हिन्दी साहित्य का गौरव और कीर्ति डा. कीर्ति केसर

डा.कीर्ति केसर हिन्दी साहित्य का जाना-पहचाना नाम है। एक कवयित्री, आलोचक, अनुवादक और पत्रकार सभी पक्षों से ऊपर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली डा. कीर्ति केसर ने 1949 में दोआबा की धरती पर जन्म लिया। पिता की मजबूरियों के कारण परिवार सहित उत्तर प्रदेश में बड़़ी हुईं और शिक्षा प्राप्त की। डी.ए.वी. संस्था कानपुर से शिक्षा ग्रहण करने के बाद शिमला से बी.टी. की डिग्री प्राप्त की। 1982 में अपनी तीनों बेटियों के जन्म बाद पी.एच.डी. की डिग्री  हासिल की। बचपन से ही लिखने और पढ़ने वाली कीर्ति को माहौल भी साजगार मिला एवं उनके सपने पूरे होते रहे। घर का माहौल बहुत अनुशासनमयी था, जहां शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता था। उनके पिता की इच्छा थी कि वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करवाए। इसीलिए कीर्ति और उनके भाई-बहन  उच्च शिक्षा हासिल करने में सफल रहे। 
1973 में पहली बार ‘संचेतना’ पत्रिका में किसी पुस्तक संबंधी अपनी टिप्पणी दी जो आलोचना की ओर उनका पहला कदम था। इस पत्रिका के सम्पादक ने आपको पांच पुस्तकें दीं और उनके बारे अपने विचार लिखने को कहा। यह विचार इतने पसंद किये गये कि संचेतना पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद वह आलोचक श्रेणी में गिने जाने लगी। साहित्यिक सूत्रों में भी हलचल हुई। धीरे-धीरे उनका नाम प्रसिद्ध आलोचकों में आ गया। डा. कीर्ति केसर के पति का विभाग और रुचि इससे बिल्कुल अलग थीं। कीर्ति अपनी घरेलू ज़िम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ साहित्यक कार्यों में भी जुटी रहीं। उनके अनुसार उनके पति ने उन्हें कभी भी रोका नहीं था। लेकिन उन्हें कोई साहित्यक रचना लिखने-पढ़ने का अधिक अनुभव या शौक नहीं था। उनके पिता को अपनी बेटी को पढ़ाने का शौक था। लेकिन नौकरी करवाने का शौक नहीं था। वह विरोध करते थे और कहते थे ‘लड़की की कमाई क्यों खाई जाये?’ 
1981-82 में पहली नज़्म लिखी। जिसमें उनकी काव्य उड़ान का आरम्भ किया। डा. लखविन्द्र जौहल जी के सहयोग से उन्होंने काव्य क्षेत्र में काफी कार्य किये एवं भगत सिंह संबंधी लिखने का अवसर भी मिला। आकाशवाणी और दूरदर्शन में निपुण मानी जाने वाली कीर्ति ने इन माध्यमों से जुड़ कर साहित्यक क्षेत्र में नई उपलब्धियां हासिल कीं।
‘स्वतंत्रता के बाद हिन्दी कहानी में सामाजिक परिवर्तन’ विषय पर पी.एच.डी. करने वाली कीर्ति ने समाज, राजनीति और मनोविज्ञान का अच्छी तरह से अध्ययन किया। 1980 से जालन्धर में ए.पी.जे. स्कूल में काफी वर्ष अध्यापन भी किया और साहित्यक रुचियों के प्रचार-प्रसार के लिए जालन्धर में ‘साहित्यक मंच’ भी जगदीश चंदन वैद जी के सहयोग से स्थापित किया। अनेक समारोहों में साहित्य मंच के बैनर तले कार्य किया एवं 1984 में ऑल इंडिया मुशायरा करवाया। यदि कीर्ति के पारिवारिक जीवन की बात की जाए तो तीन बेटियों की मां होने के कारण उन्हें पति और शेष परिवार की ओर से उन्हें बेटा न होने का एहसास भी करवाया जाता रहा। लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों की शिक्षा प्राप्ति और अन्य ज़िम्मेदारियां बहुत सूझबूझ और बेबाकी से निभाईं। वह अपनी बेटियों की शिक्षा और जीवन में सफलता से संतुष्ट दिखाई देती हैं। कविता के क्षेत्र में प्रसिद्धि हासिल करने वाली कीर्ति केसर ने पत्रकारिता को भी अपना माध्यम बनाया। अमर उजाला, दैनिक भास्कर जैसे हिन्दी समाचार पत्रों में सम्पादकीय पृष्ठों पर उनके लेख प्रकाशित होते रहे। अजीत समाचार ने उन्हें एक नई दिशा दी। उन्होंने अमरीका की धरती संबंधी और भारत के कुछ स्थानों के संबंध में स़फरनामे भी लिखे। इंग्लैंड एवं अमरीका के दौरों के दौरान उन्होंने इन देशों के बारे सामाजिक और भौगोलिक अनुभव बताए। वह चाहे पत्रकारिता से संबंधित, आलोचना से संबंधित, अनुवाद से संबंधित कार्य कर रही हों, उनकी रचना में कविता रस स्वाभाविक ही आ जाता है। 17 पुस्तकों की इस रचनाकार को जब भी कोई पुरस्कार-सम्मान मिले हैं तो उन्होंने काफी हिस्से की राशि जन-कल्याण के कार्यों में दी है। चाहे यह राशि उन्होंने विकलांग आश्रम, शहीद सैनिक विधवाओं के लिए या फिर समाज के लिए अन्य कार्यों के लिए। वह इसे अपना सामाजिक कर्त्तव्य समझती हैं। वह समझती हैं कि संवेदना/संवेदनशीलता भगवान का दिया हुआ एक तोहफा है, यह सीखा या सिखाया नहीं जाता। अच्छे साजगार हालात में यह विकसित हो जाता है। 
विरोध और कमियों के बावजूद आगे बढ़ने वाली निरन्तर गतिशील कीर्ति केसर आशावादी और सुचारू विचारों वाली लेखिका हैं जिन्होंने इन्कलाबी कवि पाश संबंधी भी डट कर चर्चा की है। उन्होंने मार्क्सवाद, मानव शास्त्र, बुद्धिइज़म, इस्लाम, हिन्दू ग्रंथ सभी का अध्ययन अधिक गहराई से किया है। इसीलिए जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण बहुत विशाल है। उनकी बेटी ज्योति उन्हें एक ममता से भरी बेबाक, निडर, समाज सेविका, लेखिका, नारी स्वतंत्रता और नारी शक्ति की उदाहरण मानती है। सच में ही कीर्ति केसर ने सृजन के द्वारा कोमलता से जीवन के कई एहसासों को जुबान दी है। वह सूझवान आलोचकों, प्रतिभावान कवयित्री, निडर पत्रकार और उच्च स्तर की शैली वाली अनुवादिका के तौर पर और सफल स़फरनामा लेखिका के तौर अपनी विलक्षण पहचान रखती हैं। भाषा विभाग की ओर से आपको शिरोमणि हिन्दी साहित्यकार का अवार्ड मिलने पर शुभकामनाएं।
-हंसराज महिला महाविद्यालय, जालन्धर।