तप, त्याग और सेवा की मूर्ति थे ब्रह्मा बाबा

भारत भूमि को देवभूमि भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब भी मानवता पर किसी प्रकार का संकट आया, तब आध्यात्मिक शक्तियों ने अवतरित होकर विश्व मानवता की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा की। अपने त्याग, तपस्या व सेवा के बल पर समाज को नई दिशा दी। ऐसी ही महान विभूतियों में से एक थे दादा लेखराज (पिता श्री ब्रह्मा बाबा)।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्था की स्थापना सन 1936 में सिंध, हैदराबाद (अब पाकिस्तान) में हुई। स्वयं निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा ने साकार तन को माध्यम बना कर नई सृष्टि की स्थापना के कार्य निमित्त जिस महान विभूति को भेजा उनका नाम था ब्रह्मा बाबा।उनका जन्म सन् 1870 के दशक में सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) के एक गांव में हुआ। उनके पिता जी एक स्कूल अध्यापक थे और बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। काफी संघर्ष के बाद उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया और कुछ ही वर्षों में वह एक नामचीन जौहरी बन गए। उनके संस्कार भक्ति भाव वाले और धर्म परायण थे। उन्होंने 12 गुरु धारण किए, फिर भी परमात्मा का सत्य परिचय नहीं हुआ। सन् 1936 में एक दिन ब्रह्मा बाबा यानि दादा लेखराज के घर सत्संग चल रहा था। अचानक वह सत्संग से उठ कर अपने कमरे में चले गए। वहीं निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा शिव ने उनको नई स्वर्णिम दुनिया अर्थात पुरानी दुनिया के महाविनाश का साक्षात्कार कराया। इस घटना के बाद उनके जीवन में वैराग्य आने लगा। साथ में उनको परमात्मा शिव के निराकार ज्योति बिंदु का भी साक्षात्कार लगातार होने लगा। अब उनको निश्चय हुआ कि यह मेरे लिए परमात्मा का आदेश है। निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा द्वारा दी ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने एक सत्संग शुरू किया। सत्संग में दादा की ओम् ध्वनि को सुनने मात्र से कइयों को भविष्य के साक्षात्कार होने लगे। दिन प्रतिदिन सत्संग बढ़ता गया और बाद दादा लेखराज के जीवन में परिवर्तन आने लगा। जैसे शास्त्रों में वर्णन है कि ब्रह्मा के द्वारा नई दुनिया की स्थापना होती है, मगर कैसे संकल्प से नई सृष्टि की स्थापना होती है, इसका कहीं पर भी विस्तृत रूप से वर्णन नहीं है। जब दादा लेखराज ने अपना जीवन लौकिक से अलौकिक में परिवर्तन किया, तब निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा ने उनको कर्त्तव्य वाचक नाम दिया पिता श्री ब्रह्मा बाबा। ब्रह्मा बाबा ने 8 महिलाओं का एक ट्रस्ट बनाया और अपनी सारी सम्पत्ति इस ट्रस्ट के नाम कर दी। यहां सत्संग बहुत अच्छा लगने लगा। कइयों ने सत्संग का विरोध भी किया। उन्होंने अपने संबंधियों को इस मंडली में जाने से रोका। सत्संग भवन के बाहर धरने-प्रदर्शन किए। सत्संग भवन को आग तक लगाई गई। कुछ लोगों ने ब्रह्मा बाबा की हत्या करने का भी प्रयास किया मगर ब्रह्मा बाबा का अटल निश्चय था कि यह परमात्मा का कार्य है। मैं तो माध्यम हूं, इसलिए वे हमेशा अचल, अडोल व निर्भय रहे। करीब 14 वर्ष तक ब्रह्मा बाबा ने 350 लोगों के इस संगठन को ईश्वरीय आदेशानुसार आध्यात्मिक प्रशिक्षण दिया। सन 1950 में यह संगठन कराची (पाकिस्तान) से माउंट आबू (भारत) में स्थानांतरित हुआ। चूंकि परमात्मा के इस कार्य में बहनों का विशेष योगदान रहा, इस कारण इस संस्था का नाम ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय’ रखा गया। इस ईश्वरीय संदेश को संपूर्ण भारत और विश्व में फैलाने के लिए ब्रह्मा  बाबा ने सब को प्रेरित किया। ब्रह्मा  बाबा के त्याग, तपस्या ने जो यह आध्यात्मिक नींव रखी, वह आज वट वृक्ष की भांति पूरे विश्व में फैल चुकी है। आज लाखों-करोड़ों आत्माएं पिता श्री ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चल रही हैं। विश्व के 140 देशों में अपनी 10,000 शाखाओं में आध्यात्मिक कार्य इस संगठन द्वारा चल रहा है। पिता श्री ब्रह्मा अपनी रचना को योग्य बना कर 18 जनवरी, 1969 को अपनी नश्वर देह त्याग कर अव्यक्तवासी बन गए। मगर उनके त्याग, तप सेवा की अद्भुत कहानी आज भी हर दिल, हर जुबान पर है। उनका व्यक्तित्व सारे संसार के लिए महान प्रेरणा स्त्रोत है। उनके स्मृति दिवस पर हम सभी अंत:करण से स्नेह और भाव भरे कोटि-कोटि श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं और उनके पदचिन्हों पर चल कर स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य को सफल बनाने में सदा सहभागी बनने का संकल्प करते हैं।