कलात्मक पद-चिन्ह—10 जन-चेतना की जलती मशाल कैलाश कौर

कैलाश कौर प्रसिद्ध रंगकर्मी और सामाजिक असमानता  संबंधी बोलने वाली शख्सियत और पंजाबी नाटक रंगमंच नुक्कड़ नाटक के द्वारा सामाजिक चिंतन की छटा देने वाली  गुरशरण की हमस़फर है। भाषा विभाग पंजाब की ओर से उन्हें 2016 के लिए शिरोमणि पंजाबी नाटक, थिएटर पुरस्कार से नवाज़ा गया है। पश्चिम पंजाब के शहर गुजरांवाला में 25 दिसम्बर, 1933 को पिता स. करतार सिंह और मां प्रकाश कौर के घर में जन्मीं कैलाश कौर के पिता स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले स्वतंत्रता संग्रामी थे। प्राथमिक शिक्षा गवर्नमैंनट गल्ज़र् स्कूल गुजरांवाला से प्राप्त करने के बाद 1947 देश विभाजन के समय उनका परिवार दिल्ली आ कर बस गया था। यहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी में बी.ए. एल.एल.बी. की पढ़ाई की। अच्छे विचारों वाले इस परिवार में कैलाश कौर को पढ़ाई-लिखाई में प्रोत्साहन मिलता रहा और नाटक करना उन्हें तब से ही पसंद था। 1958 में गुरशरण सिंह के साथ उनकी शादी तय हो गई और उसके बाद अच्छे विचारों वाली कैलाश को जीवन में आगे बढ़ने का अवसर प्रकृति ने पूरी तरह उपलब्ध करवाया। शादी से पूर्व पत्रों द्वारा गुरशरण सिंह ने अपनी विचारधारा, अपनी चिंताएं और भविष्य के प्रति अपनी सामाजिक चिन्ताओं के परिचय करवा दिया था। 31 मई, 1959 को कैलाश शादी के बंधन में बंध गईं। आपके हमस़फर गुरशरण जी उस समय भाखड़ा नंगल डैम में इंजीनियर थे, लेकिन उनका नाटक और रंगमंच की दुनिया से जुड़ा हुआ था। उन्हें अपने नाटकों के लिए महिला कलाकार के रूप में अपनी हमस़फर कैलाश का साथ मिला। जिसने कैलाश कौर के लिए भी जीवन के नये मार्ग खोल दिये। 1959 से शुरू हुई इस दम्पति के स़फर ने 50 वर्ष बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
अपनी बेटियों नवशरण और अरीत को गोद में उठा कर स्थान-स्थान पर नाटक करती यह जोड़ी गांव-गांव में जाकर लोगों को जागरुक करती रहती। सामाजिक समानता का सन्देश देती रही और किसानों, मजदूरों के साथ अपने जज़्बात और दिली सांझ का प्रकटावा करती थी। कैलाश कौर ने भी अपने रंगकर्मी पति की सही सोच को सलाम करते हुये रंगमंच को सामाजिक चेतना के लिए एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। कैलाश कौर भावुकता से कहती है कि ‘गुरशरण ने तो अपना जीवन लोगों को समर्पित कर दिया था। वह पहले नौकरी पर जाते और फिर छोटी गाड़ी में पांच कलाकारों की टीम के साथ गांव-गांव जाकर नाटक करने के लिए निकल पड़ते। देर-सवेर वह दोनों अपनी बेटियों के साथ पहुंचते। ऐसे हालात में घर के कामकाज़, बेटियों का पालन-पोषण और नाटक पेश करना कोई आसान कार्य नहीं था। कैलाश ने अपनी मेहनत, लग्न और जज्बे से यह सभी कार्य किये। कैलाश कौर ने दर्जनों नाटक दर्शकों की उपस्थिति में खेले। जिसमें से ‘बेवसी, घुम्मनघेरी, दीवा बुझ गया, राई दा पहाड़, इक मां दो मुल्क, इह लहू किस दा है, जिनि सचु पले होये’ के द्वारा अपनी अभिनय कला का लोहा मनवाया। स्वास्थ्य की मजबूरियों के बाद कैलाश कौर ने अपने नाटक और रंगमंच का स़फर जारी रखा। खूबसूरत अदाकारा के साथ-साथ मधुर आवाज़ की मालिक कैलाश कौर ने बहुत-से नाटकों में गीत भी गाये। अमृतसर कला केन्द्र की स्थापना से उनकी कला को एक और मंच मिला। जो गुरशरण सिंह जी के यत्नों का परिणाम था। कैलाश कौर ने कनाडा, इंग्लैंड में भी अपने हमस़फर गुरशरण सिंह जी के साथ कई नाटक खेले।
1969 में गुरु नानक देव जी के 500 साला प्रकाशोत्सव के समय गुरदयाल सिंह फुल के नाटक ‘जिनि सचु पलै होये’ में निभाई गई अपनी भूमिका को वह यादगार मानती हैं और तब ही एक बड़ा ऐतिहासिक दौर पंजाबी के नुक्कड़ नाटकों और स्टेज नाटकों के लिए गांव-गांव में जाकर घूमने का दौर शुरू हुआ। इस नाटक की हज़ारों की प्रस्तुतियां सर्दी भरी रातों और भीषण गर्मी में होती रहीं। तब तक महिला कलाकार के तौर पर उनकी पहचान बन चुकी थी। वह एक मां दो मुल्क नाटक में निभाई अपनी भूमिका लिए जज्बाती हो जाती हैं। क्योंकि उन्होंने स्वयं देश के विभाजन के दर्द को सहन किया था। बेबसी नाटक में भी उनके मन में बसा है जिसमें एक क्लर्क की पत्नी की भूमिका निभा कर मध्य वर्ग की मजबूरियों से परिचित करवाया है। यह भूमिका बहुत स्वाभाविक थी। जिसने उन्हें एक कुशल अदाकार के रूप में स्थापित कर दिया था। बहुत ही सीमित साधनों से नाटक खेलने वाली यह अदाकारा अपने हमस़फर गुरशरण सिंह को याद करती भावुक हो जाती है। वह एक वाक्य सुनाती है कि कैसे एक बार गुरशरण जी ने नाटक की प्रस्तुति के बाद कुछ पैसे कैलाश कौर को गिनने के लिए दिये तो उन नोटों में एक-एक रुपये के मैले, मुड़े हुये नोट और कुछ सिक्के देख कर कैलाश कौर रोने लग पड़ी कि उनका इंजीनियर पति, अच्छे परिवार से संबंध रखने वाला नाटकों को चलते हुये रखने के लिए महज़ थोड़े से ही पैसे लेकर अच्छे समाज की सृजना की बात करते रहे हैं। अब चाहे कैलाश कौर उम्र के लिहाज़ से शारीरिक रूप से कमज़ोर हो चुकी हैं लेकिन उनके भीतर बसी लोक मंच की यादें उनके भीतर एक नई रौशनी पैदा करती है। लोग मनों में बसी इस कलाकार कैलाश कौर को भाषा विभाग पंजाब की ओर से सम्मान के लिए चुने जाने पर मुबारकबाद।
-हंसराज महिला महाविद्यालय, जालन्धर।