राहुल गांधी का हरियाणा दौरा-क्या कांग्रेस में गुटबाजी खत्म हो जाएगी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के हरियाणा दौरे का क्या असर रहेगा? यह सवाल उन लोगों का है, जो कांग्रेस को हरियाणा में मजबूत होते देखना चाहते हैं। सवाल यह भी है कि क्या राज्य इकाई के नेताओं पर राहुल गांधी की नसीहत का कोई असर पड़ेगा? क्या कांग्रेस हरियाणा में एकजुट हो पाएगी? राहुल गांधी के दिल्ली लौट जाने के बाद क्या पार्टी में गुटबाजी पहले की तरह ही कायम रहेगी? हो सकता है, जो लोग पार्टी में गुटबाजी खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं, उन्हें आने वाले दिनों में एक बार फिर निराश होना पड़े। इसकी वजह यही है कि बरसों से पार्टी जिस ढर्रे पर चलती आ रही है, वहां एक झटके में सब ठीक होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। अगर ऐसा हो जाए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। जहां बरसों से मठाधीशी चल रही हो, वहां क्या अचानक चमत्कार की कोई संभावना हो सकती है ? अक्सर देखा गया है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में सब एक सुर में बोलते हैं और जैसे ही नसीहत देने वाले नेता दिल्ली पहुंचते हैं, राज्य इकाई के नेता फिर से अपनी अपनी गोटियां फिट करने में जुट जाते हैं। क्या हरियाणा में एक बार फिर ऐसा ही देखने को मिलेगा? थोड़ा इंतजार कीजिए, सब सामने आ जाएगा।
यह कैसी व्यवस्था?
राजनीति में हार-जीत चलती रहती है। कभी लोगों की नाराजगी किसी पार्टी को सत्ता से बाहर कर देती है, तो कभी किसी पार्टी का बेहतर चुनाव प्रबंधन उसे सत्ता में ले आता है, लेकिन हरियाणा में ऐसा नहीं हुआ। जब लोगों ने मान लिया था कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन सकती है, लेकिन नहीं बनी। तमाम सर्वे गलत साबित हो गए। लोग हैरान थे कि यह कैसे हो गया, लेकिन हकीकत यही है कि भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बना ली। कारण जो भी रहे हों, सच तो यही है कि सत्ता की चौखट पर खड़ी होने के बावजूद कांग्रेस लुढ़क गई। क्या कांग्रेस ने इस हार से कोई सबक सीखा है? ऐसा लगता तो नहीं है। हरियाणा में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेते हुए किसी ने भी अपने इस्तीफे की आज तक कोई पेशकश नहीं की, न पार्टी आलाकमान ने किसी के खिलाफ कोई एक्शन लिया है। फिर पार्टी का कोई नेता क्यों किसी बात को गंभीरता से लेगा? लोग देख रहे हैं कि न पार्टी आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष बदला और न विधायक दल के नेता के चयन की दिशा में कोई कदम उठाए गए। पार्टी में सब वैसे ही चल रहा है, जैसे पहले चल रहा था। कांग्रेसी यह जानते हैं कि पिछले ग्यारह साल से पार्टी की जिला इकाइयों का गठन नहीं हो पाया है और कब तक होगा, कोई दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता। मतलब यही कि जब किसी भी मसले को लेकर पार्टी गंभीर ही नहीं है तो लोग कांग्रेस के प्रति कैसे गंभीर हो सकते हैं।
नायब के नायाब दौरे
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने जब से राज्य की बागडोर संभाली है, चंडीगढ़ में कम और दौरे पर ज्यादा रहे हैं। सीएम सैनी हरियाणा का ऐसे दौरा कर रहे हैं, जैसे निकट भविष्य में कोई चुनाव होने वाले हों, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में अभी कोई चुनाव नहीं है। फिर मुख्यमंत्री सुबह पंचकूला में तो शाम को फरीदाबाद में क्यों दिखाई देते हैं ? सैनी अगर सुबह का नाश्ता सिरसा में करते हैं तो रात का खाना महेंद्रगढ़ में खा रहे होते हैं। आए दिन उनका दिल्ली चक्कर लगता रहता है। लोगों का ऐसा मानना रहा है कि भाजपा शहरी क्षेत्रों की पार्टी है और ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी पैठ कम है, लेकिन तीसरी बार हरियाणा में सरकार बना कर भाजपा ने इस धारणा को गलत साबित कर दिखाया है। सवाल है कि सत्ता हासिल करने के बाद भी मुख्यमंत्री सैनी क्यों लगातार इस तरह भागदौड़ रहे हैं? दरअसल, भाजपा की फितरत यही है कि चाहे मुख्यमंत्री हो, चाहे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष। हर किसी को हमेशा व्यस्त रखना है। सच भी यही है कि वही पार्टी मजबूत होगी, जिसके नेता हर समय लोगों के बीच में रहेंगे। यही वजह है कि कांग्रेस नेता सत्ता में नहीं होने के बावजूद आराम से बैठे हैं और भाजपाई सत्ता में होने के बाद भी लगातार गली-गली घूम रहे हैं।
कौन होगा भाजपा अध्यक्ष?
