‘लैंड पूलिंग’ योजना संबंधी पुन: विचार करे सरकार
हर सोच में संगीन ़फज़ाओं का ़फसाना,
हर िफक्र में शामिल हुआ तहरीर का मातम।
‘करामात’ बुखारी का यह शे’अर मुझे पंजाब में लाई गई नई लैंड पूलिंग नीति के बारे सेचते हुए याद आया। वास्तव में हम यह मान कर चलते हैं कि पंजाब सरकार की नीयत में कोई खोट नहीं होगा। सरकार ने यह फैसला पंजाब के विकास के लिए ही लिया होगा, परन्तु जिस प्रकार की चिन्ताएं इस नीति के सम्भावित नुकसान के बारे प्रकट की जा रही हैं, उन्हें देखते हुए हम पंजाब सरकार को यह अवश्य कहेंगे कि इस नीति के लाभ-हानि तथा इसकी त्रुटियों के बारे में एक बार फिर से गहन विचार-विमर्श किया जाए। एक ओर इसकी त्रुटियां दूर की जाएं और दूसरी ओर इस बारे उठ रहे आशंकाओं के स्पष्ट जवाब भी दिए जाएं। गौरतलब है कि जो आंकड़े हमारे पास पहुंचे हैं, उनके अनुसार इससे पंजाब में लगभग 44000 एकड़ कृषि योग्य भूमि शहरीकरण के अधीन आ जाएगी।
पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा का यह बयान बहुत आकर्षक लगता है कि इस नीति के अधीन यदि भूमि की मौजूदा कीमत लगभग 1 करोड़ रुपये बनती है, तो किसान को इससे 4 गुणा अभिप्राय 4.2 करोड़ रुपये का लाभ होगा। बेशक सरकार की सोच है कि इस प्रकार शहरीकरण नियमबद्ध होगा और इससे अवैध कालोनियों का निर्माण रुक जाएगा, परन्तु सोचने वाली बात तो यह भी है कि अवैध कालोनियों में मकान या प्लाट अक्सर वे लोग ही लेते हैं जो नियमित कालोनियों में महंगे प्लाट खरीदे में समर्थ नहीं होते। उदाहरण के तौर पर मेरे शहर की एक बड़ी विकसित कालोनी में प्रति गज़ ज़मीन की कीमत 40 से 60 हज़ार रुपये है जबकि अवैध कालोनी में कीमत 3 से 5 हज़ार रुपये प्रति गज है। इसलिए ये नई विकसित कालोनियां अवैध कालोनियों का समाधान नहीं हो सकतीं क्योंकि इतने महंगे प्लाट गरीब लोगों के सामर्थ्य से बाहर ही रहेंगे।
दूसरा विचार करने योग्य पहलू यह है कि हम पंजाब का शहरीकरण करने की प्रवृत्ति को और उभार रहे हैं जबकि पहले ही नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश की शहरी आबादी की औसत जो 31 प्रतिशत के आस-पास है, से कहीं अधिक पंजाब की शहरी आबादी है। पंजाब में शहरी आबादी लगभग 42 प्रतिशत हो गई है।
बड़ी चिन्ता की बात यह भी है कि पंजाब में लगभग 80 प्रतिशत कृषि 5 एकड़ से कम भूमि है। किसान अपना गुज़ारा कठिनता से चला रहे हैं। इसलिए स्पष्ट है कि वे इस ज़मीन को स्वयं विकसित करने के समर्थ नहीं होंगे। इसलिए बड़े व्यापारिक घराने, कालोनाइज़र या डिवैल्पर ही यहां विकास करेंगे। इसके एवज़ में एक एकड़ के मालिक किसान को 1200 गज अर्थात 1000 गज रिहायशी तथा 200 गज़ कारोबारी प्लाट मिलेगा। स्पष्ट है कि किसान को उसकी ओर से दी गई ज़मीन का 25 प्रतिशत से भी कम हिस्सा विकसित हो कर मिलेगा। यह ज़मीन मालिक के ‘राइट टू फेयर कम्पनसेशन एंड ट्रांस्पेरैंसी लैंड एक्विज़ीशन एक्ट’ के अनुसार ठीक नहीं हो सकता। यहां उल्लेखनीय यह है कि पंजाब के शहरों में लगभग 20-22 प्रतिशत प्लाट अभी खाली पड़े हुए हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि यह ज़रूरी नहीं कि नई विकसित की गई सभी कालोनियां सफल हो जाएं और किसानों को उनके हिस्से आए 1000 वर्ग गज के रिहायशी तथा 200 गज़ के व्यापारिक प्लाट समय पर 4.2 करोड़ रुपये में बिक ही जाएंगे।
