लॉकडाउन और प्रवासी श्रमिकों का पलायन

चीन के वुहान शहर से शुरू हुए कोविड-19 के आतंक ने जहां पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है, वहीं भारत देश में भी इसकी स्थिति कुछ अच्छी नहीं रही। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के पलायन ने देश के ऐसे दयनीय हालातों को बयान किया जो बेहद दुखद हैं। एक साथ बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों का अपने घरों को लौटने के असाधारण फैसले के जवाब में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के पास कोई ठोस कार्रवाई या राहत प्लान नहीं दिखाए, जिससे समय रहते हालात सामान्य हो पाते। प्रवासी मजदूरों के बीच जान बचाने और अपने घरों को लौट जाने की देशव्यापी दहशत के बीच सरकारों की मशीनरी भी असहाय सी दिखी।गुजरात, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्य भले ही विकास के कई पैमानों पर अव्वल राज्यों में आते हों लेकिन अपने अपने घरों को बेतहाशा लौटते मजदूरों को रोके रखने के उपाय करने में वे भी पीछे ही रहे। हालांकि ये भी एक सच्चाई है कि भारत में प्रवासी मजदूरों की स्थिति विभिन्न राज्यों के असमान विकास के साथ जुड़ी हुई है। देश में पलायन की समस्या इतनी विकराल तब दिखी जब कोरोना वायरस के कारण इतनी भारी तादाद में लोग शहरों से ग्रामों की ओर पलायन करने लगे। हालांकि केंद्र सरकार ने लोगों को विभिन्न शहरों से उनके घरों तक पहुँचाने के लिए विशेष श्रमिक रेलगाड़ियाँ चलाईं परंतु फिर भी कई लोग शहरों से ग्रामों की ओर पैदल ही चल दिए।यूँ तो अभी भी भारत एक कृषि प्रधान देश ही है अत: यहाँ 80 प्रतिशत से अधिक मज़दूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। भारत में भारी संख्या में लोग गांवों से शहरों की ओर रोज़गार प्राप्त करने के उद्देश्य से जाते हैं। जिस ग्रामीण को जहाँ रोज़गार मिलता है वह वहाँ चला जाता है। इसलिए भारी संख्या में लोग एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में चले जाते हैं। दरअसल, कोरोना वायरस की वास्तविक स्थिति का पूर्वाभास इन प्रवासी श्रमिकों को नहीं होने के कारण एवं सरकार द्वारा उनकी सहायता के लिए चलायी जा रही विशेष श्रमिक रेलगाड़ियों की सही जानकारी उन्हें नहीं होने के कारण श्रमिक लोग घबरा गए एवं वे बड़ी संख्या में शहरों से गांवों की ओर पैदल ही पलायन कर बैठे।
हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर स्टेशन पर एक बच्चा अपनी भूख-प्यास से मरी हुई मां को जगाने की असफल कोशिश करता रहा लेकिन उस बच्चे को क्या पता था कि उसकी मां उसको सदा के लिए अलविदा कर चुकी है। इस घटना ने आत्मा को हिलाकर रख दिया। साथ ही देश की दयनीय हालत को भी बयान किया। कोरोना वायरस महामारी के बाद देश में पुन: जब आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत हो तो केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास अब एक मौक़ा आया है कि भारतीय सिद्धांतों का पालन करते हुए ही व्यापक विकास का एक स्वदेशी मॉडल राज्य स्तर पर बनाया जाये कि किस प्रकार के उद्योग राज्यों में शीघ्रता से विकसित किए जा सकते हैं जिसमें रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर स्थानीय स्तर पर ही सृजित किए जा सकें। इस प्रकार की योजनाएं राज्यवार बनाये जाने की आज अत्यधिक आवश्यकता है। इस प्रकार की योजनाएँ विकसित करते समय असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की ओर विशेष ध्यान देना होगा ताकि ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर श्रमिकों के पलायन को रोका जा सके।

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