खेल जगत के लिए घातक हैं फर्जी आयु सर्टीफिकेट

खेल जगत का भला चाहने वालों के खेल जगत की भीतरी कहानी भी पूरी तरह समझने की आवश्यकता है। किसी खेल से जुड़े खिलाड़ी, प्रबंधक, कोच, अम्पायर इस पक्ष से पूरी तरह सचेत रहें कि फर्जी आयु सर्टीफिकेट खेलों की दुनिया पर कलंक न हों। पहले नम्बर पर आने की होड़ हमारे खिलाड़ियों से अधिक खेल अधिकारियों में होती है।  खेल संस्कृति का कोई प्रशंसक नहीं, तारीफ होती है सिर्फ पोज़ीशन की, मैडलों की।  स्कूलों, कालेजों तथा घरेलू मुकाबलों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हमारे देश में फर्जी आयु सर्टीफिकेट हमारे खेल जगत की छवि को धुंधला कर रहे हैं। निर्धारित आयु से अधिक आयु वाले खिलाड़ी राष्ट्रीय स्कूली मुकाबलों में हिस्सा लेते हैं। इस तरह नकली सर्टीफिकेटों के सहारे फर्जी खिलाड़ी कालेजों में दाखिला लेकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। सरकारी विभागों में भी खेल कोटे के तहत इस तरह की भर्ती चल रही है, जिसके सहारे अफसरशाही ऐश कर रही है। हमारे यहां शारीरिक शिक्षा, खेल अकादमियों तथा खेल केन्द्र आज भी भविष्य के खिलाड़ी तैयार करने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। सच्चाई यह है कि 10 वर्षीय बच्चा किसी खेल में नहीं उभरता। वह स्कूली स्तर पर 14 वर्ष की आयु में जाकर खिलाड़ी बनता है। अपने प्रदर्शन के सहारे एक चैलेंज बनने की कोशिश करता है परन्तु उसे बड़ी आयु वाले खिलाड़ी चयन में ही चलता कर देते हैं। इसलिए कम आयु के सर्टीफिकेट के धंधे की उपज, निजी हितों की खातिर हमारे बाल खिलाड़ी के भविष्य को तबाह तक देती है। इस धंधें में, इस जुगाड़ में अंडर-14 अधिकतम खिलाड़ी 16 वर्ष की आयु के होते हैं। अंडर-16 के मुकाबलों में 18 वर्ष के अधिक आयु के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे होते हैं।। स्कूल स्तर पर शानदार प्रदर्शन करने के बाद हमारे कई अच्छे खिलाड़ी कालेज की दहलीज तक नहीं पहुंच सकते। परिणामस्वरुप कालेज तथा यूनिवर्सिटी की टीमों का प्रदर्शन अच्छा नज़र नहीं आता। जूनियर तथा सीनियर वर्ग के मध्य  की कड़ी के कमज़ोर होने का बड़ा कारण यह भी है कि हमारे अधिकतर खिलाड़ी स्कूलों में ही अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय गुज़ार देते हैं खेल अधिकारियों के लालच में आकर। नकली सर्टीफिकेटों का जुगाड़ करने वाले कुछ गिरोहों का भी पूरी तरह पर्दाफाश हो सकता है यदि खेल सिस्टम पर पूरी तरह से नज़र रखी जाए। हमारे खेल मंत्रालय को भी इस तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। दुख की बात यह है कि फर्जी सर्टीफिकेटों की मदद से खिलाड़ी विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी विभागों में नौकरी भी कर रहे हैं। हालांकि गत समय में कई मामले भी पकड़े गए हैं परन्तु इस व्यापार को रोकने के लिए गंभीर तथा सख्त होने की आवश्यकता है। खेल कोटे की आड़ में घुसपैठ का धंधा रोकने की आवश्यकता है। कई गैर-खिलाड़ी भी इस का लाभ ले रहे हैं परन्तु कब तक?  

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