गड्ढों की पुकार, नेताजी गिरिए तो एक बार
आदमी जिंदगी में कितना भी संभल के चले कहीं न कहीं पर उसका गिरना तय है। और वह भी शेयर बाज़ार के सूचकांक की तरह, आसमान से ओले की तरह गिरना। एकदम धड़ाम से बिना मुरवत के गिरना तय है। मुंह हाथ टूटने फूटने की पूरी संभावना। जिस पर खाली अफसोस कर सकते है। जिस पर लोग बाग हंसते हैं। सरकार अफसोस जताती, तरह-तरह के बहाने बनाकर खेद प्रकट करती है। पर आजकल जनता भी जानती है गंगाधर ही शक्तिमान है। इसीलिए गिरने वाला इन सभी को सनकी कह दे तो कोई बुराई नहीं हैं।
बरसात में गिरना, फिसलना, घिसटना बिछड़ना लगा ही रहता है। जिस तरह शेयर बाज़ार के गिरने में बुद्धिजीवियों का हाथ रहता है। उसी तरह आम या गरीब इंसान के गिरने में भी बुद्धिजीवी का ही हाथ रहता है। इसका दोषी बरसात को ठहराया नहीं जा सकता है लेकिन बेचारे को ठहराया जाता है। जैसे शादीशुदा आदमी निरीह प्राणी होता है। वैसे ही बरसात भी निरीह ही है। पर नेता लोग निरीह मानते नहीं है। आम आदमी का इतनी औकात कहां की वह अपने मन से गिर जाए। जिस तरह हर चीज का रेट सरकार के मन से गिरता है। आम आदमी भी सरकार के मन से ही गिरता है। नहीं गिरने पर सरकार के लिए बहुत मुसीबत हो जाती है। शायद सरकार जनता को मजबूत बनाना चाहती है इसीलिए बार-बार गिरा कर उसकी क्षमता को परखती है। उसके शरीर को मजबूत करतीं हैं। इसीलिए सड़कों पर गड्ढे बनाती हैं।
कोई भी यह नहीं कह सकता है कि मैं कभी गिरा पड़ा नहीं हूं। और ऊपर से सड़क के गड्ढों में, अपने देश की गड्ढों को तो यह महारत हासिल है कि वह किसी को भी गिरा देते हैं। चाहे इंसान उसमें गिरना चाहे या ना चाहे यह तो गड्ढों के मन की बात है। गड्ढा चाहे सड़क पर हो या किसी के गाल पर हो गड्ढा बहुत ही खतरनाक होता है। दुर्घटना कारक होता है। दुर्घटना की 100 प्रतिशत संभावना रहती है। चाहे इंसान की नियत गिरे या वह खुद गिर जाए। गिरने की घटना तो होगी ही।
गड्ढा बीच सड़क पर आराम से सीना ताने खड़ा रहता है। और सबको आते जाते निमंत्रण देता रहता है। कोई न कोई उसमें गिरकर अपना सत्यानाश कर ही लेता है। एक बार देश के एक मंत्री ने कह दिया कि मैं अपने राज्य के सड़क को एक सुंदर अभिनेत्री के गालों की तरह बनवा दूंगा।
गड्ढे बुरे मान गए गड्ढों का कहना था कि जब इतने वर्षों बाद सुध लेने का ख्याल ही आया है। तो किसी मंत्री के गाल जैसे क्यों नहीं बनाया जाए। आखिरकार मंत्री की गाल में क्या बुराई है। इसी गाल से तो वह जनता के सामने गाल बजाते रहते हैं। झूठ की चासनी में लपेटकर बेवकूफ बनाते हैं। और एक ही मुद्दे पर चार बार चुनाव जीत जाते हैं। अभिनेत्री के गाल तो नश्वर है पर नेता के गाल तो और उनसे निकले बोल तो अमर है। आखिर गड्ढों की अपेक्षा गलत भी नहीं कहा जा सकता है।
खैर यह तो सरकार की रहमदिली है कि सड़कों पर गड्ढे जगह-जगह होने देती है। बाकी वह चाहे तो एक ही बार मजबूत सड़क बनवा कर बहुतों की रोजी-रोटी पर लात भी मार सकती है। पर सरकार दरिया दिल होती है। उसका दिल समंदर के जैसा होता है। वह सबको जीने खाने का अवसर देती है। पर अपने हिसाब से देती है।
