‘एक देश, एक चुनाव’ से पहले पंचायत व्यवस्था को सशक्त बनाया जाए

इन दिनों ‘एक देश, एक चुनाव’ की चर्चा ज़ोरों पर है। दरअसल विगत दिनों सरकार ने संसद के विशेष सत्र आयोजित करने की सूचना सार्वजनिक की। इस विशेष सत्र की सूचना के साथ ही समाचार के विभिन्न माध्यमों पर खबरें आने लगी कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार इस विशेष सत्र के दौरान कई विधेयक पास करवाने वाली है। उन विधेयकों में ‘एक देश, एक चुनाव’ वाला विधेयक अहम है। इस प्रकार की व्यवस्था नि:संदेह बेहतर है। अगर ऐसा होता है तो इसे चुनाव बदलाव की प्रक्रिया का अहम कदम माना जाएगा। इसके कई फायदे हैं लेकिन यह कदम तभी सफल हो पाएगा जब इसका असर देश के अंतिम पंक्ति तक पहुंचे। अंतिम पंक्ति यानि जो लोग गांव में निवास करते हैं और जिनके पास विकास एवं प्रगति की किरणें सबसे अंत में पहुंचती है, वहां इस बदलाव का असर दिखना चाहिए। यह तभी संभव है जब चुनाव प्रक्रिया के बदलाव का फायदा पंचायतों को प्राप्त होगा। 
वैसे विभिन्न माध्यमों पर इसके कई फायदे गिनाए जा रहे हैं। वे तमाम फायदे संभव भी हैं, जैसे ‘एक देश, एक चुनाव’ से बड़े पैमाने पर सार्वजनिक पैसे की बचत होगी, इससे विकास के कार्यों को गति मिलेगी, चुनाव के कारण जो विभिन्न प्रकार की वैमस्यता दिखती है, उसमें भी कमी आएगी, सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग जनता के लिए सुनिश्चित किया जा सकेगा, देश संगठित और सुव्यवस्थित होगा, पूरे देश में एक प्रकार की राष्ट्र भावना का संचार होगा इत्यादि। ऐसे तमाम फायदे हैं लेकिन इस प्रक्रिया के कारण जो सबसे बड़ा नुकसान होने वाला है, उसके बारे में चर्चा कम हो रही है।
‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक के पारित होने से सबसे बड़ी हानि हमारे लोकतंत्र को होगी जो इस देश की आत्मा है। हालांकि फायदे के तर्क कई प्रकार के गढ़े जा रहे हैं। तर्क कोई भी गढ़ लो लेकिन इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से लोकतंत्र को नुकसान होगा। अमूमन केन्द्रीय आम चुनाव तो समय पर ही होता है। कभी-कभी सरकार के अल्पमत में आ जाने के कारण मध्यावधि चुनाव संभव हो पाया है। बाकी समय में सरकार अपना कार्यकाल पूरा करती रही है। ‘एक देश, एक चुनाव’ से प्रादेशिक सरकारों को बहुत घाटा पड़ेगा। यदि चुनी हुई सरकार गिर जाती है और वैसी परिस्थिति में फिर सरकार का गठन नहीं हो पाता है तो सत्ता स्वाभाविक रूप से केन्द्र के हाथ में चली जाएगी और तब हमारे देश के संघीय ढांचे को चोट पहुंचेगी जो अंततोगत्वा देश के लोकतंत्र के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। भारतीय संविधान में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि भारत राज्यों का समूह है। मतलब साफ  है कि भारत एक संघात्मक गणतंत्र है। ‘एक देश, एक चुनाव’ देश के संघीय ढांचे को कमज़ोर करेगा और यह देश की एकता एवं अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है।
इसके लिए एक आसान-सा उपाय है जो ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को पारित करने से पहले करना चाहिए। भारतीय संविधान में संघ सूची में कई विषय शामिल किए गए हैं। इसके अतिरिक्त 61 विषय राज्यों को प्रदान किये गए हैं। 52 ऐसे विषय हैं जिन्हें समवर्ती सूची में शामिल किया गया है। पंचायती राज्य अधिनियम के पारित होने और संविधान के 73वें संशोधन के बाद राज्य सरकारों को 29 विषय पंचायतों को प्रदान करने थे। देश के प्रत्येक राज्यों ने अपने-अपने प्रदेश में इन 29 विषयों को पंचायत संस्थाओं के जिम्मे भी कर रखा है लेकिन इसका संचालन अमूमन राज्य सरकारों के द्वारा ही होता है। इसके कारण आज तक स्थानीय निकाय, पंचायतें अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पायी हैं। यदि ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू हो गया तो राज्य की ताकत स्वाभाविक रूप से कमज़ोर पड़ जाएगी और तब पंचायतों को जो 29 विषय प्राप्त हैं, वह कहीं न कहीं केन्द्र के हाथों में चले जायेंगे। इसलिए संवैधानिक रूप से 29 विषय जो पंचायतों को प्रदान किए गए हैं, उसे मुकम्मल तौर पर पंचायतों को आवंटित करने की व्यवस्था पहले होनी चाहिए।
कुल मिलाकर यदि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पारित करवाना चाहती है तो उससे पहले पंचायतों को सशक्त करना चाहिए। इस विधेयक से जो लोकतंत्र और संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचने वाला है, उसकी भरपाई इससे संभव है।

(युवराज)