शिक्षा की कमी के कारण ही अपराधी बनते हैं युवा

अक्सर जब यह देखने, सुनने, पढ़ने को मिलता है और आपसी बातचीत में चर्चा का विषय बनता है कि समाज में अपराध बढ़ रहे हैं, लोग ज़रा सी बात पर मारपीट, हत्या कर देते हैं, जो बच्चे अभी वयस्क भी नहीं हुए, इन कार्यों में शामिल हैं, बड़ों की बात मानना या उनका आदर करना तो दूर, उनका अपमान करने से लेकर उनके साथ भी दुश्मन जैसा व्यवहार करने से नहीं चूकते तो सोचना ज़रूरी हो जाता है कि आखिर गलती कहां हुई है?
हकीकत का सामना
इससे पहले कि आगे बढ़ें, एक अनुभव बताना है और वह यह कि कुछ वर्ष पूर्व  एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई, जिसकी उम्र पचास के लगभग थी, वह खूंखार जैसा दिखता था, बदन पर कई जगह कटने-फटने के निशान थे और स्वभाव झगड़ालू था। यह व्यक्ति अपने पड़ोसी से लड़ रहा था और उसे धमकी दे रहा था। बात बस इतनी थी कि पड़ोसी अपनी 15-16 साल की लड़की को स्कूल जाने से रोक रहा था और अपनी मां के साथ दूसरों के घरों में काम करने जाने और पैसे कमाने के लिए कह रहा था, जबकि लड़की पढ़ाई छोड़ना नहीं चाहती थी। इस बात को लेकर घर में रोज़ कोहराम मचता रहता था। यह घटना फिल्म बनाने के लिए बहुत अच्छी थी। जब उस व्यक्ति से पूछा कि वह क्यों अपने पड़ोसी की लड़की के लिए इस तरह की ज़िद्द कर रहा है तो उसका जवाब चौंकाने वाला था। कहने लगा कि ‘जब वह 10-12 साल का था तो अक्सर स्कूल से गैरहाज़िर हो जाता था, अध्यापक की तो क्या कहें, माता-पिता को भी बहका देता था।’  बड़ा होने पर उसे संगत ऐसी मिली कि वह उसमें बैठ कर नशे करने लग पड़ा। घरवालों ने पैसे देने बंद कर दिये तो चोरी तथा दूसरे अपराध करने शुरू कर दिए। इस तरह थाना, पुलिस, कोर्ट कचहरी और जेल आना-जाना शुरू हो गया। उसने बताया कि पूरा जीवन एक अपराधी की तरह बीतने लगा और अभी भी पीछा नहीं छूटा है। इसलिए अब मैं अगर किसी बच्चे को स्कूल जाते और पढ़ाई करते नहीं देखता हूं तो मुझे दुख लगता है। 
युवा वर्ग और अपराध
दौर चाहे वर्तमान हो या पिछले कुछ वर्षों का इतिहास हो, आंकड़े इसी बात की गवाही देते मिलेंगे कि युवा वर्ग में अपराध करने और इसमें दूसरों को भी शामिल करने की प्रवृत्ति का सबसे बड़ा कारण उनका अनपढ़ या मामूली पढ़ा लिखा होना और किसी भी तरह का काम करने के कौशल का न होना है। जघन्य अपराध की खोजबीन कर लीजिए जिसमें 15 से 25 साल तक का युवा वर्ग सम्मिलित पाया जाता हो तो लगभग शत-प्रतिशत वे ऐसे मिलेंगे, जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा या छोड़ दिया या निकाल दिए गए हों।यही कारण है कि बहुत से विकसित और विकासशील देशों में अगर स्कूल जाने की उम्र का कोई लड़का या लड़की पढ़ता-लिखता नहीं तो उसके लिए माता-पिता को ज़िम्मेदार मानकर उनसे अपने बच्चों के पालन-पोषण का अधिकार छीन लिया जाता है। जहां तक हमारे देश की बात है, यहां इस तरह का कोई कानून बनाने की कौन कहे, सोचा भी नहीं  जा सकता क्योंकि राजनीतिक दलों, सरकारों के मंत्रियों और सांसद तथा विधायकों में अनपढ़ों, मामूली पढ़े-लिखे और अपराध की दुनिया की सीढ़ी पर चढ़कर सत्ताधारी बने लोगों की तादाद उनसे कहीं ज्यादा है, जो राजनीति को देश के विकास और समाज कल्याण के लिए  सेवा का मार्ग समझते हैं।  शिक्षा की गुणवत्ता या क्वालिटी कैसी भी ही, इतना तो निश्चित है कि पढ़ने-लिखने से व्यवहार में विनम्रता और किसी भी काम को करने से पहले उसके बारे में भली-भांति सोच-विचार करने की बुद्धि का विकास तो होता ही है।
अपराध की मानसिकता
यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि क्या पढ़े-लिखे और बड़ी-बड़ी डिग्रियां रखने वाले तथा विदेशों से शिक्षा प्राप्त लोग अपराध करते नहीं पाए जाते तो आंकड़े कहते हैं कि इनका प्रतिशत पूरी आबादी के शून्य और एक प्रतिशत के बीच रहता है। मिसाल के तौर पर माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, सुब्रत राय, हर्षद मेहता जैसे अपराधी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं और इन्होंने जो अपराध किए वे आर्थिक अपराध हैं।
अपराध और रोज़गार
अपराधी बनने के लिए शिक्षा के बाद जिस कारण की सबसे बड़ी भूमिका है, वह है रोज़गार और जो अंतत: शिक्षा से ही जुड़ा हुआ है। बेरोज़गारी का सबसे बड़ा कारण शिक्षा का अभाव, कार्य कुशलता यानी स्किल का न होना और संसाधनों का सीमित होना तो है ही, साथ में इसके राजनीतिक और सामाजिक कारण भी हैं। बेरोज़गारी के अन्य कारण भी हो सकते हैं लेकिन उनका महत्व इतना नहीं है जितना कि इस बात का कि रोज़गार करने या पाने के लिए ज़रूरी शिक्षा और काम करने की इच्छा तथा उसे करने की योग्यता और कुशलता का न होना है।  यहां यह कहा जा सकता है कि सभी प्रकार से काबिल होते हुए भी रोज़गार नहीं मिलता तो इससे सरकारों की नीतियों की खामियों को तो ज़िम्मेदार माना जा सकता है जिन्हें बदलने और रोज़गारपरक बनाने के लिए विवश किया जा सकता है। आम आदमी को इससे कोई ज्यादा मतलब नहीं होता कि सरकार उसके लिए किस तरह की आर्थिक, औद्योगिक विकास की नीतियां बना रही है, उसे केवल इस बात से सरोकार होता है कि उसके रहन-सहन और आजीविका के साधन और परिवार के पालन-पोषण पर क्या असर होगा? यदि देश में बचपन से ही अपराधी बनने की राह को रोकना है तो उसके लिए माता-पिता और अभिभावकों को यह तय करना होगा कि वे बच्चे को उनके बचपन से ही पैसा बनाने की मशीन यानी एटीएम बनाना चाहते हैं और अपराध की दुनिया में कदम रखने की पहल करते हुए देखना चाहते हैं या फिर उनको शिक्षित कर बेहतर भविष्य के सपने को साकार करना चाहते हैं।

(भारत)