अब देखिए जिन गरीब जानवर और गरीब इंसानों को स्विमिंग पुल देखना नसीब ना हो वह गड्ढों को देखकर अपनी स्विमिंग पूल देखने की इच्छा पूर्ति कर सकते हैं। इस पुण्य में ठेकेदार भी भरपूर सहभागी रहते हैं। सड़क तो ऐसी भी बनाई जा सकती है कि उसमें गड्ढा क्या एक छोटा छेद भी ना हो लेकिन बनाने वाले सब के कल्याण का ख्याल रखते हैं। पार्षद और पंचों से शुरू होकर अधिकारी, इंजीनियर और नेताओं सब का पेट पालने वाले सड़क और उसमें मौजूद गड्ढे को आखिरकार खराब क्यों कहा जाए।
कुछ लोग यह अफवाह फैलाते हैं कि सड़क के गड्ढे लोगों की जान ले लेते हैं। क्या जान सिर्फ सड़क के गड्ढे के द्वारा ही जाता है। जान जाने के लिए तो अपने देश में कदम कदम मौके हैं। और सौ जान को पालने वाले गड्ढे अगर एक दो जान ले भी लेते हैं। तो यह कौन सी बड़ी बात है इतनी हाय-तौबा तो नहीं मचनी चाहिए। गड्ढों को भला बुरा कहना और उनके बारे में अफवाह फैलाना मात्र उनके खिलाफ साजिश ही कहा जाएगा। आप किसी मंत्री, ठेकेदार और इंजीनियर के दिल से पूछिए उनके दिल में गड्ढों के लिए कितनी इज्जत है, सम्मान है। आप भले ही अफवाह फैलाते रहिए उनकी तो रोजी-रोटी का जरिया है। और रोजी-रोटी देने वाला तो ईश्वर के जैसा होता है। तो गड्ढे उनके लिए साक्षात ईश्वर स्वरूप है। जिस तरह इंसानों की इच्छाएं और भावनाएं होती हैं। उसी तरह शहर के सबसे बड़े गड्ढे की भी बड़ी प्रबल इच्छा थी कि एक बार नेताजी के चरण पखारे और उन्हें अपने स्विमिंग पूल में नहवा, उसकी इच्छा बेजा नहीं थी। आखिर नेताजी के सहयोग से ही तो उसका निर्माण हुआ था। उनका 40 प्रतिशत योगदान था। तो वह अपने निर्माण कर्ताओं को कैसे भूल जाए। और नेता ही उसमें गिरकर पहले उद्घाटन ना करें। तो उसके वायरल होने में शंका थी। और आजकल कौन वायरल नहीं होना चाहता है। क्या सजीव और क्या निर्जीव सभी वायरल होने के लिए मरे जा रहे हैं।इसीलिए वह चाहता था कि नेताजी उसमें एक बार डुबकी लगाएं ताकि वह भी वायरल हो जाए लेकिन नेताजी ने कच्ची गोलियां नहीं खेली थी। जाने कितनों को ऐसे गड्ढों में धकेल कर वह नेता बने थे। तो ऐसे भला कैसे गड्ढे के झांसे में आ जाते।
गड्ढे रोज़ आते जाते नेताजी को पुकारते पर नेताजी उसे देखकर मुस्कुराते हुए निकल जाते थे। नेताजी का स्वभाव ही ऐसा था कि वह परोपकार करने के बाद भूल जाते थे। अब बड़े-बड़े लोगों को इतनी छोटी-छोटी बातें कहां याद रहती है। गड्ढे को यह बात समझनी चाहिए थी लेकिन उसने तो संसद में अर्जी डाल दी कि मैं अपना उद्घाटन नेताजी के द्वारा ही करूंगा। इस बात से नेताजी जरा भी परेशान नहीं है। क्योंकि उन्हें पता है ऐसे-ऐसे मसले उनके पास रोज़ आते हैं। और वह उनको पीस कर चाय पी जाते हैं। अब वह भी क्या करें इतने छोटे लोगों की सभी बातों को सुनने लगे तो उनके पास देश सेवा का समय ही कहां बचेगा।
वैसे नेताजी को चाहिए कि एक बार गड्ढे की निरीह पुकार को सुन ले। और उसे भी एक बार सेवा का अवसर दें।