क्या अब किसानों को समर्थन मूल्य मिलना सुनिश्चित हो सकेगा ?

जो आज तक हुआ कुछ कुछ समझ में आता है, 
कोई बताए यहां, इस के बाद क्या होगा?
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पहल पर पंजाब विधानसभा में केन्द्र के कृषि कानूनों में संशोधन करने के प्रस्ताव तो सर्वसम्मति से पारित करवा लिए गए हैं परन्तु इसके बाद क्या होगा? सभी को जो समझ में आ रहा है, वह सिर्फ इतना है कि पंजाब विधानसभा में पारित प्रस्ताव कानून नहीं बन सकेंगे। पहली बात तो यह है कि राज्यपाल ही इस पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। न ही राष्ट्रपति द्वारा इन पर हस्ताक्षर किये जाने के आसार हैं। रही बात सुप्रीम कोर्ट में जाने की, यदि सुप्रीम कोर्ट पानी के समझौते रद्द करने के कानून, जो सिर्फ दो पक्षों के आपसी समझौते विधानसभा द्वारा रद्द किये जाने की बात थी, को रद्द कर सकती है, तो इन नये कानूनों के बारे सुप्रीम कोर्ट में जीत की उम्मीद रखनी ‘मूर्खों के स्वर्ग’ में रहने जैसी बात ही है। 
नि:सन्देह केन्द्र ने धक्का किया है परन्तु उसने कानून बनाते समय संविधान के दायरे की पेचीदगिओं का ध्यान तो रखा ही है। किसान यूनियनें खुश हैं कि हमारे संघर्ष की यह उपलब्धियां हैं कि हरसिमरत कौर बादल को त्याग-पत्र देना पड़ा और अकाली दल को भाजपा छोड़ कर किसानों के साथ खड़ा होना पड़ा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को विधानसभा का सैशन बुला कर संशोधित कानून पारित करवाने पड़े। परन्तु क्या किसानों को समर्थन मूल्य मिलना सुनिश्चित हो गया है? नहीं! बिल्कुल नहीं!! वैसे जिस दिन मुख्यमंत्री तथा किसान नेताओं में बैठक थी, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने उसी दिन ही कहा था कि हम तो कानून पारित कर देंगे परन्तु क्या गवर्नर उप पर हस्ताक्षर कर देंगे? अब लड़ाई सीधी केन्द्र के साथ है, देखना होगा कि किसान नेता कितनी समझदारी से लड़ते हैं और केन्द्र सरकार इस आन्दोलन के प्रति क्या रवैया अपनाती है? 
कैप्टन का स्टैंड
कोई कुछ कहे परन्तु एक बात स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को तीर निशाने पर लगाना आता है और वह यह भी जानते हैं कि पंजाबियों की मानसिकता को कैसे जीतना है? उनके द्वारा केन्द्रीय कानूनों के खिलाफ पारित करवाए गए प्रस्ताव कानून बने चाहे न, परन्तु जिस तरह उन्होंने देश भर में पहल की है और कहा है कि त्याग-पत्र मेरी जेब में है या केन्द्र नि:सन्देह मुझे बरतरफ कर दे। उससे उन्होंने अपना कद अवश्य ऊंचा किया है। पंजाब के विधेयकों से कोई और लाभ हो या नहीं,  मामला कुछ वर्षों के लिए लटक  अवश्य जाएगा। परन्तु एक खतरा भी लगता है कि कहीं इससे पंजाब के कृषि सैक्टर में निजी निवेश बिल्कुल न रुक जाए। यह फैसला अब गैर-भाजपा शासित राज्यों को ऐसा करने हेतु उत्साहित करेगा, जिससे बात सिर्फ समर्थन मूल्य तक ही नहीं रुकेगी, बल्कि केन्द्र राज्य संबंधों तथा संघवाद की परिभाषा पर भी बहस तेज़ होगी। 
परन्तु पंजाब की विरोधी पार्टियों को जब यह अहसास हुआ कि इसका राजनीतिक लाभ तो कैप्टन तथा कांग्रेस को हो रहा है तो अकाली दल, आप तथा अकाली दल डैमोक्रेटिक आदि कहने लग पड़े कि मुख्यमंत्री ने यह विधेयक ला कर सिर्फ ड्रामा ही किया है। नि:सन्देह अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पूरे पंजाब को मंडी घोषित करने की मांग कर चुके हैं परन्तु अकाली दल ने विधानसभा में यह मांग नहीं उठाई। अब जब विरोधी पार्टियां यह आरोप लगा रही हैं कि हमें विधेयक पढ़ने तथा समझने का अवसर ही नहीं मिला तो दोष किसका है? विरोधी पार्टियां विधेयक पेश होते ही इस मांग पर अडिग होती कि हमें इस विधेयक को पढ़ने, समझने तथा कानूनी राय लेने के लिए 2 दिन का समय दिया जाए और इस लिए 2 दिन के लिए विधानसभा का अधिवेशन स्थगित किया जाए। वैसे अच्छा होता यदि कांग्रेस स्वयं ऐसा करती। परन्तु उस समय तो विरोधी पक्ष के नेता मुख्यमंत्री के साथ प्रैस कांफ्रैंस में शामिल होते हैं और गवर्नर के पास भी जाते हैं। इस दौरान कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ट्वीटों पर नोक-झोंक भी अपने गंभीर अर्थ एवं प्रभाव रखती है। 
