भूमिगत पानी का लगातार गिर रहा स्तर चिन्ता का विषय

पंजाब में भूमिगत पानी में आ रही लगातार गिरावट चिन्ता का विषय है। इस समय लगभग 14.78 लाख ट्यूबवैल हैं, जिनमें से 13.37 लाख के करीब बिजली से चलाए जाते हैं। इन ट्यूबवैलों के पानी का बड़ा हिस्सा धान-गेहूं के फसली चक्कर के लिए प्रयोग किया जाता है। लगभग 41 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य ज़मीन है, जिस पर 30 लाख हैक्टेयर रकबे पर धान और 35 लाख हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की फसल क्रमश: उगाई जाती है। धान की फसल को भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार एक किलो चावल पैदा करने के लिए 5 हज़ार लीटर पानी की ज़रूरत है। परिणामस्वरूप राज्य के 148 ब्लाकों में से 105 ब्लाक डार्क ज़ोन में हैं और 45 ब्लाकों में बहुत ही चिन्ताजनक हालात में ट्यूबवैल चल रहे हैं। ज़मीन तले पानी का रिचार्ज भी नहीं हो रहा। गत दिवस पंजाब विधानसभा द्वारा बजट सत्र में इस संबंधी गंभीर चिन्ता व्यक्त की है। धान के विकल्प मक्की और गन्ने की फसलों की भी पानी की ज़रूरत अनुपाततया अधिक है। सरकार द्वारा किये गए क्रमश: प्रयासों के बावजूद धान की काश्त तले रकबा नहीं कम हो रहा क्योंकि धान का फसल के मुकाबले कोई अन्य फसल इतना लाभ नहीं देती। 
आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर और विश्व प्रसिद्ध बासमती के ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि बासमती की ऐसी किस्में विकसित हो गई हैं जिनको पानी की आवश्यकता बहुत कम हैं और यह जुलाई के अंत में ट्रांसप्लांट की जाती हैं। जब बारिशें शुरू हो जाती हैं तो कई बार फसल बरसात के पानी से ही पक जाती है। इन किस्मों में अधिक उत्पादन देने वाली पूसा बासमती-1509 और पूसा बासमती-1692 किस्में शामिल हैं। पंजाब बासमती के जी आई ज़ोन में है और यहां पैदा की गई बासमती गुणवत्ता के पक्ष से बड़े ऊंचे दर्जे की मानी जाती है। जो खाड़ी देशों, अमरीका, यूरोप आदि को निर्यात होती है। गत वर्ष बासमती का रकबा भारत में सन् 2019 के मुकाबले 19 फीसदी बढ़ा। पंजाब में भी अधिक रकबे पर 6.29 लाख हैक्टेयर में बासमती की काश्त की गई। 
पंजाब कृषि और किसान भलाई के कमिश्नर बलविन्दर सिंह सिद्धू कहते हैं कि हम तेज़ कैमिकल्स की प्रयोग करने के स्थान पर अब ऐसे ग्रीन कीटनाशकों के प्रयोग पर बल दे रहे हैं जो हानिकारक नहीं और चावलों में ज़हरीले अंश नहीं छोड़ते। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया कहते हैं कि अब तक बासमती का निर्यात पिछले वर्ष से 16 फीसदी अधिक हुआ है। ईरान जो बासमती का बड़ा खरीददार है, उससे आर्डर मिले हैं परन्तु अभी तक पिछले वर्ष से कम। अन्य देशों को बासमती अच्छी मात्रा में निर्यात हो रही है। इसका निर्यात भविष्य में बढ़ने की संभावना है।  फसली-विभिन्नता से धान की काश्त तले रकबा कम करने के अतिरिक्त पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के भूमि पर पानी इंजीनियर विभाग द्वारा पानी की खपत कम करने के लिए कम्प्यूटर लेज़र कराहा जो खेत को समतल करके लगभग 15 से 20 फीसदी सिंचाई वाला पानी बचाता है, विधि को किसानों को अपनाने के लिए बल दिया जा रहा है। धान की सीधी बिजाई करके कद्दू किये धान के मुकाबले 10 से 15 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है। धान के खेत में लगातार पानी खड़ा करना ज़रूरी नहीं। पौध लगाने के बाद सिर्फ दो सप्ताह तक पानी खेत में खड़ा रखना ज़रूरी है। इसके बाद पानी उस समय दिया जाए जब पिछले पानी को जज़ब हुए दो दिन हो गए हों। सिर्फ ज़मीन में दरारें नहीं पड़ने देनी चाहिएं। खेत में पानी 10 सैं.मी. से अधिक नहीं होना चाहिए। तुपका सिंचाई विधि से फसल को निश्चित मात्रा में तुपका-तुपका पानी उपलब्ध होता है। इस विधि से लगभग 40 से 70 फीसदी तक पानी की बचत हो जाती है। तुपका सिंचाई फलों और सब्ज़ियों की फसलों के लिए बहुत लाभदायक है। ऊंची-नीची ज़मीनों पर भी तुपका सिंचाई सफल रहती है। 
ट्यूबवैलों के लिए बिजली मुफ्त होने के कारण अब किसानों क्रमश: मोटरें तब भी चलाए जाते हैं जब फसलों को पानी की इतनी आवश्यकता नहीं होती। इससे पानी बेकार चला जाता है। इन ट्यूबवैलों को आवश्यकता के अनुसार प्रयोग करने से बिजली की बचत भी हो सकती है। अब सबमर्सीबल पम्प लगने के कारण बिजली की खपत बहुत ज़्यादा है।