इस मामले में सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि यह योजना बेरोज़गारी बढ़ा सकती है और ज़मीन के मालिक किसानों को निराशा की ओर धकेल सकती है, क्योंकि इस ज़मीन पर विकास की कोई समय सीमा निश्चित नहीं है। 2 से 5 एकड़ के मालिक किसान जिनके पास कृषि बिना कोई अन्य रोज़गार नहीं है, वे क्या करेंगे? क्योंकि जब तक ज़मीन विकसित नहीं जो जाती, वे इस ज़मीन पर कृषि भी नहीं कर सकेंगे और अन्य कामों के लिए उन्हें पैसे भी नहीं मिलेंगे। उन्हें पैसे तो तभी मिल सकते हैं, जब ज़मीन विकसित होकर उन्हें उसके बदले प्लाट अलाट हो जाएं और वे उन प्लाटों को बेच लें। वैसे भी जब 4-5 वर्ष बाद उन्हें प्लाटों के पैसे मिलेंगे, शायद तब तक ज़मीन के दाम इतने बढ़ जाएं कि वे ज़मीन बदले ज़मीन खरीदने के ही समर्थ न रहेंगे। फिर बेरोज़गारी के दौर का कज़र् भी तो उनके सिर पर होगा।
उल्लेखनीय है कि यदि एक किसान की औसत ज़मीन 5 एकड़ ही गिन ली जाए तो लगभग 9 हज़ार लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। लगभग 44000 एकड़ ज़मीन कृषि में से कम हो जाने से पंजाब के कृषि उत्पादन में भी कमी आएगी और यह पंजाब की अर्थ-व्यवस्था के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगी। फिर इससे पंजाब में गैर-पंजाबियों की आबादी बढ़ने का भी खतरा है। पहले ही पंजाब की डेमोग्राफी (जनसंख्या) बदलती जा रही है। इसलिए सरकार को विनती है कि अभी यह नीति शुरुआती चरण पर है, इसलिए इस पर कृषि, आर्थिक व कानूनी विशेषज्ञों की समिति गठित करके पुनर्विचार किया जाए और इसमें आवश्यक बदलाव भी कर लिए जाएं। वैसे पंजाब की बेहतरी अंधाधुंध शहरीकरण में नहीं, अपितु पंजाब में कृषि आधारित उद्योग लगाने में होगी। हालांकि हमने यहां किसान संगठनों या विपक्षी दलों द्वारा लगाए जा रहे आरोपों का ज़िक्र बिल्कुल ही नहीं किया, परन्तु चलते-चलते लोगों की एक सोच का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि पंजाब सरकार भी उन प्रदेशों के लोगों को पंजाब में ज़मीन तथा प्लाट खरीदने तथा स्थायी रूप में बसने पर रोकने के प्रबंध करे, जिन प्रदेशों में पंजाबियों को ज़मीन या स्थायी बसने की कानूनी अनुमति नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि कल इन ज़मीनों के मालिक यह न सोचने पर मजबूर हो जाएं :
क्यों बे-़खता दी है सज़ा और कर दिया बर्बाद क्यों,
उ़फ क्या तुम्हारा रहम है चाहो कि हम फिर भी हंसें।
जुलाई के अंत में बनेगा नया अकाली दल
