...दुष्ट का संग न देई विधाता!

संत स्वामी तुलसीदास की यह पंक्ति कि ‘दुष्ट संग न देई विधाता’ यह जानकारी देती है कि दुष्ट व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनसे प्रभु ही रक्षा कर सकते हैं। दुष्टता एक ऐसी भयानक ज्वाला है, कि वह जहां होगी, वहां कोई पेड़ पौधा हरा नहीं हो सकेगा। जिस तरह जंगल में आग लग जाने से, हज़ारों हज़ार हरे भरे वृक्ष जल कर राख हो जाते हैं, ठीक वैसे ही जिस घर में, जिस परिवार में, जिस समाज में, दुष्ट जन होगा, वहां सुख नहीं होगा, शांति नहीं होगी। आजकल गृह कलह-कलेश की वारदातों की खबरें, समाचार-पत्रों में छपती रहती हैं। ये खबरें हमें खबरदार करती हैं कि दुष्टों से बचें। जो दुष्ट होते हैं, वे दयाहीन होते हैं। दयाहीनता ही दानवता को जन्म देती है। दयाहीन व्यक्ति कर्त्तव्य को नहीं जानता। दयाहीन व्यक्ति किसी मर्यादा को नहीं मानता। दुष्ट व्यक्ति मर्यादा विहीन होता है। फिर वह किसी रिश्ते को नहीं मानता। बेटा बाप को घर से निकालता है। माता-पिता आज वृद्ध आश्रम में रहने लगे हैं। यह बेटे-बहू की दुष्टता का उदाहरण है। जिस व्यक्ति में प्रेम न हो, वह व्यक्ति सूखी नदी के समान है। जिस नदी में पानी नहीं, वह नदी नहीं कहलाती। प्रेम विहीन व्यक्ति दयावान नहीं हो सकता। प्रेम विहीन व्यक्ति में सत्य, अहिंसा, सहानुभूति, करुणा, सहयोग, सद्भावना आदि मानवीय गुण नहीं हो सकते क्योंकि दुष्टता की आग, चिता के समान होती है जिसमें मनुष्य के सारे मानवीय गुण भस्म हो जाते हैं। किसी काम में भूल करना स्वाभाविक होता है। भूल करने वाला व्यक्ति ