बैडमिंटन प्रकाश पादुकोन से पी.वी. सिंधू तक का सुनहरी स़फर

भारतीय बैडमिंटन का इतिहास कोई अधिक पुराना नहीं। जब पहली बार प्रकाश पादुकोन ने बैडमिंटन में जूनियर व सीनियर के दोनों पदक एक वर्ष में ही अपनी झोली में डाले तो इसे इस खेल के जन्म का शुभा आगमन समझा गया। उस समय यह महसूस किया गया कि इस खेल में और भी पदक प्राप्त किये जा सकते हैं। यह बड़ी संतोष की बात है कि इस थोड़े से समय में ही भारत ने अब तक तीन ओलम्पिक पदक जीते हैं। हमारे दो खिलाड़ी विश्व रैंक में नम्बर एक पर रहे हैं और भारत ने दो बार बहुत ही प्रतिष्ठित आल इंग्लैंड कप भी जीता है। एशियाई देश जैसे चीन, इन्डोनेशिया, सिंगापुर, जापान की तरह भारत को भी बैडमिंटन में एशिया की एक बड़ी ताकत समझा जाने लग पड़ा। इसके अतिरिक्त भारत दो बार कामनवैल्थ खेलों में स्वर्ण पदक भी प्राप्त कर चुका है। इस खेल का संस्थापक बना प्रकाश पादुकोन। उसने जिस समय बैडमिंटन का ओलम्पिक के समान टूर्नामैंट आल इंडिया इंग्लैंड भारत के लिए जीता तो उस समय भारतीय नौजवानों में इस खेल में और उत्साह पैदा कर दिया। प्रकाश ने इस खेल को अधिक विकसित करने के लिए अपना पूरा जीवन ही लगा दिया है। न सिर्फ खेल के मैदान में बल्कि खिलाड़ियों के लिए नैतिकता के गुण भी इस खिलाड़ी के जीवन से हमें मिलते हैं। एक बार जब एक प्रतिष्ठित टूर्नामैंट में जब रैफरी ने अपनी गलत सोच के कारण शटल बाहर गिरने पर मैच प्रकाश को जिता दिया तो प्रकाश ने रोष व्यक्त किया कि यह तो अंदर गिरी है और मैच अपने विरोधी को जिता दिया। दूसरी विशेष बात इस खिलाड़ी के बारे यह है कि वह सदा मर्यादा में रह कर अपने विचार व्यक्त करता है। उसके फैसलों का हमेशा खिलाड़ियों द्वारा सम्मान किया जाता है। इस वर्ष जब स्थगित हुए खेलों जाने के लिए चयन के लिए जो पैमाना निर्धारित किया गया, उसके अनुसार हमारे कुछ व्यक्ति और विशेष तौर पर सायना, ओलम्पिक खेल नहीं सके तो इस मामले को लेकर वह सिर्फ संगठन का फैसला मानने के लिए कहता रहा।  वह अपनी बेटी दीपिका पादुकोन को भी इस खेल में लाना चाहता था और लड़की खेल में परिपक्व भी थी परन्तु उसका पहला शौक फिल्मों में काम करना था। प्रकाश बेटी शौक के आगे नहीं आया और उसने यह खेल न अपनाने को अनुमति दे दी। प्रकाश के रास्ते पर चलते हुए उसके शिष्य गोपी चंद का भी बहुत योगदान है जिसने इस बैडमिंटन के पौधे को फिर सींचा है और अपना योग्य नेतृत्व दिया है। अपने गुरु प्रकाश की तरह ही भारत की शान गोपी चंद ने आल इंग्लैंड का दूसरा ईनाम भारत की झोली में डाला है। प्रकाश की अकादमी में सबसे पहले उस समय हिसार (हरियाणा) में रहने वाली एक प्रोफैसर की बेटी सायना नेहवाल ने प्रकाश से बाकायदा प्रशिक्षण लिया और इस खेल में भारत के लिए पहला ओलम्पिक पदक जीता। इसी प्रकार इस अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त खिलाड़ियों ने बहुत उपलब्धियां प्राप्त की हैं। बैडमिंटन में पी.पी. सिंधू सर्वोत्तम दो ओलम्पिक ईनाम अपने नाम कर चुकी है।  भारत में इस समय पुरुष खिलाड़ियों का भी एक बड़ा वर्ग है जिनमें किदांबी श्रीकांत जो 2018 में विश्व नम्बर एक पर रहा, उसके अतिरिक्त नई प्रतिभा लक्ष्य सेन , रैकी व शैटी की जोड़ी तथा अन्य कई खिलाड़ी पुरुष वर्ग में मेहनत कर रहे हैं। इससे हमारा यह बैडमिंटन का सफर और सुनहरा हो जाएगा।