कहीं कॉलर ट्यून तक न सिमट जाएं चिड़ियों की आवाज़ें

जंगलों में, खेतों में, बस्तियों में लगातार चिड़ियों की संख्या कम होती जा रही है। लेकिन मोबाइल फ ोनों में, चिड़ियों की आवाज़ों की कॉलर ट्यून बढ़ती जा रही हैं। दिन रात पर्यावरणविदों की तमाम चिंताओं के बाद भी दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं हो रहा, जिससे कि चिड़ियों की दिनोदिन हो रही कमी थम सके। हालांकि पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया के कोरोना की चपेट में आने के कारण जरूर तमाम तरह के प्रदूषणों में कुछ राहत मिली है और इससे उन  तमाम जीव प्रजातियों को भी थोड़ी सांस में सांस आयी है, जो लगातार लुप्त होने की कगार की ओर बढ़ रही हैं। लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ दशकों में चिड़ियों की संख्या में पूरी दुनिया में कमी आयी है, उससे यह आशंका घर करने लगी है, कहीं ऐसा न हो भविष्य की पीढ़ियां चिड़ियों की आवाजें मोबाइल और कंप्यूटर में ही सुनें। हमारी मौजूदा जीवनशैली एक हद तक प्रकृति के खिलाफ  है। हमारा उपभोग, हमारा भोग-विलास, पेड़ पौधों को ही नहीं, पशु पक्षियों के लिए भी खतरा बन गया है। पेड़ लगातार कम हो रहे हैं,भले उनकी क्षुतिपूर्ति के लिए कुछ डिजाइनर पेड़ों को लगाया जा रहा है, लेकिन वे प्राकृतिक पेड़ जो अनगिनत पक्षियों का बसेरा हुआ करते थे और इंसान के लिए थोड़े कम फायदेमंद होते थे, उनकी संख्या लगातार घट रही है। पक्षियों के जान की दुश्मन सिर्फ  हमारी जीवनशैली ही नहीं है बल्कि ज्यादा से ज्यादा कृषि उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का खेती में जो अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है, उससे भी चिड़ियों की जिदंगी को खतरा पैदा हो गया है। कीटनाशकों के कारण पक्षियों की कुछ प्रजातियां तो बिल्कुल विलुप्त होने के कगार पर खड़ी हैं। पर्यावरणविदों के मुताबिक जब कीटाणुनाशक युक्त बीज पक्षी खाते हैं, तो उनकी मौत हो जाती है। दूसरी तरफ अत्यधिक निर्माण के कारण सिर्फ शहरों में ही नहीं गांवों में भी बड़े पैमाने पर असंख्य पेड़ काट दिये जाते हैं। ये वे पेड़ हैं, जो गांवों में तालाबों के किनारे होते थे, जिनमें तमाम तरह के पक्षी अपना घोंसला बनाते थे, तालाब का पानी पीते थे और घने छायादार पेड़ के फलों को खाकर जीवित रहते थे। अब ये सब लगातार अगर बिल्कुल खत्म नहीं तो दुर्लभ होता जा रहा है, जिससे पक्षियों की संख्या लगातार घट रही है। हाल के सालों में पंजाब और हरियाणा के किसानों की देखादेखी देश के ज्यादातर हिस्सों में किसानों ने अपने खेतों के खरपतवार को खत्म करने के लिए शॉर्टकट का रास्ता अपनाते हुए, इसमें आग लगाने लगे हैं। खेतों में आग लगाने से उन तमाम पक्षियों की जिंदगी खतरे में पड़ गई है, जो पेड़ों की फुंगियों में नहीं बल्कि खेतों की मेढ़़ों, खेतों की झाड़ झंकार और मिट्टी में रहती थीं जैसे कि तीतर, बटेर, टिटहरी, बुलबुलऔर पैडी फील्ड। खेतों में आग लगाने से जमीन में रहने वाले पक्षियों का आशियाना जलकर खाक हो जाता है, जिससे फिर वो वहां नहीं रह पाते। हमारी रोजमर्रा की गतिशील जिंदगी का महत्वपूर्ण उपकरण बन गये मोबाइल की वजह से भी हजारों किस्म की चिड़ियों की प्रजातियां नष्ट हो रही हैं। हालांकि यह चिंता बहुत पहले ही आ गई थी, लेकिन कारपोरेट जगत, अपने रसूख की बदौलत इस निष्कर्ष को लगातार गलत बताने की कोशिश करता रहा और अब तो वह पक्षियों प्रेमियों से भी यह कहलाने में सक्षम हो गया है कि पक्षियों के लिए मोबाइल समस्या नहीं है। लेकिन विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि एक दिन दुनिया की तमाम छोटी चिड़ियां सिर्फ  तस्वीरों में ही बचेंगी; क्योंकि मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगे, विशेषकर छोटी चिड़ियों के लिए बड़ी समस्या हैं।माना जा रहा है कि मोबाइल की वजह से ही बड़े शहरों में छोटी गौरैया दिखना अब ईद का चांद हो गया है। साल 2009-2010 में केरल के डॉ. पट्टाझी ने मोबाइल टावरों का चिड़ियों के जीवन में क्या असर पड़ता है, इसका विस्तृत अध्ययन किया था और साबित किया था कि बढ़ते मोबाइल टावर और एंटीना वास्तव में चिड़ियों की जान की दुश्मन हैं। इसकी वजह यह भी है कि मोबाइल हर घर तक ही नहीं बल्कि खेत, जंगल, समुद्र, आसमान हर जगह पहुंच गया है। इसलिए डॉ. पट्टाझी ने तभी आगाह किया था कि मोबाइल टावरों का विस्तृत अध्ययन हो और तमाम जानकारियों के बाद  ही टावरों को लगाने की अनुमति दी जाए। लेकिन बात बस उठी, चर्चा में आयी और खत्म हो गई। अभी तक देश को ऐसे टावर नहीं मिले, जो स्थानीय पक्षियों को जरा भी नुकसान न पहुंचाते हों। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि आज के इस दौर ने लोगों में संवेदनशीलता तो बढ़ायी है, लेकिन वे इस संवेदनशीलता को अपने निजी जीवन और व्यवहार में नहीं उतार रहे। इसका असर यह हो रहा है कि हम पर्यावरण और अपने तमाम सहजीवियों के बारे में आंसू तो खूब बहाते हैं, बड़े-बड़े भाषण भी खूब देते हैं लेकिन सचमुच में उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं करते। अपनी तमाम ड्यूटी को सोशल मीडिया में पूरी करना ही महत्वपूर्ण समझते हैं।

-इमेज रिफ्लेक्शन सैंटर