सुनार और किसान 

काफी समय पहले की बात है कि एक बड़े कस्बे में नारायण दास नाम का एक सुनार रहता था। नारायण दास बहुत ईमानदार, सच्चा-पक्का, नेक दिल, दूसरों को ठीक सलाह देने, लालच और स्वार्थ से दूर रहने तथा स्पष्ट बात करने वाला व्यक्ति था। इसलिए कस्बे के लोग उस पर विश्वास और उसका समान करते थे। उसी कस्बे में पूर्ण चन्द नाम का एक किसान रहता था। पूर्ण चन्द भी सुनार नारायण दास की तरह एक आदर्श व्यक्ति था। इसलिए वे दोनों पक्के दोस्त थे। उन दोनों में घनिष्ठ पारिवारिक संबंध थे। 
उनके ये संबंध उनके बाप-दादाओं से चले आ रहे थे। वे दोनों एक-दूसरे का दु:ख-सुख में सच्चे दिल से साथ देते थे। जब तक एक पर आया दु:ख दूर नहीं हो जाता तब दूसरा भी बेचैन रहता था। उन दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। पूर्ण चन्द का एक ही बेटा था। पूर्ण चन्द की इच्छा थी कि वह अधिक से अधिक शिक्षा ग्रहण करके कोई उच्चाधिकारी बने। वह उससे खेती नहीं करवाना चाहता था। किसान का बेटा पढ़ाई में बहुत अच्छा था। उसके बेटे की कक्षा का जब भी परिणाम आता तो उसके सभी अध्यापक किसान को कहते, आपका बेटा पढ़ाई में काफी अच्छा है। यदि तुम उसकी ओर ध्यान देते रहे तो यह उच्च शिक्षा ग्रहण करके कोई बड़ा अधिकारी बन सकता है।
अध्यापकों की उत्साह से भरी बातें पूर्ण चन्द की उम्मीद को और बढ़ा देती। वह उससे खेती का काम भी बहुत कम करवाता। उसको हर सुविधा उपलब्ध करवाने की कोशिश करता। अचानक आठवीं कक्षा पास करने के पश्चात् किसान के बेटे की संगति ऐसे बच्चों से हो गई जो पढ़ाई में कमजोर होने के साथ-साथ पढ़ने में भी रुचि कम लेते थे। वह अक्सर ही यह बात कहते थे कि जब हमने खेती ही करनी है तो हम पढ़ाई क्यों करें? धीरे-धीरे यह बात किसान के बेटे के मन में भी बैठ गई। 
उसने भी पढ़ाई में रुचि लेनी कम कर दी। वह पढ़ाई में कमजोर होने लगा। एक दिन उसके अध्यापकों ने उसके पिता जी को स्कूल बुलाकर कहा, श्रीमान आपका बेटा पढ़ाई में कमजोर और लापरवाह होता जा रहा है। क्या आप उसकी ओर ध्यान नहीं देते? किसान को अपने बेटे की पढ़ाई के प्रति लापरवाही का आभास तो पहले ही था परन्तु अध्यापकों की बातों ने उस आभास को यकीन में बदल दिया। किसान और उसकी पत्नी ने अपने बेटे को बहुत समझाया परन्तु वह आगे पढ़ने के लिए तैयार नहीं हुआ।
किसान ने अपनी समस्या अपने मित्र सुनार से सांझी की। सुनार ने सोच समझकर कहा, मित्र तुम कल अपने बेटे को लेकर मेरी दुकान पर आ जाना। किसान बहुत निराश हो चुका था। किसान दूसरे ही दिन अपने बेटे को लेकर सुनार की दुकान पर पहुंच गया। सुनार ने किसान के बेटे को प्रश्न किया, आप आगे पढ़ाना क्यों नहीं चाहते? किसान के बेटे ने कहा, मैं अपने पिता का अकेला ही बेटा हूं। अपने पिता की खेती मुझे ही संभालनी है। 
यदि मुझे अपने पिता की खेती ही संभालनी है तो मुझे आगे पढ़कर क्या लेना है? 
सुनार ने बिना कुछ बोले किसान के बेटे के आगे दो हीरे रखकर कहा, आप इन दोनों में से किसे चुनना चाहेगे? किसान के बेटे ने उनमें से तराशा हुआ हीरा चुना। सुनार ने उसको प्रश्न किया, बेटा तुमने दूसरे हीरे को छोड़ इसे ही क्यों चुना? किसान का बेटा बोला, क्योंकि यह सुंदर और चमकदार है। सुनार बोला, बेटा शिक्षा भी इस हीरे की तरह हमें तराश ती है। तुम भी उच्च शिक्षा प्राप्त करके जब बुद्धिमान बन जाओगे, तब इस हीरे की तरह तुमने भी लोग पसंद करेंगे। किसान का बेटा सुनार की बात समझ गया। उसने उसी समय अपने पिता से कहा, मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूंगा।
माधव नगर, नंगल टाउन शिप (पंजाब)
मो. 9872627136 

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