मज़हब नहीं, इन्सानियत को देखा जाए

कोरोना वायरस ने पूरे विश्व के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। खास तौर पर पिछले दिनों जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साफ शब्दों में चेतावनी दे दी कि संभव है कि कोरोना वायरस संसार से कभी ख़त्म ही ना हो, तब इसकी भयावहत। स्वत: पुख्ता हो गयी।  इस चेतावनी के आते ही विशेषज्ञों ने यह कहना शुरू कर दिया कि पूरी दुनिया में इस महामारी की वजह से मानसिक स्वास्थ्य का संकट पैदा हो जाएगा।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की एक अन्य रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र को एक और ख़तरनाक संकट को लेकर आगाह किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की निदेशक के अनुसार इस समय पूरी दुनिया में छाया अकेलापन, भय, अनिश्चितता तथा आर्थिक रूप से होने वाली उथल-पुथल आदि बातें मनोवैज्ञानिक परेशानी का सबब बन सकती हैं। उन्होंने आगाह किया कि बच्चों, युवाओं यहां तक कि स्वास्थ्य कर्मियों में भी मानसिक कमज़ोरी पाई जा सकती है। गोया मानव के समक्ष एक ऐसा संकट आ चुका है कि बड़े से बड़े वैज्ञानिक, रणनीतिकार, शासक, प्रशासक अफलातून सभी फिलहाल असहाय बने हुए हैं। महामारी की इस घड़ी में सड़कों पर इन्सानियत का एक ऐसा जज़्बा उमड़ता दिखाई दे रहा है जो पहले कभी नहीं देखा गया। गरीब-अमीर हर शख्स अपनी सामर्थ्य के अनुसार एक दूसरे की मदद करता नज़र आ रहा है। कोरोना से प्रभावित लगभग सभी देशों में सामुदायिक भोजनालय चल रहे हैं। जगह-जगह रक्तदान शिविर लगाकर बीमारों को स्वस्थ करने के प्रयास किये जा रहे हैं। प्राकृतिक कहर के इस संकट में दुनिया धर्म जाति के भेद भुला कर इन्सानियत का प्रदर्शन कर रही है और ईश्वर-अल्लाह से पनाह मांग रही है।  परन्तु ठीक इसके विपरीत कुछ शक्तियां ऐसी भी हैं  जिन्होंने राक्षस या शैतान होते हुए भी दुर्भाग्यवश मानव का केंचुल ओढ़़ रखा है।  ये स्वयं को अल्लाह वाले और मुसलमान भी बताते हैं। इतना ही नहीं बल्कि सिर्फ अपनी विचारधारा को ही इस्लामी विचारधारा बताते हैं। शरीया का स्वयंभू रूप से ठेका भी इन्हीं राक्षसों ने लिया हुआ है। वैसे तो कभी तालिबान तो कभी अलकायदा तो कभी आईएस व इन जैसे कई चरमपंथी संगठनों ने बर्बरता के कई ऐसे अध्याय लिखे हैं जिनसे मानवता कांपती रही है। परन्तु विगत 12 मई मंगलवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में चरमपंथियों द्वारा बर्बरता की वह भयानक इबारत लिखी गयी जिसे युद्ध अपराध का दर्जा देना भी पर्याप्त नहीं। रमज़ान के पवित्र महीने में इन दरिंदों ने काबुल के एक मैटरनिटी हॉस्पिटल पर ऐसा हमला किया जिसमें  24 लोगों की जानें चली गयीं। मरने वालों में ज्यादातर नवजात बच्चे, प्रसूता माताएं और अस्पताल की डॉक्टरों व नर्सों समेत कई अन्य लोग शामिल हैं।