बच्चों के व्यवहार से सीखें

अक्सर हम बड़े बच्चों को छोटा है, नादान है, नासमझ है, इत्यादि वाक्यों से संबोधित कर उनके दैनिक क्रि या कलापों को अनेदखा कर देते हैं जबकि उनकी नटखट, शरारतों में छिपा रहता है कुछ ऐसा व्यवहार जिनसे हम काफी कुछ सीख सकते हैं।
बच्चों का हमेशा हंसता, मुस्कुराता, तनावरहित भोला-भाला, मासूम, सौम्य सलोना, चेहरा कितना आकर्षक एवं प्यारा लगता है। भूत भविष्य की चिंता छोड़कर सदैव वर्तमान के क्षणों को भरपूर जीने वाले बच्चे ही जीवन का असली आनंद उठाते हैं।
आपने कभी गौर किया है कि बच्चों का समय घड़ी के कांटे के साथ बंधा नहीं होता। समय की पाबंदियों से बेखबर अगर खेलते हैं तो सिर्फ खेल का ही आनंद उठाते हैं। जब भूख लगेगी तो समय देखते हैं न जगह। उन्हें बस खाना होता है और वे खाने का भी भरपूर मजा लेते हैं।
बच्चे जब भी खेलेंगे तो उस खेल का भरपूर आनंद लेते हैं जबकि हम बड़े  अक्सर हर चीज को उद्देश्य से बांध कर उसे नीरस एवं बोझिल बना देते हैं। इसके विपरीत बच्चे बिना किसी उद्देश्य या कामना किये खेलते कूदते रहते हैं। इस क्रि या में उन्हें मजा मिलता है और स्वास्थ्य लाभ भी।
बच्चों से हंसमुख रहने एवं मिलन सारिता का गुण हम ग्रहण कर सकते हैं। बच्चे अपनी चंचलता एवं मिलनसरिता से अन्य अपरिचित बच्चों से शीघ्र ही घुल मिल जाते हैं जबकि संकोच और झिझक का ही परिणाम है कि हम अजनबियों से बातचीत करने पर ही घबरा जाते हैं।
बच्चे किसी भी काम को आनंद समझकर करते हैं, बोझ नहीं। तभी तो उनका चेहरा खिला-रहता है। साथ ही काम बिगड़ जाने पर पश्चाताप या ग्लानि न करके पुन: सुधारने में लग जाते हैं।
बच्चे अपनी भावनाओं को दबाते या छिपाते नहीं। आपने गौर किया होगा कि जब वे गुस्सा करते हैं तो काफी तोड़ फोड़ मचा देते हैं और यदि खुश होते हैं तो खुशी से उछलते रहते हैं। यही व्यवहार उनमें जीवंतता का सूचक होता है जबकि हम बड़े अक्सर अपने क्र ोध को छिपाकर कुंठा एवं तनाव से घिर जाते हैं। बच्चों की तरह न सही, कम से कम संयम से तो काम ले सकते हैं।
एक खास बात और, बच्चे जब भी आपस में लड़ते-झगड़ते हैं उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो वर्षों की दुश्मनी हो किंतु कुछ समय पश्चात अपनी दुश्मनी, ईर्ष्या व द्वेष को भूलकर एक हो जाते हैं। (उर्वशी)