चाहे इस समय अकाली दल तथा 5 सदस्यीय समिति में समझौते की चर्चा चल रही है, परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार अभी समझौते के कोई आसार नहीं हैं। अधिक सम्भावना यह है कि 5 सदस्यीय समिति जुलाई के अंत में नई भर्ती के माध्यम से डैलीगेटों का महा-अधिवेशन बुला कर नया अध्यक्ष चुन लेगी। इस समय अध्यक्षता के लिए सबसे अधिक चर्चित नाम पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का है। हालांकि मुकाबले में शहीद भाई अमरीक सिंह की बेटी सतवंत कौर के नाम की चर्चा भी शीर्ष पर है। इनके अतिरिक्त सुरजीत सिंह रखड़ा, गुरप्रताप सिंह वडाला के नाम भी काफी चर्चा में हैं जबकि मनप्रीत सिंह इयाली बुज़ुर्ग नेता संता सिंह उमैदपुरी को अध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में बताए जा रहे हैं।
हमारी जानकारी के अनुसार इस सम्भावित नये अकाली दल का मुख्य लक्ष्य शिरोमणि कमेटी के चुनावों पर है, क्योंकि यह माना जाता है कि जो अकाली दल शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में जीत जाए, वह ही असली अकाली दल बन जाता है। हमारी जानकारी के अनुसार इस गुट की ओर से पूर्व जत्थेदार भाई रणजीत सिंह तथा अकाली दल (वारिस पंजाब) के साथ मिलकर संयुक्त रूप में शिरोमणि कमेटी के चुनाव लड़ने की सम्भावनाएं भी तलाश की जा रही हैं। चाहे अभी यह पता नहीं कि ये चुनाव कर होंगे।
अमरीका में तनाव व भारतीय
संभल के रहियेगा गुस्से में चल रही है हवा,
मिजाज़ गर्म है मौसम बदल रही है हवा।
यह शे’अर अमरीका के कैलीफोर्निया स्टेट तथा विशेषकर लॉस एंजिल्स क्षेत्र में रहते भारतीयों, पंजाबियों तथा सिखों को समर्पित है, क्योंकि चाहे अमरीका के दोबारा बने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कड़ी इमीग्रेशन नीतियों का शिकार भारतीय भी हैं, परन्तु इस लॉस एंजिल्स तथा कैलीफोर्निया में उनके मुख्य निशाने पर मैक्सिकन तथा लातीनी अमरीकी गैर-कानूनी प्रवासी ही दिखाई दे रहे हैं, परन्तु कैलीफोर्निया क्षेत्र में पंजाबियों की संख्या भी तो बहुत है। अमरीकी प्रशासन द्वारा शुरू की गई छापेमारी मुहिम तथा उसके विरोध में भड़की आग ने अमरीका के संघीय ढांचे की चूलों को हिलाना शुरू कर दिया है। कैलीफोर्निया के डैमोक्रेट गवर्नर गैविन न्यूमस ने कैलीफोर्निया में नैशनल गार्ड्स तथा मैरीन्स (सैनिकों) की तैनाती का विरोध ही नहीं किया, अपितु उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प पर ‘अराजकता पैदा करके अधिक नियंत्रण’ करने के यत्नों तक का आरोप लगा दिया है। जहां ट्रम्प ने इस विरोध को ‘ब़गावत’ करार दिया है, वहीं लॉस एंजिल्स की मेयर कैरेन बास ने यहां सैना की नियक्त को ‘भय तथा अराजकता’ पैदा करने वाली कहा है। कैलीफोर्निया ने ट्रम्प प्रशासन तथा संधीय कानून का उल्लंघन तथा राज्य की सत्ता का उल्लंघन करने का मुकद्दमा भी कर दिया है। इस स्थिति में भारतीयों तथा पंजाबियों को अवश्य यह चाहिए कि वे यहां किसी भी तरह की तोड़-फोड़ य हिंसक विरोध में शामिल न हों, विशेषकर पंजाबियों को ध्यान रखना चाहिए कि बाद में उनका बाजू किसी ने नहीं थामना।
-मो. 92168-60000