एसयू-57ई : भारत के लिए लाभदायक हो सकता है सौदा
पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर जेट एसयू 57ई विकसित करने के बाद रूस उसे किसी को बेच नहीं पा रहा इसलिये उसने भारत को अत्यंत लुभाऊ खरीदारी प्रस्ताव दिया है परन्तु रूस की चीन के साथ सांठगांठ और विमान में चीनी उपकरणों के इस्तेमाल जोखिम की आशंका पैदा करते हैं। ऐसे में इस शानदार प्रस्ताव को लेकर सरकार की दुविधा समझी जा सकती है। बेशक वह इस बावत सुविचारित और निरापद निर्णय लेगी।
रूसी लड़ाकू विमान एसयू-57ई स्टील्थ फाइटर जेट के सौदे की चर्चा अचानक तेज़ हो गई है। खबरों के ज़रिये ऐसी भावभूमि निर्मित की जा रही है कि भारतीय सेना और सरकार 2019 के अपने अनुभवों को दरकिनार कर, राजनीति, कूटनीति के तमाम किन्तु-परन्तु को परे रख रूसी प्रस्ताव को तकरीबन स्वीकार चुकी है। जल्द ही इस सौदे पर मुहर लगेगी। कुछ खबरों के जरिये जो वाकई तथ्यपरक हैं, इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है कि इस सौदे को शीघ्रातिशीघ्र हासिल कर लेना अत्यंत आवश्यक है।
पिछले दिनों की रॉफेल विमानों की खरीदारी के बावजूद और उसके नौसेना वाले संस्करण के इतने ही विमानों की खेप के लिये मंजूरी के बाद भी वायुसेना को तकरीबन दर्जन भर स्क्वाड्रन की कमी रहेगी, अभी 31 फाइटर और कॉम्बैट स्क्वाड्रन है, चाहिये 42 या उससे अधिक। लड़ाकू विमानों की कमी से पुरानी पड़ती भारतीय वायु सेना को नए आधुनिक तकनीक वाले कई विमान चाहिएं। स्क्वाड्रनों की संख्या पूरा करने का यही वक्त है। बीते दस बरसों में चीन ने अपनी सेना में 435 नए फाइटर और कॉम्बैट विमान शामिल किए तो पाकिस्तान ने 31 नए विमान खरीदे, जबकि यहां तमाम मिग समेत 150 से अधिक लड़ाकू विमान कम हो गए। पांचवी पीढ़ी के स्वदेशी विमानों की खेप जब 2035 के बाद आयेगी, फिर उसकी तैनाती तक इतना समय बीत चुका होगा कि तब तक छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान आम हो चुके होंगे। अत: पांचवी पीढ़ी के इस रूसी विमान का समावेश तत्काल ज़रूरी है।
चीन के पास पांचवी पीढ़ी के अत्याधुनिक विमान पहले से मौजूद हैं जबकि हमारे पास हद से हद साढ़े चार पीढ़ी वाले, हमें उसके मुकाबले में आना चाहिये, चीन अपनी पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट पाकिस्तान को दे रहा है ऐसे में उसकी मज़बूती बढ़ने का इंतज़ार करने से पहले हमें भी ऐसे उन्नत विमान खरीद ही लेने चाहिये। वायु सेना प्रमुख एयर मार्शल ए.पी. सिंह का कहना है कि वायु सेना से जुड़ी परियोजनाओं में लगातार देरी होती है और चाहे स्वदेशी विमान, हथियार हो या विदेशी खरीद उनकी देरी से उनकी क्षमता प्रभावित होती है। साफ है कि जल्द से जल्द हमें अपनी क्षमता को कम से कम आवश्यकतानुसार तो करनी ही होगी। ऐसे में पांचवी पीढ़ी के उन्नत फाइटर जेट की खरीदी लाजिमी है, रूसी एसयू-57ई कई नज़रिये से अमरीका के एफ -35 के सौदे से बेहतर है।
अब जबकि हालात यह है कि फ्र्रांस से खरीदे गए राफेल लड़ाकू विमानों का सोर्स कोड़ जो किसी हथियार प्रणाली का मूल सॉफ्टवेयर या प्रोग्रामिंग कोड होता है और उसी के जरिये कोई उन्नत फाइटर जेट, हथियार प्रणाली, मिसाइल या रडार नियंत्रित तथा चालित होता है, भारत को देने से निर्माता कंपनी ने मना कर दिया, तो यह दबाव बन रहा है कि जवाब में बाकी 26 राफेल विमानों के सौदे को ही निरस्त कर दिया जाए, यदि ऐसा वास्तव में होता है तो लड़ाकू विमानों का सौदा और भी तेज़ी से निबटाना आवश्यक हो जाता है। वैसे भी सरकार ने 20 अरब डॉलर खर्च कर 114 मल्टीरोल फाइटर जेट खरीदने का जो लक्ष्य रखा है उसको चरणबद्ध तरीके से पूरा करने के लिये फिलहाल अमरीका के एफ -35 या रूस के एसयू-57ई फाइटर जेट में से कोई एक या दोनों खरीदने होंगे या ्रिर इनके उचित विकल्प तलाशने होंगे। सारी बातें इस ओर ले जाती हैं कि भारत को वर्तमान अमरीकी रुख तथा भविष्य में आने वाली उसकी शर्तें, पाबंदियों एवं एफ-35 बनाने वाली मार्टिन लॉकहीड कंपनी के कायदे कानूनों की कठिनाइयों के मद्देनज़र हमें एसयू-57ई की ओर बढ़ना चाहिए।
नि:संदेह 100 प्रतिशत सोर्स कोड देने, भविष्य में एसयू-57ई को अपनी तरीके से बनाकर किसी और देश को बेचने का अधिकार देने वाला रूसी प्रस्ताव बहुत लुभाऊ है, परन्तु सरकार और सेना ने इसके बावजूद इस सौदे को अभी तक अपनी हरी झंडी, कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, उसका असमंजस बना हुआ है तो उसकी गहरी और ठोस वजहें हैं। उसके सामने जो सवाल हैं उसके संतोषजनक उत्तर उसे चाहिये। राफेल सौदे पर भी उठे सवाल बमुश्किल दबे थे, वह इस बार फुलप्रूफ फैसला ही लेगी। यह तय है कि प्रमुख बिंदुओं पर स्थिति साफ होने के बाद ही वह इस ओर बढ़ेगी, सरकार की यह समझदारी संभावित सौदे के प्रति सकारात्मक संकेत है।
बेशक रूस भारत को एसयू-57ई विमानों के सोर्स कोड दे रहा है, इससे भारत में इसके मन मुताबिक निर्माण, अपनी ज़रूरतों के मुताबिक फेरबदल करने, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें जो रॉफेल में नहीं लग सकतीं उन्हें लगाने के साथ अपने तमाम कलपुर्जे समायोजित करने की छूट दे रहा है, लेकिन इसके बावजूद आशंका निर्मूल नहीं कि हमें इसके कुछ समय तक इसके चीनी अवयवों के लिए बरास्ता रूस ही सही, चीन पर निर्भर रहना पड़े। चीन के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी और गहराते संबंध को देखते हुए रूस पर पूर्ण रणनीतिक भरोसे के बिना इस समझौते से फिलहाल कोताही बरतना ही ठीक रहेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर