सुप्रीम कोर्ट का आदेश

कोरोना वायरस के मद्देनज़र और इसको तुरंत फैलने से रोकने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा की गई एकाएक तालाबन्दी की घोषणा से प्रवासी मज़दूरों की क्या हालत होगी, उसका इस घोषणा के समय तो अनुमान लगाना मुश्किल था परन्तु कुछ दिनों में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि देश भर के अलग-अलग क्षेत्रों और प्रांतों से संबंधित प्रवासी मज़दूर बेहद नाज़ुक हालात से गुज़र रहे हैं। उनका एकाएक बेरोज़गार हो जाना और अधिकतर का रोटी से भी आतुर हो जाने ने बड़ा दुखांत पैदा किया है। काम-धंधे बंद हो जाने के बाद उनका रुपये- पैसों के बिना लम्बे समय के लिए काम वाले स्थानों पर रुक पाना बहुत मुश्किल था। इसलिए उन्होंने अलग-अलग ढंग-तरीके से अपने-अपने पैतृक राज्यों को जाना शुरू कर दिया। तालाबन्दी के कारण सरकारें उनको भेजने का प्रबंध नहीं  कर सकती थीं और बड़ी संख्या होने के कारण उनको पूरी तरह से सम्भाल पाना बेहद मुश्किल था। बिना रेल गाड़ियों, बसों और अन्य वाहनों के उनमें से हज़ारों ने लम्बा स़फर पैदल ही करना शुरू कर दिया, जिससे स्थिति और भी नाज़ुक हो गई एवं दुखांत और भी बढ़ गया। इस कारण बहुत से पक्षों ने देश की सर्वोच्च अदालत का ध्यान इस स्थिति की ओर दिलाने हेतु उस तक पहुंच भी करनी शुरू कर दी थी ताकि संबंधित सरकारों को तुरंत इस समस्या का हल निकालने के लिए पूरी तरह सक्रिय किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने आरम्भ में इस संबंधी डाली गई याचिका खारिज कर दी। रेल दुर्घटनाओं संबंधी भी अदालत ने कहा कि अगर मज़दूर रेल पटरियों पर सो जाएं तो दुर्घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है और बड़ी संख्या में पैदल चल रहे मज़दूरों की निगरानी कैसे की जा सकती है? उस समय सर्वोच्च अदालत की इस टिप्पणी की अलग-अलग वर्गों द्वारा आलोचना भी हुई थी और दिए गए इन फैसलों संबंधी निराशा भी प्रकट की गई थी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने रेल गाड़ियां भी चला दी थीं परन्तु जितनी बड़ी प्रवासियों की संख्या थी, उसके मुकाबले इन गाड़ियों की संख्या बहुत कम थीं। सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला आने से पूर्व रेलवे विभाग ने यह बताया कि अब तक 44 लाख के लगभग प्रवासियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया गया है। इनमें बिहार और उत्तर प्रदेश के कामगार बड़ी संख्या में शामिल थे। परन्तु अभी भी लाखों मज़दूर अपने-अपने ठिकानों पर पहुंचने के लिए इंतजार कर रहे हैं। प्रतिदिन उनकी दयनीय हालत के समाचार सामने आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले मंगलवार को स्वयं कार्रवाई करके केन्द्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए यह कहा था कि अपने घरों को जाने वाले प्रवासियों के लिए मुफ्त भोजन और अस्थायी रिहायश की ज़रूरत है। उनके लिए सरकारों को उचित आवागमन के प्रबंध भी करने चाहिए। इस नोटिस संबंधी सर्वोच्च अदालत द्वारा वीरवार को सभी पक्षों को विस्तार में सुना गया और उसके बाद अदालत ने यह आदेश दिया कि घरों को जाने वाले मज़दूरों से बस या रेलगाड़ियों का किराया न लिया जाए और इसके साथ ही संबंधित राज्यों को यह हिदायत दी कि उनके खाने-पीने का प्रबंध भी उनकी ज़िम्मेदारी होगी और रास्ते में रेल विभाग उनके भोजन का प्रबंध करेगा। संबंधित राज्य उनकी रजिस्ट्रेशन संबंधी देख-रेख करेंगे और यह यकीनी बनाएंगे कि निश्चित की गई तिथि को उनके लिए बस और रेलगाड़ी का प्रबंध हो और इस संबंधी पूरी जानकारी संबंधित कामगारों को पहुंचाई जाए। अदालत ने कहा है कि केन्द्र और राज्य सरकार ने काफी यत्न किए हैं परन्तु बड़ी संख्या में लोगों तक यह लाभ नहीं पहुंचाया और इस तरह नामकरण (रजिस्ट्रेशन) की प्रक्रिया में भी बड़ी कमियां दिखाई दी हैं, क्योंकि रजिस्ट्रेशन के बाद भी उनको अपने घर वापिस पहुंचने के लिए लम्बा इंतज़ार करना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बड़ी देर के बाद आया है क्योंकि भारी संख्या में प्रवासी कामगार अब तक अपने घरों को लौट भी चुके हैं परन्तु अभी भी लाखों ही कामगार लौटने के इंतजार में हैं। अगर अभी भी उनके लिए हर तरह के पुख्ता प्रबंध कर दिए जाते हैं तो यह व्यवस्था उनके लिए राहत वाली साबित हो सकती है तथा महामारी के कारण पैदा हुए बड़े दुखांत को कुछ सीमा तक कम करने में सहायक हो सकती है। अब अधिकतर राज्यों में काम की गतिविधियां शुरू होने से बड़ी संख्या में कामगारों के पुन: अपने काम पर वापिस लौटने के भी समाचार आने लगे हैं। फिर भी प्रवासियों की मुश्किलों को कम करने के लिए प्रत्येक स्तर पर यत्न तेज़ होने चाहिए। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द