बिल्ली

शहर के एक जाने-माने और विचारों से प्रगतिशील लेखक सिद्धनाथ एक दिन अपने ही मुहल्ले की एक गली में होकर गुज़र रहे थे। घर पहुंचने की जल्दी में थे, लिहाज़ा उनकी चाल में कुछ तेज़ी आनी स्वाभाविक थी। गली में उन्हें दो-एक परिचित मिले भी, लेकिन उन्होंने समय बचाने के लिए हाय-हैलो और नमस्कार से ही काम चला लिया, लेकिन यह क्या, अचानक उनकी बात खुद-ब-खुद धीमी पड़ने लगी। दरअसल, उनकी नज़र गली के एक मकान की बाउंड्री पर बैठी एक बिल्ली पर पड़ गई थी।
बिल्ली कुछ इस अदा में बैठी थी जैसे अभी उछल कर गली के दूसरी ओर निकल जाएगी। सिद्धनाथ को लगा, हो न हो आज तो यह बिल्ली अपना रास्ता काट ही जाएगी। उन्होंने पहले शू-शू कर उसे दूसरी ओर भगाना चाहा, लेकिन वह बड़ी ढीठ निकली। जहां बैठी थी, वहीं बैठी रही। सिद्धनाथ अभी असमंजस में ही थे कि सामने एक लड़का ठीक बिल्ली के सामने से होकर चला आया। उसके पीछे-पीछे एक सांड अपनी मस्त चाल में चला आ रहा था जाने क्यों सिद्धनाथ को लगा कि बिल्ली सांड के भय से शायद आगे न बढ़े। यही सही वक्त है जब वह गली पार कर सकते हैं। अचानक उन्होंने अपनी चाल में तेजी भरी और फिर एक सांस में गली पार कर गए।