भारतीय मुक्केबाजी का नया हीरो आकाश कुमार

भारतीय मुक्केबाजी को 21 वर्षीय आकाश कुमार के रूप में नया हीरो मिल गया है। बेलग्रेड में आयोजित विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप्स में उन्होंने 54-किलो भार वर्ग में दुर्लभ कांस्य पदक हासिल किया और पदक तक के अपने इस सफर के दौरान उन्होंने न सिर्फ  खुद से अधिक अनुभवी मुक्केबाजों को परास्त किया बल्कि 2016 ओलम्पिक के रजत पदक विजेता वेनेजुएला के योएल फिनोल को भी हराया। आकाश की यह जीत इस लिहाज से अधिक विशेष है कि अपनी मां के सपने को साकार करने के लिए यह सब उन्होंने उस समय हासिल किया, जब वह व्यक्तिगत त्रासदी से भी जूझ रहे थे। इस प्रकार आकाश उन सात भारतीय मुक्केबाजों की सूची में शामिल हो गये हैं जिन्होंने विश्व चैंपियनशिप्स में पदक जीते हैं। सीनियर नैशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स के आरंभ होने से एक दिन पहले यानी 14 अक्तूबर को आर्म्ड सर्विसेज बॉक्सिंग दल के मुख्य कोच नरेंद्र राणा को खबर मिली कि आकाश की मां संतोष देवी का कैंसर के कारण निधन हो गया है। संतोष देवी का सपना था कि उनका बेटा अपने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय पदक लेकर आये, इसलिए अपनी बीमारी की खबर देकर वह अपने बेटे की ट्रेनिंग में विघ्न नहीं डालना चाहती थीं। बिल्लारी, कर्नाटक के नेशनल्स में आकाश को रोक पाना असंभव था। उन्होंने अपना पहला खिताब जीता। वह स्वर्ण पदक लेकर अपने गांव पालुवास, हरियाणा लौट रहे थे और उन्हें अपनी मां के निधन की खबर नहीं थी। कुछ घंटे बाद राणा के पास आकाश का फोन आया। आकाश रो रहे थे, लेकिन उन्होंने राणा से कहा, ‘सर, आपने यह राज रखकर मुझ पर जो एहसान किया है, वह मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। आपने मेरी मां का सपना साकार करने में मदद की है।’ इसके कुछ दिन बाद राणा को विश्व चैंपियनशिप्स में जाने वाले भारतीय दल का मुख्य कोच नियुक्त कर दिया गया। वह 2 नवम्बर को बेलग्रेड में रिंग के पास ही थे, जब आकाश ने कांस्य पदक जीता। आकाश ने कहा, ‘मुझे बहुत गर्व हो रहा है। हमेशा से मेरी मां यही चाहती थी कि मैं देश के लिए पदक जीतूं। मेरे कोच ने मुझपर बड़ा एहसान किया कि नेशनल्स के दौरान मेरी मां के निधन की खबर मुझे नहीं दी। मेरी मां ने भी मेरे परिवार से ऐसा ही करने के लिए कहा था।’ रिंग में आकाश आक्रामक व साहसी मुक्केबाज हैं जो अटैक करना पसंद करते हैं। उनका मुक्केबाज बनना तो शायद पहले से ही लिखा था। उनके पिता पहलवान थे, लेकिन अपने दोनों बेटों को मुक्केबाज बनाना चाहते थे क्योंकि उन दिनों उस क्षेत्र के मुक्केबाज पास के भिवानी में ट्रेनिंग करके राष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचाये हुए थे। आकाश ने 2008 में भिवानी की कैप्टेन हवा सिंह बॉक्सिंग अकादमी में ट्रेनिंग शुरू की। जल्द ही विजेंद्र सिंह, जो पास के गांव कालुवास के रहने वाले हैं, ने मुक्केबाजी में भारत के लिए पहला ओलम्पिक पदक जीता था। इस विजय का भिवानी में जबरदस्त जश्न मनाया गया, जिसने युवा मुक्केबाजों को बहुत प्रेरित व प्रभावित किया। इसके कुछ माह बाद आकाश के पिता का निधन हो गया और आकाश व उनके भाई सूरज की परवरिश उनके चाचा भंवर सिंह पर आ गई, जो पेशे से चालक हैं। भंवर सिंह के लिए कठिन था, लेकिन वह अपने भाई के सपने को साकार करना चाहते थे अपने भतीजों को मुक्केबाज बनाकर। 2014 में आकाश का चयन आर्मी बॉयज स्पोर्ट्स कंपनी में हो गया। इससे सपने साकार करने की राह आसान हो गई। यहीं पर आकाश ने राणा की निगरानी में ट्रेनिंग करना आरम्भ किया। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर