मानव का प्राचीन सामाजिक इतिहास है भीमबेटका

भोपाल से लगभग 45 किमी दूर जब मैं होशंगाबाद (नर्मदापुरम) की ओर नेशनल हाईवे 69 पर निकला, तो मुझे दाहिनी तरफ मुड़ता हुआ एक अनदेखा सा रास्ता दिखायी दिया। मैंने इस अनजान रास्ते पर अपनी कार मोड़ दी। अगर मैं ऐसा न करता तो शायद इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय मेरी आंखों से ओझल ही रहता। मैं मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल, जहां लोग पिकनिक मनाने भी जाते हैं, भीमबेटका की गुफाओं को न देख पाता। खैर, एक छोटी सी रेलवे क्रासिंग को पार करके मैं एक सूखे व पथरीले क्षेत्र में पहुंचा, जिसे देखकर मुझे तंज़ानिया ओल्डूवाई गार्ज याद आ गया। यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट भीमबेटका को देखकर एहसास होता है कि तकरीबन 90 हज़ार साल पहले घने जंगलों, झीलों व दलदल के बीच हमारा इतिहास समृद्ध था। यहां हाथी से लेकर बाघ तक सभी प्रकार के जानवर रहते थे। इन खतरनाक जंगली जानवरों की मौजूदगी में मानवों को सुरक्षा की आवश्यकता थी और भीमबेटका की गुफाओं ने उन्हें शरण दी, साथ ही चट्टानों पर चढ़कर वे पशुओं के आने जाने पर भी नज़र रखते थे। ज्ञात रहे कि भीमबेटका की गुफाओं की खोज 1957-58 में हुई थी। 
भीमबेटका में रहने वाले आदि मानवों को अक्सर गुफा मानव कहा जाता है, लेकिन इन गुफाओं की दीवारों पर बनी प्राचीन चित्रकला कुछ और ही कहानी कहती हुई प्रतीत होती है। गुफाएं छोटी, संकरी व सीमित हैं, इसलिए अनुमान यह है कि मानव पूरी तरह से गुफाओं में नहीं रहते थे बल्कि प्राकृतिक छज्जों व चट्टानों के बीच बनी गलियों को अपना आशियाना बनाते थे। भीमबेटका में तकरीबन 750 गुफाएं हैं, जिनमें से लगभग 500 की दीवारों पर ही चित्रकला है, जिसे प्राचीन रॉक कला भी कहते हैं। ये जिस प्राचीन दौर के चित्र हैं, उसमें मानव का जीवन शिकार, नाच, खेल आदि के इर्द-गिर्द ही घूमता था। यह चित्रकला उसी दौर की तस्वीर है बल्कि यूं कहना अधिक सही होगा कि मानव के सामाजिक जीवन का इतिहास पत्थरों पर दर्ज कर दिया गया है। इन गुफाओं को आप उस दौर की डायरी भी कह सकते हैं। मैंने जब एक गुफा में प्रवेश किया तो सूरज अपने चरम पर था और उसकी किरणें एकदम सही कोण पर पड़ रही थीं, जिससे चित्र जीवंत हो उठे थे और मैंने देखा कि लोग जानवरों का शिकार कर रहे हैं, अपनी सफलता पर मस्ती में नाच रहे हैं... उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी एकदम साफ दिखायी दे रही थी। मुझे लगा कि मैं उस युग में पहुंच गया हूं और सब कुछ अपनी आंखों के सामने घटित होता हुआ देख रहा हूं बल्कि उनके जीवन का हिस्सा बन गया हूं। पहली गुफा के प्रवेश द्वार पर हाथियों के दिलकश चित्र बने हुए हैं। हाथियों के पास ही शुतुरमुर्ग जैसे पंखों वाली आकृति भी है। क्या यह कोई उस दौर का जानवर है या पशु के भेष में नाचता हुआ कोई शिकारी? मुझे क्या, किसी को भी अभी तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है। यह इतिहास की पहेली है, जिसके रहस्य का पर्दाफाश होना अभी शेष है। आठवीं गुफा के बाहर एक विशाल पक्षी का चित्र है। यह स्थानीय लोगों के अनुसार जू केव या जू गुफा है क्योंकि इसकी दीवारों पर जो चित्र बने हैं, उनके माध्यम से जानवरों व शिकारियों की कहानियां सुनाने की कोशिश की गई है। यह चित्र बताते हैं कि बाइसन, हिरण आदि जानवरों का शिकार उन्हें खाई या दलदल में गिराकर किया जाता था। एक चित्र में एक व्यक्ति ढाल व बूमरैंग जैसे हथियार लेकर खड़ा हुआ है। इस किस्म के हथियार उस दौर में ऑस्ट्रिक लोग प्रयोग किया करते थे, जो हिमयुग में ऑस्ट्रेलिया तक फैले हुए थे। इतिहासकारों का मानना है कि यह हथियार ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचे और अबोरिजिन (आदिवासियों) ने इन्हें अपनाया। भीमबेटका के चित्रों को देखकर लगता है कि हमारे पूर्वज शुरू में पैदल चलते थे, शिकार करते थे और फिर आहिस्ता-आहिस्ता उन्होंने हाथी व घोड़ों को पालतू बनाया व उन पर सवारी भी करने लगे। सातवीं गुफा में दो घुड़सवार शिकारी भाला लेकर शिकार करने के लिए निकले हुए दिखाये गये हैं। नवीं गुफा के बाहर सुंदर सफेद घोड़े व बड़े हाथी के चित्र हैं, जो अपने मालिक के साथ नज़र आ रहे हैं। एक चित्र में हिरण पर सैडल बंधा है, जैसा कि आज भी लैपलैंड में लोग अपने रेनिडीयर के बांधते हैं। इन चित्रों में मानव सभ्यता व नवाचार की कहानियां हैं। चित्रों में लाल, सफेद, हरा व गेरुआ रंग इस्तेमाल किया गया है। 
गुफाओं के चित्रों को देखकर यह तो ज़ाहिर हो जाता है कि भीमबेटका के आदिमानव शिकारी थे और शिकार से ही उनका जीवन चलता था। चूंकि जंगली जानवरों का शिकार करना उस दौर में आसान न था, इसलिए शमन (पुजारी) पर भरोसा किया जाता था जो जानवरों की खाल पहनकर टोना टोटका व आत्माओं की पूजा करता ताकि शिकार में कामयाबी मिलना संभव हो सके। इसे आप सांस्कृतिक व आध्यात्मिक जीवनशैली कह सकते हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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