क्या मोहन लाल कौशिक को फिर से भाजपा की हरियाणा इकाई की कमान सौंपी जा सकती है? फैसला लगातार टल रहा है। पार्टी को भी कोई जल्दी नहीं है। माना जा रहा है कि यह फैसला अब तक हो गया होता, अगर कौशिक गंभीर आरोपों के घेरे में नहीं फंसते। इस मामले में क्या सच है और क्या झूठ, इसका फैसला तो अदालत से ही होना है। भाजपा के बारे में माना जाता है कि पार्टी कांग्रेस की तरह गुटबाजी में नहीं फंसी है। भाजपा में पार्टी सबसे पहले का सिद्धांत लागू होता है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं मायने नहीं रखतीं लेकिन जब कौशिक आरोपों के घेरे में आए तो यही कहा गया कि यह सब उन लोगों की तरफ से रचा गया षड्यंत्र था, जो नहीं चाहते कि उन्हें फिर से हरियाणा भाजपा की कमान सौंपी जाए। इसके यही अर्थ लगाए गए कि अंदरखाते भाजपा के भीतर भी ऐसे लोग हैं जो चरित्र हनन की राजनीति करने से नहीं चूकते। जो भी हो, भाजपा आलाकमान से कुछ भी छुपा नहीं है। कौन दूध का धुला है और कौन किस के खिलाफ कैसी चाल चल रहा है, तमाम रिपोर्ट ऊपर तक पहुंचती हैं। पार्टी नफे नुकसान के आकलन के बाद ही कोई फैसला लेती है। ऐसे में पंडित मोहन लाल कौशिक की हरियाणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर फिर से ताजपोशी हो पाएगी या नहीं, यह जानने के लिए लोगों के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को भी थोड़ा इंतजार तो करना पड़ेगा।
नए जिले कब तक?
हरियाणा में नए जिले कब तक बनेंगे, यह कैबिनेट मंत्री कृष्ण लाल पवार की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक ही कोई फैसला लिया जाएगा। लेकिन कमेटी की रिपोर्ट कब तक आएगी, यह सिर्फ पवार ही जानते हैं। माना जा रहा है कि जब तक जातीय जनगणना की रिपोर्ट नहीं आ जाती, हरियाणा में नए जिलों के गठन का मामला लटका रहेगा। इस दौरान पवार कमेटी की बैठकें होती रहेंगी। जिलों के गांवों और आबादी के मुद्दे पर विचार- विमर्श चलता रहेगा। नए बनने वाले जिलों में गांवों की इधर से उधर अदला बदली पर चर्चा होती रहेगी, लेकिन अंतिम निर्णय लेने में अभी समय लगेगा। भाजपा सरकार इसमें अपने राजनीतिक नफे नुकसान को ध्यान में रखते हुए ही कोई फैसला करेगी। हरियाणा में इस समय 22 जिले हैं। पांच और नए जिले बनाए जाने की संभावना है। इसमें कोई शक नहीं कि जिले क्षेत्रफल के हिसाब से छोटे हों तो विकास की गति उतनी ही तेज होगी। दूसरे राज्यों की तुलना में हरियाणा पहले ही काफी आगे है। नए जिलों के गठन के बाद विकास की रफ़्तार में और तेजी आएगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अब लोग पवार कमेटी की सिफारिशों के इंतजार में हैं।
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