कोविड-19 : डर के साये में ट्रेनिंग

हांलांकि लॉकडाऊन 4.0 में स्पोर्ट्स फेसीलिटीज को खोल दिया गया है, लेकिन भारत में खेल प्राधिकरणों के समक्ष बड़ी चुनौती यह है कि मैदान में सुरक्षित ट्रेनिंग गतिविधियां कैसे सुनिश्चित की जायें। अधिक जटिल बाधा हाई-रिस्क कांटेक्ट स्पोर्ट्स में है, जैसे कुश्ती, मुक्केबाजी, जूडो व टायक्वैंडो। इनके खिलाड़ियों को वायरस से सुरक्षित कैसे रखा जाये?पहले यह जान लेते हैं कि इस संदर्भ में खिलाड़ी, कोच व खेल प्रशासकों का क्या कहना है। कुश्ती तो अब शायद पहले जैसी कभी नहीं हो पायेगी। उसे अपने पैरों पर आने में कम से कम एक साल लगेगा। कुश्ती का सबसे महत्वपूर्ण पहलू स्पार्रिंग है और उसी में ही संक्रमित होने की आशंका सबसे अधिक है। ग्रिपलिंग के बिना कुश्ती हो ही नहीं सकती। कुश्ती में शारीरिक स्पर्श से बचना असंभव है। तो कुश्ती जैसे कांटेक्ट स्पोर्ट्स को शुरू करने का अर्थ ही क्या है जब स्पार्रिंग या एक-दूसरे को पकड़कर दांव लगाये ही नहीं जा सकते? दो बार ओलंपिक पदक जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार का कहना है, ‘कैंप केवल उन्हीं खिलाड़ियों के लिए शुरू किया जाये जो ओलंपिक की तैयारी कर रहे हैं। कैंप में आने वाले हर खिलाड़ी, कोच व सपोर्ट स्टाफ  को क्वारंटाइन किया जाये। अधिकतर नामवर पहलवानों का अपना सपोर्ट स्टाफ है, इसलिए वह बाहरी हस्तक्षेप के बिना ट्रेनिंग कर सकते हैं। अगर कोई राष्ट्रीय कैंप की बजाय प्राइवेट ट्रेनिंग करना चाहता है तो उसे यह अनुमति दी जाये।’ लगभग यही विचार कुश्ती के जूनियर विश्व चैंपियन दीपक पुनिया के हैं। वह कहते हैं, ‘सभी पहलवानों के लिए कैंप खोलना घातक होगा। एक छोटी सी गलती और सब की जान खतरे में आ जायेगी। अगर हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना चाहते हैं तो छोटे ग्रुप से कैंप शुरू करना महत्वपूर्ण है और यह भी जरूरी है कि कैंप आरंभ करने से पहले हर किसी को क्वारंटाइन किया जाये।’
शायद इसलिए महिला कुश्ती टीम के कोच कृपा शंकर बिश्नोई कहते हैं, ‘मेरी अपनी आपत्तियां हैं और मेरा मानना है कि जब महामारी इतनी तेजी से फैल रही है तो इतनी जल्दी कैंप शुरू करना ठीक नहीं है। लेकिन अगर इसके बाद भी वह प्रक्रिया शुरू करना चाहते हैं तो मेरे तीन साधारण से सुझाव हैं- 1. सिर्फ श्रेष्ठ ओलंपिक खिलाड़ी ट्रेनिंग के लिए बुलाये जायें। 2. खिलाड़ियों से मेडिकल सर्टीफिकेट लिया जाये कि उन्हें कोविड-19 नहीं है। 3. किचन स्टाफ को क्वारंटाइन किया जाये और वह कैंप की पूर्ण अवधि के दौरान केंद्र पर ही रहे।’जबकि महिला बॉक्सिंग टीम के कोच रफेले बेर्गामास्को का कहना है, ‘सभी कांटेक्ट स्पोर्ट्स की तरह बॉक्सिंग भी वर्तमान स्थितियों के अनुरूप एडजस्ट करेगा। फिलहाल के लिए सम्मान करने हेतु नियम व फासले हैं। हम स्थिति का सम्मान करेंगे और टेक्निकल पहलू पर वर्क करेंगे, जिसमें कांटेक्ट की जरूरत नहीं होगी। स्किल सेट को फासले से भी बेहतर किया जा सकता है, मुक्केबाज से सम्पर्क में आये बिना।’ अब खेल प्रशासकों की राय भी जान लेते हैं। भारतीय कुश्ती संघ के महासचिव वीएन प्रसाद का कहना है, ’हम अपने पहलवानों के स्वास्थ्य व सुरक्षा को खतरे में नहीं डालना चाहते। एक जिम्मेदार फैडरेशन की तरह हम सरकार द्वारा जारी किये गये सुरक्षा दिशा-निर्देशों का पालन करेंगे।’ जबकि भारतीय बॉक्सिंग फैडरेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राजकुमार सचेति का कहना है, ‘हम जल्द ही सरकार से विचार-विमर्श करके ओलंपिक में जाने वाले अपने एलीट मुक्केबाजों के लिए राष्ट्रीय कैंप शुरू करेंगे। चूंकि खिलाड़ियों की सुरक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए हम निरंतर इस मुद्दे पर खिलाड़ियों, कोचों व सपोर्ट स्टाफ  से बात कर रहे हैं। हम रोहतक की राष्ट्रीय बॉक्सिंग अकादमी में कैंप शुरू करना चाहते हैं।’गौरतलब है कि राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण (साई) ने हाल ही में सभी खेलों के लिए ‘स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स’ (एसओपी) जारी किये थे जो लॉकडाउन के बाद साई ट्रेनिंग सैंटरों व नेशनल सैंटर ऑफ  एक्सीलेंस में लागू होने थे। अब चूंकि लॉकडाऊन 4.0 में ही खेल गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दे दी गई है, इसलिए यह एसओपी अभी से लागू हो जायेंगे। कांटेक्ट स्पोर्ट्स जैसे कुश्ती, बॉक्सिंग आदि के लिए एसओपी ये हैं कि व्यक्तिगत तौर पर ट्रेनिंग होगी बिना अन्य खिलाड़ियों से शारीरिक स्पर्श के, व्यक्तिगत उपकरण जैसे दस्ताने, फेस मास्क, माउथ गार्ड, हैलमेट, रिस्ट बैंड, हैड बैंड, ट्रेनिंग यूनिफार्म व शूज को शेयर नहीं किया जायेगा। लेकिन इसके बावजूद सभी खिलाड़ी जानते हैं कि कांटेक्ट स्पोर्ट्स में संक्रमित होने के खतरे बहुत अधिक हैं, खासकर कुश्ती व बॉक्सिंग में और इन्हीं में खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का झंडा ऊंचा करते हैं। अब तक टोक्यो ओलंपिक के लिए चार पहलवान व 9 मुक्केबाज क्वालीफाई कर चुके हैं। इनके अतिरिक्त भी अन्य खिलाड़ी क्वालीफाई कर सकते हैं।बहरहाल, खिलाड़ियों में जहां देश के लिए पदक लाने का सपना है, वहीं संक्रमित होने का डर व खतरा भी है। पिछले तीन वर्ष के दौरान देश के लिए सबसे ज्यादा पदक लाने वाले 24-वर्षीय मुक्केबाज़ अमित पंघाल हैं, वह टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी कर चुके हैं। वह कहते हैं, ’डर तो लगेगा। पहले बिना किसी डर के बॉक्सिंग करते थे, अब यह डर लगा रहेगा कि स्पर्श से संक्रमण न हो जाये। हर मुक्केबाज डरा रहेगा कि अगर एक प्रतियोगी को संक्रमण हो गया तो वह दूसरों में भी फैल जायेगा।’ लेकिन इस अंधेरे में एक उम्मीद की किरण भी है। अमित नये कोरोना वायरस के कारण ओलंपिक स्थगन को वरदान मानते हैं। वह कहते हैं, ‘मेरे लिए फायदा ही है। अब मुझे ओलंपिक की तैयारी के लिए अधिक समय मिल गया है।’

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
सारिम अन्ना