देश के लिए खेलना चाहती है नेत्रहीन अनुष्का दूबे

‘निगाहें कम हैं मगर हसरतें कम नहीं, हम भी ज़िन्दा दिल हैं कमाल के।’ जी हां, आंखों से नेत्रांध बच्ची अनुष्का दूबे जिसे बहुत कम दिखाई देता है, परन्तु वह भविष्य में देश के लिए खेलने का सपना मन में पाल रही है और वह कहती है कि एक दिन देश के लिए खेलते हुए वह तालियों की गूंज सुने और यही उसकी इच्छा है। अनुष्का दूबे के पिता पंकज दूबे और माता हानसा दूबे की लाडली ने जब जन्म लिया तो लगा कि बच्ची को बहुत ही कम दिखाई देता है और इस बात की पुष्टि जब डाक्टरों ने कर दी तो प्रकृति के इस घटनाक्रम को स्वीकार कर लिया और माता-पिता ने उसे मध्य प्रदेश के शहर रतलाम के एक साधारण स्कूल में दाखिल करवा दिया परन्तु स्कूल में पढ़ते हुए उसके मन में एक ख्याल आया था कि उसे खेलों का शौक है परन्तु स्कूल में उसके लिए खेलने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उसे अपना सपना उस समय सच होता दिखाई देने लगा, जब उसने प्राथमिक शिक्षा के बाद देहरादून के राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांग सशक्तिकरण संस्थान यानि ब्लाइंड स्कूल में वर्ष 2019 में दाखिला ले लिया जहां उसे अध्यापक और स्पैशल खेलों के कोच नरेश सिंह नयाल का साथ मिला और स्कूल में जब नेत्रहीन बच्चों को खेलते देखा तो अनुष्का दूबे को लगा कि अब उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी। बस फिर क्या था नरेश सिंह नयाल ने दूसरे बच्चों के साथ अनुष्का दूबे के भी खेलों के क्षेत्र में तराशना शुरू कर दिया। शुरुआत उसने क्रिकेट खेलने से की और जल्द ही उसका झुकाव दौड़ने की ओर हो गया। उसने एक धावक बनने की ठान ली और वह अब तक कोरोना काल में भी 90 के लगभग वर्चुअल रनिंग इवैंट कर चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय मैदान में दौड़ने की अपनी इच्छा को दिन-प्रतिदिन आगे ले जा रही है। उसके कोच नरेश सिंह नयाल बड़े गर्व से कहता है कि बच्ची अनुष्का दूबे देश के लिए अवश्य दौड़ेगी और यह एक संभावना नहीं बल्कि हकीकत है क्योंकि वह वास्तव में ज़िन्दादिल है।  

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