‘एक देश, एक चुनाव’ से चुनाव आयोग को मिल सकती हैं निरंकुश शक्तियां

भारत के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों—जे.एस. खेहर व डी.वाई. चंद्रचूड़ इस बात से तो सहमत हैं कि ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक संविधान की बुनियादी संरचना पर खरा उतरता है, लेकिन उनका कहना है कि इसको वर्तमान प्रारूप में पारित करने से चुनाव आयोग को निरंकुश शक्तियां मिल सकती हैं। इसलिए इसमें अनेक संशोधनों की आवश्यकता है और इसके अन्य विधायी पहलुओं पर भी गंभीर प्रश्न हैं। नई दिल्ली में ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पर छह घंटों से भी अधिक चली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक में भारत के दोनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इसके अनेक प्रावधानों पर आपत्ति व्यक्त की, जिन्हें जेपीसी के सदस्यों ने उठाया था। खेहर लगभग अढ़ाई घंटे तक बोले और चंद्रचूड़ ने तीन घंटे तक अपनी बातें रखीं। दोनों पूर्व न्यायधीशों का मत था कि इस विवादित विधेयक के विशिष्ट पहलू वैधता के पैमाने पर नाकाम हो जायेंगे। दोनों ही न्यायाधीशों ने बहुत सारे संशोधनों का सुझाव दिया है। 
गौरतलब है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से संबंधित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाले उच्चस्तरीय पैनल ने अपनी 18,000 से अधिक पृष्ठों वाली रिपोर्ट 14 मार्च, 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी, जिसमें से केवल 321 पृष्ठों को ही सार्वजनिक किया गया था। पैनल को सरकार के प्रत्येक स्तर के चुनाव एक साथ कराने की संभावना तलाशने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। पैनल ने कहा था कि इस व्यवस्था को अपनाया जा सकता है। यह 2029 तक हो सकता है। लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने में कोई खास चुनौती सामने नहीं आने वाली क्योंकि उचित संवैधानिक संशोधन को राज्य विधानसभाओं से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों व मतदाता सूचियों को भी साथ मिलाने में कम से कम आधी विधानसभाओं की अनुमति ज़रूरी होगी। पैनल ने 3-टियर साथ चुनाव कराने की सिफारिश करते हुए कहा था कि लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराये जा सकते हैं। 
विपक्ष की अधिकतर पार्टियों ने इस रिपोर्ट का विरोध किया था और कहा था कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य संविधान को पूरी तरह से खत्म कर देना है। उनके अनुसार, यह प्रस्ताव ‘बुनियादी चुनावी सिद्धांतों’ और भारतीय संविधान के संघीय ढांचे के विरुद्ध है। शिव सेना(यू) के नेता उद्धव ठाकरे ने कहा था कि यह प्रस्ताव ‘तानाशाही की ओर उठाया गया कदम है’। कांग्रेस, तृणमूल, ‘आप’ और माकपा ने भी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। बसपा ने खुलकर तो प्रस्ताव का विरोध नहीं किया था, लेकिन कुछ चिंताएं अवश्य व्यक्त की थीं, जो, उसके अनुसार, इस योजना को लागू करना चुनौतीपूर्ण बना देगा। सपा का कहना है कि अगर एक साथ चुनाव कराये गये तो राज्य-स्तर की पार्टियां चुनावी योजना व खर्च में राष्ट्रीय पार्टियों का मुकाबला नहीं कर पायेंगी, जिससे दोनों प्रकार की पार्टियों में मतभेद बढ़ जायेंगे। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया था, ‘नियमित अंतराल पर चुनाव सरकारों को ज़िम्मेदार बनाये रखते हैं। ‘एक देश, एक चुनाव’ में अनेक संवैधानिक मुद्दे हैं, लेकिन सबसे खराब यह है कि सरकारों को पांच साल तक जनता के गुस्से की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। यह भारतीय संघवाद के लिए खतरे की घंटी होगी। यह भारत को एक-दलीय राज्य में बदल देगा।’ बहरहाल, जब इस संदर्भ में संसद में 17 दिसम्बर, 2024 को विधेयक पेश किया गया तो भारी विरोध के कारण उसे 19 दिसम्बर, 2024 को जेपीसी के पास भेज दिया गया। जेपीसी की 11 जुलाई, 2025 की बैठक में न्यायाधीश खेहर व न्यायाधीश चंद्रचूड़ को विशेषज्ञों को तौर पर अपनी राय रखने के लिए आमंत्रित किया गया था। पी.पी. चौधरी के नेतृत्व वाली जेपीसी में अन्य सदस्यों के साथ मुख्य रूप से मनीष तिवारी, पी. विल्सन, रणदीप सुरजेवाला, अनिल बलूनी, प्रियंका गांधी आदि शामिल हैं। 
प्रस्तावित विधेयक का सबसे विवादित खंड 82ए(5) है, जिसके तहत चुनाव आयोग को बिना संसदीय निगरानी के निरंकुश अधिकार मिल जाते हैं, जोकि एक न्यायाधीश के अनुसार अप्रत्याशित हैं। न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बैठक में (सूत्रों के अनुसार) कहा कि यह विधेयक में संवैधानिक ‘खामियां’ हैं। इस खंड के तहत चुनाव आयोग को ऐसा निरंकुश अधिकार मिल जाता है कि वह किसी भी राज्य में यह कह कर चुनाव स्थगित कर सकता है कि हालात उचित नहीं हैं। विधेयक के मुताबिक चुनाव आयोग को अगर लगता है कि लोकसभा चुनाव के साथ एक राज्य में चुनाव नहीं हो सकते, तो वह उस राज्य में चुनाव स्थगित कर सकता है, लेकिन संबंधित विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जायेगा। ध्यान रहे कि इससे पहले भारत के एक अन्य मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी खंड 82ए(5) के तहत चुनाव आयोग को दी गईं विशाल शक्तियों पर सवाल उठाया था। अब तक न्यायाधीश यू.यू. ललित सहित भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेपीसी से अपने विचार साझा कर चुके हैं। 82ए(5) ऐसा खंड है जिसे अदालत में कानूनी चुनौती दी जा सकती है।
प्रस्तावित विधेयक में एक राज्य के चुनावी चक्र को अन्य राज्यों व लोकसभा के चक्र के अनुरूप करने का प्रावधान है। इस पर न्यायाधीश खेहर का कहना था कि अगर एक राज्य में आपात्स्थिति, जिसका विस्तार एक साल तक हो जाता है, तो फिर उसके चुनावी चक्र का तालमेल अन्य राज्यों से कैसे बैठ सकेगा? सूत्रों का कहना है कि जेपीसी के एक वरिष्ठ सदस्य ने पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के सुझावों का स्वागत करते हुए कहा, ‘हमारा उद्देश्य विशेषज्ञों व जनता द्वारा दिये गये सुधार सुझावों को विधेयक में शामिल करना है।’ यह समय ही बतायेगा कि संसद के लिए जो विधेयक का अंतिम प्रारूप तैयार किया जायेगा, उसमें यह सुझाव शामिल किये जायेंगे या नहीं।
मनीष तिवारी ने कहा कि सभी राज्य बराबर हैं और एक का कार्यकाल केवल इसलिए कम कर देना कि उसका दूसरे से तालमेल बैठ जाये, उसे कमतर करना होगा जोकि संविधान की बुनियादी संरचना का उल्लंघन होगा। बहरहाल, इस विषय पर विधि आयोग भी जल्द अपनी रिपोर्ट देगा। हालांकि विधि आयोग अपनी पिछली रिपोर्टों में एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में नहीं रहा है, जो उसके नज़दीक अव्यवहारिक व गैर-ज़रूरी हैं, लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि वह सरकार के तीनों टियर—लोकसभा, राज्य विधानसभाओं व स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं व पंचायतों के चुनाव 2029 से साथ कराने की सिफारिश करेगा और यह भी कि अगर त्रिशंकु सदन आता है या अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो मिली जुली सरकार का प्रावधान हो।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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