श्रावण मास में मनोकामना पूर्ण करती है शिव-स्तुति

श्रावण मास में कांवर में गंगाजल भरकर पदयात्रा करते हुए शिवालयाें में जलाभिषेक करना पुण्य प्राप्ति का कारक माना जाता है। जिस कांवर में गंगाजल भरकर शिवालय में ले जाया जाता है, उस कांवर को बनाने वाले हिन्दू ही नहीं, मुसलमान भी होते हैं। इतना ही नहीं, कई मुसलमान हिन्दुओं के इस कांवर मेले में कांवर सहायता शिविर लगाकर धार्मिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारे का सन्देश भी देते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार शिव की भक्ति आषाढ़ मास के बीस दिन बीतने के बाद से ही श्रावण मास पूरा होने तक 40 दिन के लिए किये जाने की परम्परा है। धार्मिक दृष्टि में विचार मथंन करें तो भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा हैं जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिंग शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते हैं इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिंग की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिंग की उत्पत्ति होना बताया गया है जिसके प्रणेता भगवान शिव हैं। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिंग के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है।  शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नम: शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव आराधना है। श्रावण मास में शिव स्तुति मनोकामना पूर्ण करने वाली होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद व अर्थवेद में भगवान शिव को ईश, ईशान, रुद्र, ईश्वर, कपर्दी, नीलकण्ठ, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, भोलेशंकर नामों से जाना जाता है। वहीं भगवान शिव को सहस्त्रपक्षु, तिग्यायुध, वज्रायुध, विधुच्छक्ति, नारायण, श्वेताश्वर, अथर्व, कैवन्य, तंत्रिरीय, र्त्यम्बक, त्रिलोचन, ताण्डवनर्तक, अष्टमूर्ति, पशुपति, आरोग्यकारक, वप्रांवर्धक, औसधवधित रूप में भी शिव को जाना जाता है। वहीं शिव को स्कन्द व वामन भी कहा गया। शिवालयों में पाषाण निर्मित शिव लिंग पर ही जलाभिषेक कर शिवस्तुति करने का प्रचलन है। लेकिन यदि मृणम्य शिवलिंग या बाजलिंग की उपासना कर शिवरात्रि पर जलाभिषेक किया जाए तो अधिक फलदायक होता है। गरुड़ पुराण में शिवलिंग निर्माण के विधान का उल्लेख किया गया है। इसके तहत अलग अलग धातु या फिर वस्तु से निर्मित शिवलिंग की पूजा अर्चना से अलग अलग फल प्राप्ति होती है। कस्तूरी, चन्दन व कुमकुम से मिलकर बनाया गया गंधलिंग विशेष पुण्यकारी है। वहीं पुष्पों से पुष्पलिंग बनाकर शिव आराधना करने से पृथ्वी के आधिपत्य का सुख मिलता है। इसी प्रकार कपिल वर्ण गाय के गोबर से निर्मित गोशक्रलिंग की पूजा से ऐश्वर्य की प्राप्ति होना मानी जाती है। रजोमय लिंग पूजा करने से सरस्वती की कृपा साधक पर होने की मान्यता है। वहीं जौ, गेहूं, चावल के आटे से बने चवर्गोधूमशालिज लिंग पूजा से स्त्री, पुत्र व श्री सुख की अनुभूति का उल्लेख है। मिश्री से बने सितारखण्डमय लिंग पूजा से आरोग्यता, हरताल व त्रिकुट लवण से बनाए गए लवणज लिंग से सौभाग्य प्राप्ति, पार्थिव लिंग से कार्यसिद्धि, भस्मय लिंग से सर्वफल प्राप्ति, गडोरथ लिंग से प्रीति वृद्धि, वंशाकुर लिंग से वंश विस्तार, केशास्थि लिंग से शत्रु शमन, पारद शिव लिंग से सुख समृद्धि, कास्य व पीतल से बने शिव लिंग से मोक्ष प्राप्ति होने की मान्यता है।

(सुमन सागर)