सुख-दुख का कारण मनुष्य का स्वभाव

काफी सीमा तक मनुष्य का अपना स्वभाव ही उसके लिए सुख-दुख का कारण होता है। मनुष्य अपने स्वभाव की कमियां जानते हुए भी उसे बदल नहीं पाता। समाज में ज्यादातर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनके पास हर तरह की सुख-सुविधाएं और प्रकृति की ओर से दी गई बहुमूल्य वस्तुएं होने के बावजूद भी दुखी रहते हैं। यदि उनसे दुखी होने का कारण पूछा जाये तो उनकी ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिलता। इसी तरह कुछ लोग ऐसे मिल जाते हैं जिनके पास अपनी ज़रूरतें पूरी करने के पूरे साधन नहीं होते क्योंकि प्रकृति की ओर से उनसे भेदभाव हुआ होता है, लेकिन फिर भी वह भगवान का धन्यवाद करते हैं और संतुष्ट रहते हैं। अपने स्वभाव के कारण ही मनुष्य अपने शरीर में कई प्रकार की बीमारियों को पैदा कर लेता है। विचार करने की आवश्यकता है कि यदि हम अपने स्वभाव को नहीं बदल सकते तो किसी अन्य को कैसे बदला जा सकता है। यह स्वभाव ही ईश्वर की देन है जोकि काफी सीमा तक मनुष्य के जन्म से उत्पन्न होता है और उसके पालन-पोषण, घर का माहौल, सामाजिक मेल-मिलाप आदि भी उसके स्वभाव के लिए ज़िम्मेदार होते हैं, इसे बदलने के लिए ज़रूरी है कि हम अच्छे लोगों की संगत में रहें। अखबार पढ़ने, किताबें पढ़ने में अपनी रुचि रखें। जिन लोगों के कारण हमें परेशानी का सामना करना पड़ता है उनसे सामाजिक दूरी बना कर स्वयं को कुछ सीमा तक शांत रखा जा सकता है। हमेशा यह याद रखना चाहिए कि बदी और नेकी लाखों-हज़ारों वर्षों से चली आ रही है। हमारे अधिक सोचने से समाज में परिवर्तन नहीं आ सकता। आवश्यकता है स्वयं में परिवर्तन लाने की। 
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