पंजाब मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा
इस समय हवा में ‘सरगोशियां’ हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब मंत्रिमंडल में वापस लेने पर सहमति हो गई है। जिस तरह की जानकारी है उसके अनुसार मुख्यमंत्री का एक बड़ा नज़दीकी अधिकारी पहले सिद्धू से मिला, फिर कृषि संबंधी शोध विधेयकों को पेश करने से पहले कैप्टन ने सिद्धू के साथ फोन पर बातचीत भी की। परिणाणस्वरूप सिद्धू किसानों के मामले पर मुख्यमंत्री के साथ खड़े हैं। परन्तु अब प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या सिद्धू को खाली पड़ी मंत्री की कुर्सी तथा मुख्यमंत्री के पास पड़े मंत्रालयों में से कोई एक देकर बिना किसी हिलजुल के मामला निपटा लिया जाएगा? या उसे दोबारा निकाय सरकारों संबंधी मंत्रालय ही दिया जाएगा? चर्चा तो यह है कि सिद्धू ने गृह मंत्रालय या निकाय सरकारों बारे मंत्रायलों में से कोई एक मांगा था। मुख्यमंत्री द्वारा गृह मंत्रालय तो सिद्धू को देने के लिए तैयार होने की  संभावना न के बराबर ही है। इसलिए चर्चा है कि सिद्धू को फिर स्थानीय निकाय सरकार संबंधी विभाग ही दे दिया जाएगा। यदि ऐसा होता है तो स्पष्ट है कि अपने-आप को सरकार में नम्बर दो मानने वाले ब्रह्म महेन्द्रा को यह विभाग छोड़ना पड़ेगा। पहली बात तो यह है कि क्या वह किसी छोटे विभाग पर सहमत हो जाएंगे? दूसरी बात क्या पूरे मंत्रिमंडल में कोई बड़ा फेरबदल भी किया जा सकता है? जानकार सूत्रों के अनुसार अब जब विधानसभा चुनावों में सिर्फ सवा साल ही शेष है तो यदि मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल में कोई बड़ा फेरबदल करके अपनी सरकार पर ‘न कार्य करने वाली सरकार’ का ठप्पा उतार कर तेज़ी से कार्य करते हैं और कुछ दागी चेहरे हटा कर साफ चेहरे आगे लाते हैं और पंजाब में चल रहे विभिन्न तरह के माफिया ग्रुपों के खिलाफ कुछ सख्त कदम उठाने की हिम्मत करते हैं तो इसका सरकार, कांग्रेस तथा कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को आगामी चुनावों में कुछ न कुछ लाभ अवश्य हो सकता है। 
 यहां यह उल्लेखनीय है कि चाहे मुख्यमंत्री कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष सुनील जाखड़ के निकट हैं परन्तु पंजाब कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाए जाने के चर्चे काफी तेज़ हैं और इस मामले में एक मंत्री के नाम पर सहमति बनती सुनाई दे रही है। हालांकि आम तौर पर कांग्रेस सिख जट्ट के मुख्यमंत्री होते हुए किसी जट्ट को ही अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार नहीं होती। परन्तु अब चर्चा है कि पंजाब कांग्रेस का नया अध्यक्ष बना कर 3 वर्किंग अध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं, जिससे सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिल सके। 
यदि ऐसा हुआ तो मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल के आसार बढ़ जाएंगे। वैसे मंत्री बनने के इच्छुकों द्वारा भी कोशिशें शुरू कर दी जाने के चर्चे सुनाई देने लग पड़े हैं। मंत्री बनने के इच्छुकों की एक लम्बी सूची है। फिर भी जो नाम अधिक चर्चा में हैं उनमें अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग, राज कुमार वेरका, संगत सिंह गिलजियां के अतिरिक्त अमरीक सिंह ढिल्लों, प्रगट सिंह, फतेहजंग सिंह बाजवा, राणा गुरजीत सिंह तथा कुलजीत सिंह नागरा आदि शामिल हैं।  
-मो. 92168-60000