बलिदान दिवस पर विशेष स्वाधीनता संग्राम के आधार स्तम्भ लाला लाजपत राय

भारतीय भूमि को वीर प्रसूता धरा का गौरव प्राप्त है। इस धरा ने असंख्य वीरों, महापुरुषों तथा पराक्रमी योद्धाओं को जन्म दिया है जिन्होंने आगे चलकर देश के धर्म, संस्कृति तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं स्वाधीनता की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर  किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलन के प्रखर नेता एवं सूत्रधार लाला लाजपत राय मन, वचन और कर्म से पूर्णरूपेण अपने राष्ट्र को समर्पित थे। इनके पिता जी की  हार्दिक इच्छा थी कि उनका बेटा वकील बने इसलिए उच्च शिक्षा के लिए सन 1880 में सरकारी कॉलेज लाहौर में  लाजपत राय का प्रवेश करवाया गया। वहां उनकी मुलाकात लाला हंसराज, पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी के साथ हुई तथा उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर लाला  जी आर्य समाज के साथ जुड़े। 
लाजपत राय जी समाज के सभी वर्गों के कल्याण के पक्षधर थे। सन 1907 में लाजपत राय जी के नेतृत्व में किसानों ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया जिसके कारण लाजपत राय जी को ब्रिटिश सरकार ने मांडले जेल में बंद कर दिया। जनता ने जब इस निर्णय का विरोध किया तो ब्रिटिश सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा तथा लाला लाजपत राय जी को जेल से रिहा कर दिया गया। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज का प्रचार-प्रसार उन दिनों पंजाब में पूरी तरह से फैला हुआ था। आर्य समाज उस समय एक ऐसा संगठन था जिसने नौजवानों के मन में राष्ट्रीयता की भावना का संचार करके देश की स्वाधीनता हेतु  प्रेरित किया। लाला लाजपत राय जी पर भी स्वामी दयानंद के इस संगठन आर्य समाज का विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। 
स्वामी दयानंद सरस्वती को लाला लाजपत राय जी अपना आध्यात्मिक पिता मानते थे। लाला लाजपत राय उच्च कोटि के व्यक्तित्व से परिपूर्ण बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ तथा स्वतंत्रा सेनानी के रूप में विशेष रूप से जाने जाते हैं। सन 1894 में उन्होंने ही पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की। 
सन 1917 में लालाजी अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में गए जहां पर इन्होंने इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नामक संगठन की स्थापना की तथा भारत की स्वाधीनता हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त किया। जलियांवाला बाग की घटना के विरोध पूरे पंजाब में ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में एक विशाल आंदोलन किया गया जिस के सूत्रधार लाला लाजपत राय ही थे। जब गांधी जी ने 1920 में पूरे देश में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तो पंजाब में इस आंदोलन का लाला लाजपत राय ने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उस समय का पूरा पंजाब प्रांत लाला जी की एक हुंकार पर उनके साथ खड़ा हो जाया करता था। पंजाब प्रांत की राजनीति में लाला जी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनके साहसए दृढ़ संकल्प एवं पराक्रम के कारण ही उन्हें शेरे पंजाब की उपाधि प्रदान की गई थी। 1920 में कोलकाता अधिवेशन में राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष भी इनको बनाया गया। 
30 अक्तूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक विशाल प्रदर्शन रखा गया जिसका नेतृत्व भी सफलतापूर्वक लाजपत राय ने किया। साइमन कमीशन के सात सदस्यों में से कोई भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं था। पूरा पंजाब लाला लाजपत राय के मार्गदर्शन में इस कमीशन के विरोध में खड़ा होकर ‘साइमन गो बैक, साइमन वापस जाओ’ के नारों से गूंज उठा था। साइमन कमीशन का विरोध प्रदर्शन कर रहे लाला जी पर जेम्स वाट ने लाठी चार्ज किया जिससे लाला जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। एक सभा को संबोधित करते हुए इस घायल शेर ने कहा था कि ‘मेरे सिर पर पड़ा लाठी का एक-एक प्रहार अंग्रेज़ी शासन के ताबूत की कील साबित होगा।’ 
लाजपत राय जी एक कुशल राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता संग्राम के निर्भीक अनुगामी, उच्च कोटि के लेखक तथा वक्ता थे। इटली के क्रांतिकारी ग्यूसेप मैजिनी से लाला जी विशेष रूप से प्रभावित थे। इनकी कलम आग उगलती थी और इनकी वाणी क्त्रांति उत्पन्न कर देती थी। लाला जी की वाणी में ओज और तेज था। लाजपत राय जी क्त्रांति कारियों के गुरु थे। सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव जैसे हज़ारों युवाओं ने लाला जी से प्रेरणा लेकर अपना सर्वस्व मातृभूमि हेतु अर्पित किया था।
 लाला जी ने यंग इंडिया, दुखी भारत, भारत पर  इंग्लैंड का कर्ज, भारत का राजनीतिक भविष्य आदि अनेक प्रसिद्ध पुस्तकों की रचना की। लाजपत राय जी ने कृष्ण, शिवाजी, दयानंद, गैरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनियां भी लिखीं। वंदे मातरम, द पीपुल आदि प्रसिद्ध समाचार पत्रों के माध्यम से अपने क्रांतिकारी लेखों के द्वारा युवा वर्ग का मार्ग प्रशस्त किया। भारत की स्वतंत्रता हेतु प्रतिबद्ध लाल बाल पाल की त्रिमूर्ति में इनका नाम सर्वोपरि था। लालाजी पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वह शांति और क्त्रांति दोनों विचारधाराओं के अनुगामी थे। उनका चिंतन था कि राष्ट्र की स्वाधीनता अंग्रेज़ों के आगे नतमस्तक होकर नहीं मिलना, इसके लिए क्रांति एवं बलिदान के पथ की आवश्यकता होगी।  उस समय कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति से दुखी होकर इन्होंने श्रद्धानंद, मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर हिंदू महासभा के कार्य को आगे बढ़ाया। 1925 ईस्वी में हिंदू महासभा के कलकत्ता अधिवेशन का लाला जी को अध्यक्ष बनाया गया।  लाला जी स्वावलंबन से स्वराज्य के समर्थक थे। साइमन कमीशन के विरोध के समय गंभीर रूप से घायल लाला जी ने 17 नवम्बर, 1928 को राष्ट्र हेतु अपने भौतिक शरीर को भी समर्पित कर दिया। लाजपत राय जी का जीवन राष्ट्र हित सहे ये कष्टों तथा संघर्षों की महागाथा है जिसे आने वाली पीढ़ियां युगों तक सुनती रहेंगी।