शिक्षण संस्थाओं को खोलने का फैसला

इसी वर्ष मार्च के महीने में कोरोना महामारी ने देश भर में एक प्रकार से चलती हुई ज़िन्दगी को खड़ा करके रख दिया था। हर प्रकार की गतिविधि बंद हो गई। छोटे-बड़े सभी काम काज ठप्प हो गए। लोग भय के साये में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो गए। केन्द्र एवं प्रांतीय सरकारों की ओर से समय-समय पर दिये गए निर्देशों के कारण लोग घरों में बंद होने के लिए मजबूर हो गए। इसका प्रभाव देश की आर्थिकता पर भी पड़ा। बेरोजगारी कई गुणा और बढ़ गई। गरीबी के कारण लोगों की ज़िन्दगी मुहाल हो गई। 
पिछले सात महीनों से प्रत्येक स्थान पर कोरोना का प्रसार एवं प्रभाव ही देखने को मिलता रहा है, परन्तु ऐसा सिलसिला कब तक चलना है, इस संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। हालात के मुकाबले के लिए कमर कसनी ही पड़नी थी। इसलिए हर प्रकार की गतिविधि को बढ़ाना ही पड़ना था क्योंकि लोगों ने अपनी आवश्यक ज़रूरतें पूरी करनी ही थीं। सरकारों के भीतर यह अहसास पैदा होना शुरू हुआ कि यदि छूट न दी गईं तो जीवन जीना असंभव हो जाएगा। इसके लिए चरणबद्ध ढंग से छूटें दिये जाने की घोषणा  की जाने लगी। इसके साथ ही बीमारी से बचने के लिए सावधानियों का प्रयोग करने के निर्देश भी जारी किये जाते रहे। चरणबद्ध ढंग से दी जा रही इन छूटों के चौथे पड़ाव पर एक संकेत दिये जाने लगा कि अब ज़िन्दगी आम जैसी ही जीनी पड़ेगी तथा अगले पड़ाव पर लगभग सभी छूट दे दी गई हैं। प्रत्येक प्रकार के समारोहों को भी शर्तों के साथ शुरू किये जाने के लिए निर्देश जारी कर दिये गये हैं। यहां तक अब सिनेमाघरों एवं क्लबों आदि को भी शुरू किये जाने की घोषणा हो गई है। पिछले महीनों से लगभग सभी स्कूल-कालेज एवं अन्य शिक्षा संस्थान भी बंद रहे हैं। इसके विकल्प के रूप में ऑनलाइन एवं डिज़ीटल शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है परन्तु साधनों की कमी के कारण यह सही ढंग से सम्पन्न नहीं हो सकी। केन्द्र सरकार की ओर से अब शिक्षा से सम्बद्ध संस्थानों को भी खोलने की इजाज़त दे दी गई है परन्तु इसमें प्रदेश सरकारों को अपना फैसला लेने का अधिकार दिया गया है ताकि वे ज़मीनी वास्तविकता को भांपते हुये इन संस्थानों को खोलने के लिए सावधानी बरतें। कुछ राज्यों ने शिक्षा संस्थानों को खोलने की बात आगे डाल दी है। कुछ राज्य उच्च कक्षाओं को शुरू करने की योजानाएं बना रहे हैं। लम्बे सोच-विचार एवं हिचकिचाहट के बाद पंजाब में भी शिक्षण संस्थाएं खोलने की योजना बनाई गई है जिसके अनुसार 9वीं से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थी एक सीमित संख्या में स्कूलों में जा सकेंगे, परन्तु इसके साथ-साथ डिज़ीटल कक्षाएं भी जारी रखी जाएंगी। सावधानियों में स्कूलों में स्वास्थ्य कर्मचारियों का उपस्थित रहना, बच्चों को हाथ धोने सहित शारीरिक दूरी संबंधी जागरूक करना एवं मास्क डालना आदि शामिल होगा। विद्यार्थियों को भी एक निश्चित दूरी पर बिठा कर ही कक्षाएं शुरू की जाएंगी। इसके साथ-साथ बच्चों के अभिभावकों की सहमति भी लेना आवश्यक होगा। यदि यह परीक्षण सफल हो जाता है तो इसे आगे बढ़ाया जा सकेगा। 
अब यह आम प्रभाव बनना शुरू हो गया है कि महामारी का प्रभाव कम होना शुरू हो गया है एवं आगामी कुछ महीनों में ही इस बीमारी के टीकाकरण की प्रक्रिया भी शुरू होने की सम्भावना है, जिससे इस बीमारी के भय का माहौल भी ़खत्म होता जाएगा। हालात के अनुकूल होने की सम्भावना भय के माहौल को कम करने में सहायक होगी क्योंकि अब बड़ी सीमा तक क्रियात्मक रूप में प्रत्येक तरह की गतिविधि शुरू हो चुकी है। विद्यार्थियों का आगामी सैशन व्यर्थ न जाए, इस सोच के साथ ही शिक्षण संस्थाओं को खोलने के फैसले लिये जा रहे हैं। ऐसे फैसला लेना हालात एवं समय की ज़रूरत है। इस रास्ते पर अब चलना पड़ेगा परन्तु ऐसा पूरी सावधानी के साथ ही किया जाना चाहिए।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द