आज़ादी की लड़ाई के अग्रणी नायक शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय

आज़ादी की लड़ाई में एक से बढ़कर एक वीर व क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी है। उन शख्सियतों के जीवन और संघर्षों पर नजर डालें तो हैरानी भी होती है और रगों में जोश भी भरता है। उन्हीं क्रांतिकारियों में से एक शेरे पंजाब व पंजाब केसरी के नाम से विख्यात लाला लाजपत राय हैं, जोकि बहु आयामी शख्सियत के मालिक थी। वह जहां आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के साथ लोहा ले रहे थे, वहीं आर्य समाज व अन्य संस्थाओं के साथ जुड़ कर शिक्षा व समाज सुधार के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रहे थे। अखबार व पत्रिकाएं निकाल कर आजादी के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में लगे थे। साईमन कमीशन के विरोध में आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार की लाठियों से घायल होने के बाद वह शहीद हो गए। उन्होंने कहा था कि उनके शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेजी शासन के ताबूत पर आखिरी कील साबित होगी। ऐसा ही हुआ और उनकी शहादत के बाद अनेक क्रांतिकारियों ने उसका बदला लेने के लिए कमर कस ली।लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को गांव ढूडीके में अपने ननिहाल में हुआ था। यह गांव अब पंजाब के मोगा जिले में पड़ता है। उनके अध्यापक पिता मुंशी राधाकृष्ण लुधियाना के जगरांव कस्बे में रहते थे।   लाला लाजपत राय ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व विपिन चन्द्र पाल के साथ मिलकर कांग्रेस में गर्म दल को जन्म दिया। तीनों की यह तिकड़ी इतिहास में लाल-बाल-पाल के नाम से मशहूर हुई। इसने कांग्रेस में प्रखर अभिव्यक्ति और आजादी के उग्र आंदोलन की जरूरत रेखांकित की। इससे पहले कांग्रेस पार्टी साल में एक बार अधिवेशन करने और शांतिपूर्ण ढंग से अपनी मांगें रखने वाले लोगों का समूह था। लाला जी ने कांग्रेस के 1907 में हुए सूरत अधिवेशन में गर्म दल की विचारधारा का सूत्रपात किया। इससे पहले उन्होंने बंग-भंग का कड़ा विरोध किया। 1907 में ही जब किसान अपने अधिकारों के लिए उग्र हुए तो अंग्रेजी सरकार ने गुस्सा उतारते हुए लाला जी व स. अजीत सिंह को बर्मा के मांडले में नजरबंद कर दिया। सरकार के इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ और सरकार को अपना फैसला वापिस लेना पड़ा। उन्होंने 1920 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का पंजाब में नेतृत्व किया, लेकिन आंदोलन को अचानक वापिस लिए जाने के प्रति उन्होंने रोष जताया। अंग्रेजी सरकार के शिक्षण संस्थानों का विरोध, विदेशी वस्तुओं व अदालतों का बहिष्कार, शराब के विरुद्ध आंदोलन, चरखा व खादी के प्रचार प्रसार के कामों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। उन्होंने स्वराज पार्टी व नेशनलिस्ट पार्टी का गठन किया। अपने अमेरिका प्रवास के दौरान उन्होंने होमरूल लीग की स्थापना की। संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1928 में साइमन कमिशन भारत आया। कमिशन में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं होने के कारण भारतीय नागरिकों का गुस्सा भड़क गया। देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगे। 30 अक्तूबर के दिन लाहौर के विरोध-प्रदर्शन में लाला लाजपत राय आगे-आगे थे। पुलिस अधीक्षक जेम्स ए.स्कॉट ने मार्च को रोकने के लिए लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। पुलिस ने लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं। बुरी तरह जख्मी हुए लाला लाजपत राय का 17 नवम्बर, 1928 को निधन हो गया। लाला जी की मृत्यु से पूरे देश में गुस्सा फैल गया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व चन्द्रशेखर आजाद सहित क्रांतिकारियों ने इस मौत का बदला लेने का निर्णय किया। उनकी मृत्यु के एक महीने बाद 17 दिसंबर को कार्रवाई करते हुए भगत सिंह व  राजगुरु ने स्कॉट पर गोली चलाई, लेकिन निशाना चूक जाने से गोली सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सांडर्स को लगी। सांडर्स की हत्या के इल्जाम में भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव पर लाहौर षड्यंत्र केस चला गया और उन्हें फांसी की सज़ा दी गई।

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