कलात्मक पद-चिन्ह—4 पंजाबी लोक गायन का एक युग रणजीत कौर

बीबी रणजीत कौर को भाषा विभाग पंजाब की ओर से पंजाबी दोगाना गायिकी में लम्बा समय अपना योगदान देने के लिए शिरोमणि पंजाबी गायक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। श्रोताओं की जुबान और दिल में बसी रणजीत कौर ने तीन दशक मोहम्मद सद्दीक के साथ गाकर श्रोताओं के दिलों में राज किया है और गायिकी को अपना पेशा और जुनून बनाया। सबसे पहले गीत अमर सिंह शेरपुरी के साथ गाकर फिर लगातार पारिवारिक और उत्तम गीत गाकर देश-विदेश में अपना अच्छा मुकाम स्थापित कर लिया। चाहे वह रेडियो, टैलीवीज़न पर गा रही हो, गीत रिकार्डिंग करवा रही हो या फिर पार्श्व गायिका के तौर पर गा रही हो। वह गीत के बोल और संगीत में डूब कर गायिकी की चरम सीमा पर पहुंचती है। पंजाबी फिल्में रानो एवं गुड्डो में उन्होंने अपने अभिनय के जौहर भी दिखाये। पंजाबी गायिकी के क्षेत्र में रणजीत कौर बहुमुल्य एवं महत्त्वपूर्ण योगदान पंजाबी संस्कृति की शान है। 
18 अक्तूबर, 1950 को रोपड़ में जन्मीं रणजीत कौर ने पिता ज्ञानी आत्मा सिंह और मां प्रकाश कौर के प्यार और स्नेह को पाया। बचपन से ही गाने का शौक था तथा माता-पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए एवं उस्ताद बाकर हुसैन के पास से संगीत की शिक्षा दिलवाई। उन्होंने पंजाबी सभ्याचार का रंग अखाड़ों में से अपने गीत  द्वारा सम्भाल कर रखा। दूर-दराज़ के गांव और कस्बों से लोग उनकी आवाज़ सुनने के लिए पहुंचते। पंजाबी भाषा एवं लोक बोली में गाये और रिकार्ड हुये गीत उनका बहुमूल्य सभ्याचार है। उनके अनेक गीत लोक मुहावरों की तरह लोगों की जुबान पर थे। ‘खाली घोड़ी हिमकदी दी, उते नहीं दिहदा वीर’, ‘अज्ज तूं मैंनू मार प्वाई ननदे’, ‘नानक वीरा मैं तैंनूं घोड़ी चढ़ाऊंदी आं’, ‘मल्लकी कीमा’, ‘अस्सी अल्लड़ पुणे विच एवें अखियां ला बैठे’, ‘मैंनूं गर्मी दा हो गया बुखार’ आज भी लोगों के ज़हन में है।  रणजीत कौर ने तवियां वाला, कैसेटों वाला, सीडी वाला युग देखा है। उनकी गायिकी में पंजाब की लोक नायिका मुटियार के जज़्बों का प्रकटावा करते हैं। मोहम्मद सद्दीक और रणजीत कौर के दोगाना के युग में एक ही समय में 8-10 गीतों का तवा, कैसेट या सीडी निकालनी पड़ती थी। आज की तरह एक ही गीत पर लोकप्रियता हासिल करने का युग उस समय नहीं था। रणजीत कौर की गायिकी में निखार लुधियाना आकर आया। एक साक्षात्कार में रणजीत कौर ने बताया कि लुधियाना आकर नरेन्द्र बीबा के पड़ोस में आने से गायिकी की प्रेरणा और मजबूत हुई। 7-8 वर्ष की आयु में गुरुद्वारा या पारिवारिक विवाह-शादियों में गाने की रूचि ने रणजीत कौर के भीतर गाने का जुनून और जज़्बा पैदा कर दिया। माता-पिता द्वारा दी हिम्मत और उत्साह ने उनके हौसले बुलंद कर दिये और 16 वर्ष की आयु में पहला गीत अमर सिंह शेरपुरी के साथ मिलकर गाया ‘माही वे माही मैंनूं भंग चढ़ गई।’ एच.एम.वी. कम्पनी की ओर से रिकार्ड किये गये गीत के साथ उनकी गायिकी की चर्चा हो गई। 1965 में साबर हुसैन साबर और रमेश रंगीला के उत्साह ने भी नई दिशाएं दिखाईं। मोहम्मद सद्दीक के साथ 1965 में गायिकी की शुरुआत उनके जीवन का ऐसा अध्याय था जिसने उनके लिए नये रास्ते खोल दिये। पहला गीत मोहम्मद सद्दीक के साथ गाया ‘तेरा लैण मुकलावा नीं मैं आया बल्लिये’। बब्बू सिंह मान की कलम से लिखे गीतों ने रणजीत कौर और मोहम्मद सद्दीक की गायक जोड़ी को लगातार निखारा। रणजीत कौर का 35 वर्ष का गायिकी का स़फर मजबूरी और शौक का मिला-जुला इतिहास है। आधुनिक समय की गायिकी से रणजीत कौर की गायिकी का बहुत बड़ा अंतर दर्शकों की उपस्थिति में लगातार गाने ने उन्हें स्टेज की रानी बना दिया।  अपनी जड़ों और ज़मीन के साथ जुड़ी इस गायिका के लिए गाना एक साधना है। सादगी और मधुरता के साथ गाने के कारण उनकी प्रतिभा को पहचानने वालों की कमी नहीं। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के तजिन्दर चाहल मैमोरियल क्लब की ओर से लाइफ टाइम एचीवमैंट अवार्ड, वतनों दूर टी.वी. की ओर से, बी.बी.सी. टोरांटों की ओर से, पंजाब आर्ट्स कौंसिल चंडीगढ़ की ओर से लाइफ टाइम एचीवमैंट अवार्ड, युवक कल्याण विभाग पंजाबी यूनिवर्सिटी की ओर से एवं विरसा सम्भालो क्षेत्र क्लब संगरूर की ओर से सुरों की मल्लिका अवार्ड से उनको सम्मानित किया। 
खुली किताब की तरह सादगी से भरपूर वार्तालाप करने वाली रणजीत कौर वर्तमान पंजाबी गायकों के बीच सभ्याचारक बदलाव और टैक्नालोजी के विकास के प्रभाव को महसूस करती हैं। रिश्तों के कई रंग अपने गीतों के माध्यम से व्यक्त करने वाली रणजीत कौर के लिए गायिकी आत्मा में बसा एक शौक है, जिसने उन्हें महेन्द्र कपूर, सुरेश वाडेगर जैसे गायकों के साथ गाने का अवसर दिया। पंजाबी अखाड़ों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरने वाली पंजाब की इस महान गायिका को ‘अजीत प्रकाशन समूह’ की ओर से भाषा विभाग द्वारा अवार्ड मिलने पर शुभकामनाएं।
-हंसराज महिला महाविद्यालय (एच.एम.वी.), जालन्धर।