सचिन पायलट के पास बेहद सीमित विकल्प

सचिन पायलट अशोक गहलोत की सरकार को तो संकट में डाल नहीं सके, अब खुद वह राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं। वह कुछ दिन पहले राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। अब वह उस पद से हटा दिए गए हैं। वह प्रदेश की सरकार में उप-मुख्यमंत्री थे। वहां से भी हटा दिए गए हैं। फिलहाल वह कांग्रेस से विधायक हैं और टोंक विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी विधायकी पर भी अब खतरा मंडरा रहा है। उनके साथ 18 अन्य कांग्रेस विधायकों की विधायकी भी खतरे में पड़ गई है।इस परिस्थिति में सचिन पायलट के पास अब बहुत ही सीमित विकल्प रह गए हैं। वह फिलहाल न्यायपालिका की शरण में हैं और राजस्थान विधानसभा के स्पीकर द्वारा दल बदल विरोधी कानून के तहत जारी किए गए नोटिस को कानूनी चुनौती दे रहे हैं। दलबदल विरोधी कानून के तहत सदस्यता समाप्त किए जाने के दो प्रावधान हैं। पहला प्रावधान तो यह है कि यदि खुलकर कोई यह कह दे कि जिस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर वह विधायक बना है, उस पार्टी को उसने छोड़ दिया है और इसकी सूचना स्पीकर को भी दे दे, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी। यही कारण है कि पार्टी छोड़ने वाले विधायक या सांसद अपनी विधायकी और सांसदी से इस्तीफा भी पार्टी छोड़ने के साथ साथ दे देते हैं, ताकि स्पीकर को उन्हें नोटिस जारी करने की ज़हमत नहीं उठानी पड़े।सदस्यता समाप्त करने का दूसरा प्रावधान यह है कि यदि कोई विधायक अपनी पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करता है और पार्टी उसके खिलाफ  स्पीकर को शिकायत करती है, तब भी उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है। व्हिप विधानसभा में पार्टी का मुख्य सचेतक या कोई अन्य सचेतक जारी करता है। व्हिप के तहत विधायकों को सदन में उपस्थित रहने के लिए कहा जाता है और किसी विधेयक पर मतदान हो रहा हो, तो उसके पक्ष या विपक्ष में मत डालने के लिए भी व्हिप जारी किया जाता है। यदि कोई व्हिप का उल्लंघन करता है, तो मुख्य सचेतक या सचेतक स्पीकर को व्हिप उल्लंघन करने का हवाला देकर उस सदस्य की सदस्यता समाप्त करने को कहता है, तो सफाई का मौका देकर स्पीकर उस सदस्य की सदस्यता समाप्त कर देता है। हालांकि मुख्य सचेतक के पास यह अधिकार होता है कि स्पीकर के फैसले के पहले वह अपनी शिकायत वापस ले ले। ऐसा तब होता है, जब व्हिप का अनुशासन नहीं मानने वाले विधायक के खिलाफ  पार्टी आगे कार्रवाई करने के अपने निश्चय को वापस ले ले।वर्तमान मामले में भी सचिन पायलट सहित 19 कांग्रेसी विधायकों को व्हिप जारी कर विधायकों की बैठक में शामिल होने का कहा गया था। दो बैठकें हुई थीं और दोनों में व्हिप जारी किए गए थे। ये 19 विधायक दोनों बैठकों में न तो आए और न ही नहीं आने का कोई कारण बताया। अगर बैठक में न आने का कोई बहुत ही ज़रूरी कारण हो, जैसे सदस्य की अस्वस्थता या बैठक स्थल से बहुत दूर होना, तब तो पार्टी को कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन इन विधायकों ने अपनी अनुपस्थिति के कारणों की सूचना तक देना ज़रूरी नहीं समझा। इसलिए उनके खिलाफ  दल बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की जा रही है।वैसे यह पहला मामला है, जिसमें पार्टी विधायकों को विधायक दल की बैठक में शामिल होने का व्हिप जारी किया गया है। इस तरह की बैठकें सामान्य सूचना देकर ही की जाती रही हैं और व्हिप का इस्तेमाल सदन में उपस्थित रहने और उपस्थित रहकर पार्टी लाइन पर मतदान के लिए ही किया जाता रहा है। यह शायद पहला मौका है, जब विधायक दल की बैठक में अनुपस्थित रहने के लिए दलबदल विरोधी कानून के तहत सदस्यता समाप्त करने की कार्रवाई की जा रही है। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है और न्यायालय ही फैसला करेगा कि क्या इन हालात में उस कानून का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये सब तकनीकी मामले हैं। राजनीतिक मामला यह है कि सचिन पायलट की राजनीति संकट में आ गई है। जो विधायक उनके साथ अब तक दिख रहे थे, उनमें से अनेक अपनी सदस्यता बचाने के लिए अशोक गहलोत से माफी मांग लेंगे या उलटे सचिन पायलट पर ही आरोप लगा देंगे कि उन्हें जबरदस्ती मानेसर में रखा गया था और वे चाहते हुए भी बैठक में नहीं आ सके। जाहिर है, सचिन पायलट अकेले पड़ते जाएंगे और अपनी विधायकी बचाने के उनके सामने लाले पड़ जाएंगे। आज न कल, उन्हें दल बदल विरोधी कानन के दायरे में आना ही पड़ेगा। ऐसी स्थिति में उनके सामने एक विकल्प है भाजपा में शामिल हो जाना, लेकिन वह इससे इन्कार कर चुके हैं। भाजपा में जाकर उनकी राजनीतिक मौत ही होनी है। उस पार्टी में उन्हें महत्व नहीं मिलेगा। उनके सामने दूसरा विकल्प है अपनी एक क्षेत्रीय पार्टी बनाना, लेकिन यह उनके वश का नहीं है। इसका कारण यह है कि वह जमीन से जुड़े नेता कभी नहीं रहे। वह राजेश पायलट का पुत्र होने के कारण राजनीति में बड़े-बड़े पदों पर रहे। उनके पिता राजेश पायलट भी जमीन से जुड़े नहीं थे। संजय गांधी और राजीव गांधी की दोस्ती के कारण वह राजनीति में मंत्री तक बन गए थे। जाहिर है, सचिन पायलट के पास ऐसा कोई आधार नहीं है, जिस पर खड़े होकर कोई पार्टी बनाएं। उन्होंने यदि किसी बड़े मुद्दे पर बगावत की होती, तो उस मुद्दे पर आंदोलन चलाकर एक पार्टी खड़ी कर सकते थे। लेकिन पार्टी से बगावत का जो कारण बता रहे हैं, वह हास्यास्पद है। वह कह रहे हैं कि वह विकास करना चाहते थे, लेकिन गहलोत ने विकास करने नहीं दिया। जनता की सेवा और विकास अब घिस-पिटे शब्द हो गए हैं। इसलिए सचिन के पास कांग्रेस में बने रहने के अलावा और कोई बेहतर रास्ता नहीं है। यह सच है कि उन्हें पार्टी में अब पुराना वाला महत्व नहीं मिले और अपमानित भी होना पड़े, लेकिन वह धैर्य के साथ अच्छे दिनों का इंतजार तो कर ही सकते हैं। (संवाद)