू कर रखा है। इसके बावजूद प्रदेश में नशे के प्रसार की खबरें व्यापक स्तर पर मिलती रहती हैं। पंजाब में कुल 554 नशा छुड़ाओ केन्द्र हैं। इन केन्द्रों में तीन लाख से अधिक नशे के रोगी भर्ती होने का आंकड़ा सरकारी तौर पर अधिकृत किया गया है, और इन कर्मचारियों को दवा के तौर पर दी जाने वाली गोलियों की संख्या मासिक 91 लाख तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा उन नशा छुड़ाओ केन्द्रों के मरीज़ों का है जो सरकार की छत्र-छाया अथवा उसकी मंजूरी से चलाये जा रहे केन्द्रों में भर्ती हुए हैं। इनके अतिरिक्त भी सैकड़ों ऐसे केन्द्र हैं जो सरकार की नज़रों से छिप कर अथवा धर्म-कर्म की आड़ में चलाये जा रहे हैं। इन अवैध केन्द्रों में भी हज़ारों मरीज़ भर्ती होते हैं और उन्हें भी नशे से मुक्ति दिलाने के लिए ये नशा छुड़ाऊ गोलियां दी जाती हैं। अन्तर केवल यह है कि अवैध केन्द्रों के मरीज़ों को दी जाने वाली गोलियों के लिए मरीज़ों के अभिभावकों से बाकायदा कीमत के रूप में भारी धन-राशि ली जाती है। समस्या यहां यह भी हो जाती है कि बदनामी से बचने के लिए इन केन्द्रों में अपने बच्चों को लाने वाले अभिभावक कहीं शिकायत भी नहीं करते, अथवा नहीं कर पाते।
 सरकार की ओर से ‘युद्ध नशे के विरुद्ध’ अभियान के तहत नशे के तस्करों, कारोबारियों और नशेड़ियों के विरुद्ध बरती जा रही सख्ती और व्यवस्था सही करने के नाम पर एक ओर जहां इन केन्द्रों की संख्या बढ़ी है, वहीं इनके भीतर उपयोग में लाई जाने वाली गोलियों की मांग भी निरन्तर बढ़ती जा रही है। स्थिति की गम्भीरता को इस तरह भी समझा जा सकता है कि विगत पांच मास में ऐसी गोलियों की मांग अतिरिक्त तीन लाख तक बढ़ी है। ऐसी नशा-छुड़ाऊ गोलियां चार-पांच नामों तले बिकती हैं जिनमें एक बुप्रोनौरफिन सरकारी केन्द्रों में मुफ्त प्रदान की जाती है, लेकिन प्रशासनिक दुरावस्था के तले होता यह है कि एक ओर जहां ये गोलियां अवैध रूप से चल रहे निजी और ़गैर-मान्यता प्राप्त केन्द्रों में पहुंच जाती हैं, वहीं सरकार को नित्य-प्रति इनकी खरीद मात्रा बढ़ानी पड़ती है।  निजी केन्द्रों में मुफ्त की ये गोलियां कीमत ले कर दी जाती हैं। इस प्रकार ऐसी गोलियों का आदान-प्रदान बाकायदा काला-बाज़ारी का एक कारोबार बन कर रह गया है। दूसरी ओर नशा छोड़ने वाले संदिग्ध मरीज़ इस गोली के एक नये नशे का शिकार भी होते जा रहे हैं।
पंजाब सरकार को बेशक नशे के सेवन और इसकी तस्करी की समस्या विगत सरकारों की ओर से विरासत में मिली हो किन्तु इस सरकार के पिछले तीन वर्षों के शासन काल में इस समस्या में प्रत्येक पक्ष से निरन्तर इज़ाफा हुआ है। वर्ष 2022 में इस सरकार के सत्ता सम्भालते समय नशे का सेवन करने वालों की घोषित संख्या 1.05 लाख थी जो वर्ष 2025 के जनवरी मास तक तीन लाख से ऊपर हो गई है। पंजाब सरकार द्वारा ‘युद्ध नशे विरुद्ध’ अभियान शुरू किए जाने के बाद से ही, कुछ ही महीनों में यह संख्या 75 हज़ार तक बढ़ गई है। प्रदेश के कुल सरकारी पंजीकृत नशा-छुड़ाओ केन्द्रों की संख्या 36 है जबकि ़गैर-सरकारी केन्द्रों की संख्या 177 है। पुनर्वास केन्द्रों में भी ऐसे मरीज़ों का उपचार किया जाता है। ऐसे केन्द्रों की संख्या भी सरकारी तौर पर 19 और ़गैर-सरकारी धरातल पर इनकी तादाद 72 है। नशा छुड़ाओ केन्द्रों में भर्ती मरीज़ों की संख्या भी 600 से बढ़ कर 2300 हो गई है। 42 नर्सिंग कालेजों और लगभग एक दर्जन निजी अस्पतालों में भी नशा छुड़ाओ केन्द्र खोले गए हैं। सभी केन्द्रों में 5000 नये बिस्तरों की व्यवस्था बढ़ाई भी गई है।
इस सब के दृष्टिगत यह अवश्य प्रतीत होता है कि पंजाब में नशे का सेवन करने वालों की संख्या बढ़ी है, और इस कारण नशे के कारोबार में निरन्तर वृद्धि भी हुई है, और होती भी जा रही है। हम सरकार की नीयत पर शक तो नहीं करते, किन्तु सरकार और नशे के मरीज़ों के बीच प्रशासनिक धरातल पर कोई पुल आज तक क्यों बन नहीं पाया, यह कभी समझ नहीं आया। सम्पर्क की डोर कहां से टूट जाती है, यह भी कभी समझा नहीं जा सका। प्राइवेट धरातल पर वैध-अवैध तरीके से उग आए ऐसे नशा-छुड़ाओ केन्द्र स्थितियों के बिगाड़ का कारण ही बन रहे हैं। ऐसे केन्द्रों में मरीज़ों के अभिभावकों से भारी-भरकम धन-राशि फीस और दवाओं के नाम पर ली जाती है। अपने इस कारोबार को चलाये रखने के लिए वहां पर मरीज़ों का उत्पीड़न किया जाता है। उनसे मार-पीट की जाती है, और मरीज़ भाग न जाएं, इसलिए कहीं-कहीं उन्हें ज़ंजीरों आदि से बांध कर रखा जाता है, और उनसे बंधुआ मज़दूरी भी करवाई जाती है। कुल मिला कर हम समझते हैं कि सरकार को यदि अपने इस नशा-विरोधी अभियान को सफल बनाना है, तो सर्वप्रथम अपने प्रशासन को प्रत्येक धरातल पर चुस्त-दुरुस्त बनाना होगा। प्रशासन में प्रत्येक अवसर की भांति, आज भी सब कुछ अच्छा नहीं है। कुछ तो अवश्य नया करना पड़ेगा। यह ‘नया’ जितना शीघ्र होगा, उतना ही इस प्रांत के लोगों, खासकर युवाओं और स्वयं सरकार के अपने हित में भी होगा।

# नशा-छुड़ाऊ गोलियों का दुरुपयोग