रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम किया जाए

पिछली शताब्दी के छठे दशक में हरित क्रांति के बाद रासायनिक खादों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाना शुरू हुआ। उससे पहले किसान रूढ़ी खाद का इस्तेमाल करते थे। देश की बढ़ रही जनसंख्या के लिए अनाज पैदा करने की ज़रूरत थी और अमरीका से पी.एल.-480 अधीन अनाज की आमद बंद करनी ज़रूरी थी। रूढ़ी की खाद का प्रयोग निरन्तर कम होता गया और रासायनिक खादों का प्रयोग तेजी से बढ़ता गया। आज पंजाब में 228 किलोग्राम (तत्वों में) प्रति हैक्टेयर रासायनिक खादें फसलों में डाली जा रही हैं। कृषि और किसान कल्याण विभाग के निर्देशक डा. सुतंत्र कुमार ऐरी के अनुसार कृषि का फसली घनत्व 195 प्रतिशत तक पहुंचने से रासायनिक खादों के प्रयोग में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है। इससे फसलों में बीमारियां और हानिकारक कीड़ों के हमलों की अधिकता हो गई है, जिस कारण कीटनाशकों की खप्त भी पंजाब में बढ़ती जा रही है। आज किसान रासायनिक खादों की खपत अंधाधुंध बढ़ाते जा रहे हैं। कृषि सचिव स. काहन सिंह पन्नू ने यूरिया की खपत कम करने पर ज़ोर दिया है। वह किसानों को सलाह देते हैं कि भूमि की परख के आधार पर और पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी की सिफारिशों को मुख्य रखते हुए किसान मुख्य धान और गेहूं की फसलों में 2 यूरिया के थैलों से अधिक न डालें। इसी तरह आई.सी.ए.आर. (इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट) के डायरैक्टर डा. अशोक कुमार सिंह ने किसानों, जिनकी फसल बे-मौसमी बारिश के कारण गिर गई है, को अधिक यूरिया डालने से वर्जित किया है। आज ज़रूरत है बॉयो खादों, हरित खाद ब्लू ग्रीन ऐलकी, नील रहित काई तथा वर्मीकम्पोस्ट जैसी ़गैर-रासायनिक खादों का इस्तेमाल करके पैदावार बढ़ाने की। भारत में बहुत कम रकबा है, जहां जैविक कृषि की जाती है। ऐसी स्थिति पंजाब की है। गेहूं काटने के बाद धान, बासमती और कपास जैसी खरीफ की फसलों की बिजाई तक जो समय होता है उसमें खरी खाद पैदा करके रासायनिक खादों का प्रयोग कम किया जा सकता है, जिससे भूमि की शक्ति में वृद्धि होती है। कुछ वर्ष पूर्व पंजाब सरकार द्वारा केन्द्र सरकार की योजना अधीन हरित खाद के लिए जंत्र का बीज़ 50 प्रतिशत सबसिडी पर किसानों को दिया जाता था, जो अब बंद कर दिया गया है। बारिश न होने के कारण और ट्यूबवैलों के लिए इस समय के दौरान नामात्र ही बिजली देने और नहरबंदी के तौर पर किसानों में भी हरित खाद के लिए उत्साह कम हो गया। चाहे हरित खाद के फायदे बहुत हैं, जैसे भूमि की निचली परतों से जड़ों द्वारा खाद्य तत्वों का ऊपर आना, कलराठी भूमि में कलर सुधारना, भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाना और हरित खाद के गलने-सड़ने से भूमि के तत्वों का घुलनशील बनकर पौधे की खुराक का हिस्सा बन जाना आदि। पहले देसी खादों का जो प्रयोग होता था, अब इनका प्रयोग बड़े स्तर पर होना तो सम्भव नहीं। परन्तु फिर भी किसान ब्लू ग्रीन ऐलगी, वर्मीकम्पोस्ट जैसी ़गैर-रासायनिक खादों का प्रयोग करके रासायनिक खादों की खपत कम कर सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन ़गैर-रासायनिक खादों की खपत से दाने का आकार और वज़न बढ़ता है। सब्ज़ियों की गुणवत्ता में सुधार आता है। इन खादों के प्रयोग से एक अनुमान के अनुसार यूरिया की 40 किलो प्रति हैक्टेयर की बचत कर सकते हैं। रासायानिक खादों का प्रयोग कम करने के लिए किसान गोबर से वर्मीकम्पोस्ट बनाकर भी प्रयोग कर सकते हैं। इसमें रसोई में इस्तेमाल की गई सब्ज़ियों के अवशेष, गोबर आदि को प्रयोग किया जा सकता है। वर्मीकम्पोस्ट में खास तरह के गंडोये इस्तेमाल किये जाते हैं, बारिश में निकलने वाले गंडोये नहीं। वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए ताजा गोबर पर 8-10 दिन पानी डाल कर ठंडा करके वर्मीकम्पोस्टिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्मीकम्पोस्ट मिट्टी के खारे अंग को सही बना कर पौधों के विकास के लिए सभी तत्व उपलब्ध करता है। जबकि रासायनिक खादें सिर्फ एक या दो तत्व ही उपलब्ध करती है। खऱीफ की बिजाई आ रही है, बासमती की काश्त के लिए रासायनिक खादों की ज़रूरत बहुत कम है। किसान वर्मीकम्पोस्ट ब्लू ग्रीन और ऐज़टोबैक्टर जैसी खाद विशेषज्ञों की राय से इस्तेमाल करके बासमती की रासायनिक रहित फसल पैदा करके अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू मंडी में महंगे मूल्य पर बेच कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।