राम मंदिर का शिलान्यास

सैकड़ों वर्षों तक चले घटनाक्रम के बाद अंतत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास कर ही दिया। यह मामला देश के बहुसंख्यक लोगों की आस्था के साथ जुड़ा हुआ है। सैकड़ों वर्ष की यात्रा के बाद तथा सवा सौ वर्ष के पेचीदा अदालती चक्करों के बाद इसका हल देश की सर्वोच्च अदालत की ओर से दिए गए फैसले के दृष्टिगत हुआ प्रतीत होता है, परन्तु अभी भी देश के करोड़ों लोग इस फैसले से संतुष्ट दिखाई नहीं देते। इस पेचीदा विवाद का कोई हल ढूंढा जाना आवश्यक भी था। बड़ी संख्या में लोग इसके अदालती मामलों से थक गये प्रतीत होते थे। यह माना जाता रहा है कि भारत के म़ुगल शासक बाबर के आक्रमण के बाद उसके सेनापति मीर ब़ाकी ने सन् 1528 में मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई थी जिसे अधिकतर हिन्दू भगवान राम का जन्म स्थल मानते रहे हैं। यद्यपि देश में लम्बी अवधि तक शासन म़ुगलों एवं नवाबों का रहा, इसलिए सवा तीन सौ साल तक भगवान राम के श्रद्धालुओं को इस संबंध में बोलने का साहस नहीं हुआ। देश में अंग्रेज़ी शासन आने के बाद सन् 1853 में इस स्थान के संबंध में मुकद्दमेबाज़ी शुरू हुई। सन् 1859 में अंग्रेज़ी शासन ने तारों की एक बाड़ लगा कर इसके भीतर तथा बाहर के प्रांगण में मुसलमानों और हिन्दुओं को भिन्न-भिन्न स्थानों पर नमाज़ एवं पूजा करने की इजाज़त दे दी। इस ढांचे के बाहरी प्रांगण में ही हिन्दू पूजा करते थे। फिर अचानक सन् 1949 में ढांचे के भीतरी गुम्बद के नीचे रहस्यमय ढंग से मूर्तियां रखी हुई मिलीं तथा उसके बाद मामला और उलझता चला गया। बहुत-से हिन्दू और मुसलमान संगठन अपने-अपने पक्ष पर पहरा देते रहे। इनमें निर्मोही अखाड़ा एवं सुन्नी वक्फ  बोर्ड भी शामिल थे। पहले जनसंघ तथा बाद में भारतीय जनता पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद यह राम मंदिर के लिए यत्नशील हुई। सन् 1990 में भाजपा के तत्कालीन नेता लाल कृष्ण अडवानी ने इस मामले पर रथ यात्रा भी आरम्भ की थी। इसी वर्ष कार-सेवकों की ओर से मस्जिद के गुम्बदों पर भगवा ध्वज फहरा दिया गया तथा इसी वर्ष मुलायम सिंह के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के दौरान एकत्रित हुये राम-भक्तों पर गोली पर चलाई गई जिससे लगभग सवा दर्जन राम-भक्त मारे गये थे। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री होते हुए सन् 1989 में इस स्थान के निकट मंदिर का शिलान्यास करने की घोषणा की गई। भारी हिचकिचाहट के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यह शिलान्यास रखने की इजाज़त दे दी थी। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय सन् 1992 में इस मस्जिद के ढांचे को एकत्रित हुई भारी भीड़ की ओर से ध्वस्त कर दिया गया था तथा वहां अस्थायी रूप में राम लला की स्थापना कर दी गई थी। इसके बाद चले लम्बे अदालती मुकद्दमों के दृष्टिगत नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार के समय इस पार्टी की ओर से निर्धारित किया गया एजेंडा पूरा हो गया। क्योंकि इस संबंध में फैसला देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनाया था इसलिए इस पर कोई आपत्ति करना कठिन था।देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से राम मंदिर का शिलान्यास करते समय आपसी भाईचारे एवं प्रेम का सन्देश दिया गया तथा यह भी कि सभी की भावनाओं का ध्यान रखा जाना ज़रूरी है, तथा यह भी कि सभी को साथ लेकर एवं सभी का विश्वास प्राप्त करके सभी का विकास होना चाहिए। मोदी ने यह भी कहा कि यह दिन सच्चाई, अहिंसा एवं विश्वास का है, क्योंकि इसका फैसला अदालती प्रक्रिया के माध्यम से हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मंदिर आधुनिकता एवं हमारी राष्ट्रीय भावनाओं का प्रतीक बनेगा। नि:सन्देह इस अत्याधिक भावुक एवं उलझे हुये मामले के हल होने पर देश भर के लोगों ने सुख की सांस अवश्य ली है परन्तु हम यह अवश्य महसूस करते हैं कि आज देश की एकता, अखंडता एवं भातृत्व साझेदारी को दशकों पुराने घटित हुए घटनाक्रम को आधार बना कर कमज़ोर करने का यत्न चाहे किसी की ओर से भी हो, सुलझी हुई तथा सूझबूझ वाली नीति नहीं है। पुराने घावों को उघेड़ा जाना देश के लिए हितकर नहीं हो सकता। इससे दर्द का बढ़ते जाना स्वाभाविक है। सभी को साथ लेकर चलने की सोच ही भविष्य के स्वस्थ समाज की परिचायक हो सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द