विलक्षण कलाकारों का अलग प्रयास

स्वप्ना ऑगस्टाइन (पांव कलाकार भारत)

आज चलते हैं एक अलग दुनिया में, एक ऐसी दुनिया में जहां किसी दिखावे, कोई होड़, एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा जैसी बातों का कोई नामो-निशान नहीं। इस अलग दुनिया में रोशनी डालना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि आज हम सभी सोचते हैं कि हमारी समस्या से बड़ी किसी और की समस्या नहीं, जितने बड़े हमारे दु:ख हैं, कोई उतना दु:खी नहीं, अकसर अपने दु:खों के लिए किस्मत को दोष देने से हम पीछे नहीं हटते। यकीन मानें कि इस दुनिया पर दृष्टिपात और कुछ नहीं तो हमारे दिल और दिमाग पर एक अलग और सकारात्मक छाप ज़रूर छोड़ेगा।
हम बात कर रहे हैं उन कलाकारों की, उनकी अपनी दुनिया की, जिसमें रंग भी हैं, कैनवस भी है, रंग करने वाले भी हैं लेकिन अन्तर यह है कि यह रंग करने वाले कलाकारों के हाथ नहीं हैं।
वास्तव में Mouth and Foot Painting Artists Association (MFPA)  नामक एक अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर्ड सोसायटी है, जिसमें वे कलाकार हैं जो अपने हाथों की अपंगता के कारण अपने मुंह और पांवों से चित्रकारी करते हैं।
यह सोसायटी 1956 में शुरू हुई थी जब Erich Stegmann (एरिच स्टेगमैन) नामक एक पोलियो से ग्रस्त कलाकार ने यूरोपियन देशों से 8 कलाकार इकट्ठे करके साथ जोड़े थे और यह परिवार बढ़ता ही गया आज 71 देशों में कम-से-कम 750 कलाकार इसके सदस्य हैं। भारत में अलग-अलग प्रदेशों से 38 सदस्य हैं, जो MFPA के साथ जुड़े हुए हैं।
Stegmann की सोच यह थी कि लोग दिव्यांगों को न तो दया की नज़र से देखें तथा न ही उनको लोगों के दान पर निर्भर रहना पड़े, इसलिए खुद अपनी सहायता करना ही इस सोसायटी का उद्देश्य बन गया।
MFPA का मुख्य मकसद, जिस उद्देश्य से शुरू किया गया, यह था कि इस तरह के कलाकारों को एक मंच पर इकट्ठा किया जाए, जिससे एक-दूसरे के साथ उनका उत्साह बना रहे, एक-दूसरे को देखकर सीखने का जज़्बा पैदा हो।
मन में सवाल यह आता है कि चित्रकारी की कला में निपुणता पांवों या मुंह से कैसे प्राप्त की जाती है? रूस्नक्क्न विद्यार्थी सदस्य के तौर पर सबको भर्ती करते हैं। उनको चित्रकारी की कला सिखाई जाती है। सिर्फ सिखाना ही नहीं, विद्यार्थी सदस्य को ग्रांट दी जाती है जो उनको ट्यूशन, कला का सामान आदि खर्च में मदद करती है। विद्यार्थी सदस्य के काम का पैनल द्वारा थोड़ी-थोड़ी देर बाद मूल्यांकन किया जाता है और निपुणता प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को, उनके काम के अनुसार एसोसिएट या पूरा सदस्य बना दिया जाता है।
जैसे-जैसे विद्यार्थी सीखते जाते हैं और उच्च स्तर पर पहुंचते रहते हैं, उनकी स्कॉलरशिप बढ़ा दी जाती है। इससे कलाकारों में अपने आपको बेहतर करने की उम्मीद हमेशा रहती है।
इतना ही नहीं, यदि कोई सदस्य अपने काम करने की सामर्थ्य घटने की वजह से अपना आर्टवर्क या चित्रकारी चला नहीं सकता, तो भी पूरा जीवन उनको महीने का वेतन दिया जाता है। इससे इन कलाकारों के मन से भविष्य प्रति डर और भय निकल जाता है।  उनको हौसला होता है कि यदि उनका स्वास्थ्य खराब भी रहा है तो भी उनकी कमाई छात्रवृत्ति के रूप में हमेशा साथ रहेगी।
एसोसिएशन की कान्फ्रैंसों, प्रदर्शनियों तथा अन्य समारोहों पर इनके सदस्यों को एक-दूसरे से मिलने का, तथा एक-दूसरे से सीखने का अवसर मिलता है। इसके अतिरिक्त स्वयं की सहायता करने वाले अपने जैसे कलाकारों के साथ उनके शौक में सहायता करने का जज़्बा पैदा होता है। उनके द्वारा बनाई कलाकृतियों को बेचने की व्यवस्था करना, सहायता करना, कलाकारों को आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, सृजनात्मक पूर्ति तथा आर्थिक सुरक्षा पूरी तरह दी जाती है। मंच प्रदर्शनियों भी करवाई जाती हैं। इस समय संस्था के सदस्यों की चित्रकारी तथा आर्ट-वर्क्स जेनेवा के यू.एन.ओ. मुख्यालय, लंदन की गिल्डहाल आर्ट गैलरी, आस्ट्रेलिया के म्यूजियम में प्रदर्शित हैं। सारी कमाई कलाकारों को स्कॉलरशिप तथा वर्ष के बोनस के रूप में बांटी जाती है। इससे कलाकारों के भीतर आत्म-सम्मान की भावना पैदा होती है कि वे अपनी कमाई से आज़ाद, सच्चा तथा सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकते हैं। एक संयुक्त मंच पर अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं। MFPA हर उस कलाकार के लिए खुली है जिसने अपने हाथ गंवा दिए और वे मुंह या पांवों से चित्रकारी कर सकते हैं।
सिर्फ इन कलाकारों को पैसे तथा रचनात्मक सहायता देकर उन्हें सम्पूर्ण कलाकार बनाना ही MFPA का उद्देश्य नहीं है, बल्कि उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियां काड्ज़र्, टी-शर्ट्स, शगुन लिफाफों, बैगों पर अंकित की जाती हैं, जिसे वैबसाइट के माध्यम से, पत्रों द्वारा लोगों तक पहुंचाया जाता है, ताकि लोग इनकी अधिक से अधिक खरीददारी कर सकें।
MFPA के बहुत सहायक तथा ग्राहक हैं जो इनके काम को गहराई से समझते हैं तथा उसका सम्मान करते हैं। रूस्नक्क्न की वैबसाइट (https:imfpa.org)  पर जाकर सभी कलाकारों के संबंध में पूरी विस्तारपूर्वक जानकारी पढ़ सकते हैं, इनके द्वारा बनाई गई वस्तुएं भी खरीद सकते हैं।
जब भी हम किसी दिव्यांग व्यक्ति को देखते हैं या मिलते हैं, तो मन में उसके लिए दया आती है, उसके लिए दुआएं निकलती हैं तथा फिर हम आगे अपने काम की तरफ चल पड़ते हैं।
परन्तु इन लोगों से हम प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखें, इनके जज़्बे को सलाम करें, ऐसी ही संस्थाओं तथा उनकी टीम के लिए दुआ मांगें जो प्रकृति के बनाये इन जीवों के हाथ न होने पर भी उनको अपने पांवों पर खड़े होना भाव जीना सिखा रहे हैं। हम अपने इस जीवन में हर पल ईश्वर के शुक्रगुज़ार रहें जिसने हमें दो सलामत हाथ दिए हैं। हमेशा स्वयं को समाज के इन लोगों की प्रशंसा तथा हौसले की कद्र करें जो आज इस हर पल चुनौतियों वाले समाज में स्वयं को सम्भाल कर जीना सीख रहे हैं तथा समाज को यह सन्देश देते हैं :-
जज़्बा रखो हर पल जीतने का
क्योंकि किस्मत बदले न बदले
वक्त ज़रूर बदलता है।

मुझे मेरी सामर्थ्य से जानो,
मेरी असमर्थता से नहीं। 

e-mail : gurjot@ajitjalandhar.com