श्रम की जंजीरों में जकड़ा बचपन

बाल श्रम आज भी विश्व के लिए एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण सामाजिक समस्या बनी हुई है, जो केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं है बल्कि विकसित राष्ट्रों में भी अलग-अलग रूपों में मौजूद है। यह केवल एक सामाजिक बुराई नहीं बल्कि करोड़ों बच्चों के बचपन, शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य को निगलने वाली वह वैश्विक त्रासदी है, जिसने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों की गंभीरता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। वर्ष 2025 में बाल श्रम निषेध दिवस की थीम ‘प्रगति स्पष्ट है लेकिन अभी और काम किया जाना बाकी है : आइए प्रयासों में तेजी लाएं!’ केवल एक संदेश नहीं बल्कि धरातल पर मौजूद सच्चाई का आईना है, जो दर्शाता है कि अभी भी बाल श्रम के खिलाफ युद्ध अधूरा है। 
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार आज भी विश्वभर में लगभग 16 करोड़ बच्चे किसी न किसी रूप में श्रम में संलिप्त हैं। इनमें से करीब 8.9 करोड़ बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, जैसे खदानों में उत्खनन, निर्माण कार्य, कीटनाशक युक्त कृषि, कचरा बीनना, घरेलू श्रम और औद्योगिक इकाइयों में जोखिम भरे कार्य। यह आंकड़ा केवल एक संख्यात्मक विवरण नहीं बल्कि उन मासूम जिंदगियों की गाथा है, जिन्हें शिक्षा और बचपन की रोशनी से वंचित कर कठोर श्रम के अंधकार में धकेल दिया गया है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इन बाल श्रमिकों में सबसे बड़ी संख्या 5 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों की है। इन मासूमों के लिए स्कूल की बजाय कारखाने, ईंट भट्टे या खेत उनके जीवन का हिस्सा बन चुके हैं।
यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में लगभग 13 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो विद्यालय नहीं जा पा रहे हैं और जिनमें से लाखों श्रम कार्यों में जबरन झोंक दिए गए हैं। यह आंकड़ा बताता है कि बच्चों का शिक्षा से वंचित रहना बालश्रम का प्रमुख कारण है। गरीबी, सामाजिक असमानता, जातिगत भेदभाव, युद्ध, आंतरिक विस्थापन, अनाथावस्था और शिक्षा तक पहुंच की कमी जैसे अनेक कारक बालश्रम को जन्म देते हैं। विशेष रूप से अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमरीका के अनेक देशों में यह समस्या भयावह रूप में मौजूद है। अकेले अफ्रीका में लगभग 8 करोड़ बच्चे बालश्रम में संलिप्त हैं, जो कि वैश्विक आंकड़े का आधे से भी अधिक हिस्सा है। पश्चिम अफ्रीका के देशों में कोको और कपास की खेती में, मध्य अफ्रीका में खनन उद्योग में और पूर्वी अफ्रीका में घरेलू नौकरियों में बच्चों का बड़े पैमाने पर शोषण हो रहा है। वहीं लैटिन अमरीका में कॉफी, तंबाकू और गन्ने के खेतों में बालश्रम व्यापक है। मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में टेक्सटाइल और रग उद्योग में बच्चों का शोषण एक खुला रहस्य है। एक ताजा अध्ययन के अनुसार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल और भारत जैसे देशों में बालश्रम का प्रतिशत वैश्विक औसत से कहीं अधिक है, जहां संगठित अपराध और बाल तस्करी का नेटवर्क इन बच्चों को कठोर कार्यों में जबरन धकेल देता है। भारत के संदर्भ में, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 5 से 14 वर्ष के 25.96 करोड़ बच्चों में से 1.01 करोड़ बालश्रम में संलिप्त थे। हालांकि सरकारी रिपोर्टों के अनुसार 2025 में यह संख्या घटकर लगभग 80 लाख तक आ गई है लेकिन कई संगठनों का मानना है कि भारत में वास्तविक संख्या अभी भी एक करोड़ से अधिक हो सकती है। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक बच्चे ग्रामीण इलाकों से आते हैं और खेती, खनन, ईंट भट्टा, कालीन निर्माण, ढाबों, घरेलू नौकरियों, बाल यौन शोषण और कचरा बीनने जैसे कामों में लगे हैं। 
बालश्रम से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की बात करें तो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले बच्चों में टीबी, दमा, कुपोषण, रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारियां, श्वसन रोग, त्वचा रोग, नेत्र विकार, मांसपेशियों से जुड़ी समस्याएं और अत्यधिक मानसिक तनाव आम हैं। कई बच्चे तो समय से पहले विकलांग या मृत भी हो जाते हैं। भारत में बालश्रम को रोकने के लिए बालश्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 लागू है। वर्ष 2006 में हुए संशोधन के तहत होटल, ढाबे, घरेलू कार्य और मनोरंजन उद्योगों में बच्चों से काम कराना दंडनीय अपराध घोषित किया गया। 2009 में लागू किए गए ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ ने 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित की, जो बालश्रम को रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम था परंतु कानूनों की सही निगरानी और कड़ाई से पालन न होने के कारण बालश्रम अभी भी फल-फूल रहा है। भारत में बालश्रम की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पाई जाती है, जिनमें अकेले इन पांच राज्यों में 55 प्रतिशत से अधिक बाल मजदूर हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत वर्ष 2025 तक दुनिया से बालश्रम को समाप्त करने का लक्ष्य तय किया गया है परंतु अभी तक की स्थिति दर्शाती है कि यह लक्ष्य अभी दूर है। बालश्रम के खिलाफ प्रभावी लड़ाई के लिए केवल नीतियां नहीं बल्कि जमीन पर उनके क्रियान्वयन की पारदर्शिता और समर्पण आवश्यक है।

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