निरन्तर बढ़ती महंगाई एवं मूल्य-वृद्धि  तत्काल राहत की ज़रूरत

महंगाई एक बार फिर अनियंत्रित होने लगी है। प्रत्येक वस्तु एवं पदार्थ के दाम बढ़ने लगे हैं। खास तौर पर खाद्यान्न पदार्थों की कीमतें आसमान को छू रही हैं। रसोई गैस की कीमतें पिछले समय में निरन्तर बढ़ती चली आ रही हैं। पेट्रोल एवं डीज़ल के मूल्यों को तो जैसे आग लगी है। विगत वर्ष कोरोना महामारी के दृष्टिगत यातायात और आवागमन के साधनों पर रोक एवं अंकुश होने के बावजूद पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें बढ़ती रहीं। तेल पदार्थों की कीमतों को कुछ वर्ष पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय तेल मार्किट से जोड़ दिये जाने के बाद यह दावा किया गया था कि भविष्य में अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य नीति के आधार पर ही देश में तेल मूल्य निर्धारित किये जाया करेंगे, परन्तु इस के विररीत हुआ यह कि तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ने पर तो देश में पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें बढ़ा दी जातीं, परन्तु कीमतें कम होने के बावजूद प्राय: देश में दाम कम नहीं होते। इसके विपरीत केन्द्र अथवा राज्य सरकारों की ओर से कम हुईं अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों के आधार पर देश में संतुलन बनाए रखने को केन्द्रीय शुल्क अथवा राज्यों के वैट की दरें उसी अनुपात से बढ़ा दी जाती हैं। इसका नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा है कि सरकारों के वैट राजस्व में तो लगातार वृद्धि होती रही, परन्तु वस्तुओं के दाम बढ़ते चले गये, और उसी अनुपात से बढ़ती रही देश और समाज में महंगाई एवं मूल्य-वृद्धि। 
वर्तमान में पेट्रोल-डीज़ल एवं रसोई गैस की मूल्य वृद्धि का आलम यह है कि पेट्रोल के दाम आज़ादी हासिल किये जाने के बाद के सात दशक से भी अधिक समय के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गये हैं। विगत सात वर्ष में पेट्रोल की कीमतों में 700 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है। इस कीमत में वैट एवं अन्य कई प्रकार के शुल्कों का अन्तर निकाला जाए, तो 90 रुपये के पेट्रोल में 57 रुपये से अधिक के वैट एवं अन्य कर होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार सरकारें अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा पेट्रोल, डीज़ल एवं अन्य तेल पदार्थों से प्राप्त करती हैं। पंजाब में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। यहां जब भी अन्तर्राष्ट्रीय मार्किट में तेल की कीमतों में कमी हुई है, प्रदेश सरकार ने वैट की दर बढ़ा दी है। अभी पिछले दिनों ही कृषि एवं किसान के नाम पर अतिरिक्त शुल्क लागू करने की घोषणा की गई थी। घरेलू रसोई गैस की कीमतों में भी पिछले दिनों बड़ा उछाल आया है। व्यवसायिक धरातल पर तो अवश्य गैस की कीमतें समय-समय पर बढ़ाई जाती रही हैं, परन्तु घरेलू रसोई गैस में एकबारगी इतनी बड़ी वृद्धि बड़ी देर बाद सामने आई है। नि:संदेह रूप से इससे महंगाई एवं मूल्य-वृद्धि में चौतरफा वृद्धि का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकारें बेशक इस मामले पर चुप्पी घारण किये रहें, परन्तु पिछले दिनों वित्त मंत्री द्वारा पेट्रोल-डीज़ल के दाम निरन्तर बढ़ते जाने का नोटिस लिये जाने से साफ संकेत मिलता है कि जन-साधारण में इस मामले को लेकर भारी रोष एवं असंतोष व्याप्त है। आम लोगों एवं विशेषकर गरीब वर्ग में मौजूदा महंगाई को लेकर हाहाकार है। 
यह भी शायद पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों का ही असर है कि रेलवे माल-भाड़ा बढ़ गया है। रेलवे मंत्रालय ने यात्री गाड़ियों का संचालन शुरू करते ही रेल किराया में भी वृद्धि कर दी है। किराया की दरें दो गुणा तक बढ़ा दी गई हैं। उधर पंजाब रोडवेज ने भी यात्री किराया और माल भाड़े में वृद्धि का प्रस्ताव रखा है। बस किराया में पहले ही कोरोना काल के बाद वाली वृद्धि लागू हो चुकी है। रेलवे का माल-भाड़ा बढ़ने का असर समाज में इस्तेमाल होने वाली प्रत्येक वस्तु पर पड़ा है। खास तौर पर खाद्यान्न एवं घरेलू उपभोग्य स्तर पर प्रयुक्त होने वाली वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। खाद्य तेलों के दाम बढ़े हैं। फल एवं सब्ज़ियों खास तौर पर प्याज़ और टमाटर के दामों में भारी वृद्धि हुई है। हरियाणा में भी पिछले दिनों खाद्य तेलों की महंगाई का मुद्दा चर्चा में रहा। पंजाब सरकार द्वारा सब्ज़ियों का समर्थन मूल्य घोषित किये जाने का संकेत भी संभवत: इसी कड़ी का हिस्सा है। 
वर्तमान में स्थिति यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय मार्किट में कच्चे तेल के मूल्यों में भारी गिरावट आई है, परन्तु सरकारें हैं कि उनके कानों पर आम आदमी की पीड़ा को सुनने-समझने वाली जूं तक नहीं रेंग रही। एक समय था, जब कभी बजट की घोषणाओं के कारण वस्तुओं के दाम बढ़ते थे तो हाहाकार मच जाती थी। आज महंगाई एवं मूल्य-वृद्धि के आकाश छूने के बावजूद सरकारें तो जैसे नीरो की बांसुरी बजाने में रत हैं, परन्तु विपक्षी दल भी घोड़े बेच कर सोने वाली मुद्रा में हैं। महंगाई ने देश के प्रत्येक मध्य-वर्गीय परिवार का कचूमर निकाल कर उनके घरेलू बजट को बिगाड़ दिया है, परन्तु किसी ओर से राहत एवं सुकून वाली खबर मिलने की कोई आस दिखाई नहीं देती। हम समझते हैं कि वित्त मंत्री के सुझाव के दृष्टिगत सरकारों को पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में कमी एवं संतुलन लाने के लिए तुरन्त पग उठाने चाहिएं। प्रदेश सरकारें खास तौर पर पंजाब सरकार यदि तेल-पदार्थों पर वैट की दरें कम करती हैं, तो जन-साधारण को थोड़ी-बहुत राहत अवश्य मिल सकती है। इससे अन्य वस्तुओं के दामों में स्थिरता आने की सम्भावना भी बनती है। केन्द्र सरकार इस मामले में जितनी शीघ्र पहल करेगी, आम आदमी को उतना शीघ्र राहत मिल सकेगी।