सर्वोच्च् न्यायालय का महत्त्वपूर्ण फैसला

पिछले लगभग दो दशकों में जब-कभी भी विधानसभा या लोकसभा के चुनाव हुये हैं तो हर समय इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीनें (ई.वी.एम्स) के संबंध में कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, बुद्धिजीवियों तथा नागरिकों की ओर से संशय ज़रूर प्रकट किये जाते रहे हैं। देश में ई.वी.एम्स का सबसे पहली बार उपयोग वर्ष 1982 में केरल की परूर विधानसभा सीट के 50 मतदान केन्द्रों पर किया गया था, परन्तु इस मशीन संबंधी कोई कानून न होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने इन चुनावों को रद्द कर दिया था। बाद में इस संबंध में कानून बनने के उपरांत वर्ष 1998 से इन मशीनों द्वारा मतदान शुरू हो गया।
देश में वर्ष 1951 में लिखित संविधान अस्तित्व में आने के बाद केन्द्र तथा राज्यों में वोटों द्वारा सरकारें चुनना लोकतंत्र की अहम प्रक्रिया मानी जाती रही है। इस प्रक्रिया को सम्पन्न करने वाले भारतीय चुनाव आयोग की कारगुज़ारी पर भी कई बार उंगलियां उठती रही हैं परन्तु इसने समय-समय पर मतदान की इस महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया में व्यापक सुधार भी किये हैं। 1951 से वर्ष 2004 तक जहां मतदाताओं की संख्या में बेहद वृद्धि हुई है, वहीं चुनाव आयोग की ओर से मतदान की प्रक्रिया को लगातार पारदर्शी बनाने के यत्न भी होते रहे हैं। आज मत-पेटियों को जब्री उठा कर ले जाने का ़खतरा खत्म हो गया है। चाहे मतदाताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है परन्तु बड़ी सीमा तक बोगस मतदान पर लगाम लगाई गई है। मतदाताओं के पहचान पत्र शुरू करने के समय भारी विवाद हुआ था, परन्तु अब यह प्रक्रिया आम की तरह बन चुकी है। पिछले 26 वर्ष में हज़ारों ही स्थानों पर इस मशीनी प्रक्रिया द्वारा होते चुनावों में चाहे संशय तो उभरते रहे हैं परन्तु वास्तविक रूप में इनसे किसी तरह की हेरी-फेरी होने के या इनके द्वारा निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया को किसी भी तरह प्रभावित करने के ठोस प्रमाण सामने नहीं आये। यदि कभी ऐसे प्रमाण पेश किये जाने का यत्न भी किया गया तो उनमें भी कोई सच्चाई दिखाई नहीं दी। जो पार्टियां या उम्मीदवार चुनावों में हार जाते हैं, उनकी ओर से ज़रूर ऐसे सवाल उठाये जाते रहे हैं, परन्तु ई.वी.एम्स द्वारा समय-समय पर वे स्वयं भी तथा उनकी पार्टियों के अन्य उम्मीदवार भी चुनाव जीतते रहे हैं। जो बयानों द्वारा वोट-मशीनों संबंधी अधिक विरोध प्रकट करते रहे हैं, उनकी भी सरकारें बनती रही हैं। लगातार इन संशयों के उठने से तत्कालीन चुनाव आयोग इन मशीनों के किसी भी तरह के दुरुपयोग को रोकने संबंधी डट कर पहरा देते रहे हैं तथा समय-समय पर इनकी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए इनमें तकनीकी सुधार भी किये जाते रहे हैं। इस संबंध में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी स्पष्ट रूप में ई.वी.एम्स की विश्वसनीयता संबंधी बयान दिया था।
पिछले समय में किये गये इन सुधारों में ही ई.वी.एम्स के साथ वी.वी.पैट प्रणाली जोड़ी गई है, जिसके द्वारा मतदाता को अपने डाले गये वोट के उम्मीदवार तथा उसका चुनाव चिन्ह भी दिखाई देता है, जिसे कि वह मतदान करता है। इनकी विश्वसनीयता में वृद्धि करने के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में पांच-पांच पोलिंग बूथों की वी.वी.पैट से हासिल पर्चियों का ई.वी.एम्स द्वारा डाले गये वोटों के साथ मिलान भी किया जाता रहा है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इन मशीनों के प्रयोग के विरुद्ध दायर की गई सभी याचिकाओं को स्पष्ट रूप में रद्द करते हुये यह कहा है कि पर्चियों द्वारा मतदान करना समय को उल्टा चक्कर देने के समान है तथा यह मूलभूत रूप में हुये तकनीकी विकास को अस्वीकार करना है। यह भी कि 97 करोड़ मतदाताओं की विशाल संख्या तथा मत-केन्द्रों की संख्या के दृष्टिगत अब पीछे की ओर वापिस लौटना सम्भव नहीं है, परन्तु इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में कुछ और आदेश भी दिये हैं, जिनसे इस चुनाव प्रक्रिया में और महत्त्वपूर्ण सुधार किये जा सकते हैं। न्यायालय ने चुनाव आयोग को एक मई, 2024 से सिंगल लोडिंग यूनिटों को कन्टेनर में पोलिंग एजेंटों तथा उम्मीदवारों की उपस्थिति में सील करके इनका रिकार्ड 45 दिन तक सुरक्षित रखने के लिए कहा है। इन यूनिटों को इलैक्ट्रानिक मशीनों के साथ ही स्ट्रांग रूम में रखा जाना ज़रूरी है। इसके साथ ही चुनाव परिणामों के बाद सात दिन के भीतर यदि कोई दूसरे या तीसरे स्थान पर रहा उम्मीदवार मतों की गिनती संबंधी आपत्ति व्यक्त करके कोई लिखित आवेदन करता है तो संसदीय चुनाव क्षेत्र के हर विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत इलैक्ट्रानिक मशीनों का इंजीनियरों से रिकार्ड निकलवाया जा सकेगा। हम चुनाव प्रणाली को और विश्वसनीय बनाने के संबंध में न्यायालय के इस आदेश को एक महत्त्वपूर्ण कदम समझते हैं। प्रत्येक पक्ष से मतदान की प्रक्रिया संबंधी पारदर्शिता बनाये रखने की ज़रूरत है, ताकि इस वोट प्रणाली के संबंध में उठाये जाते संशयों को बड़ी सीमा तक और कम किया जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द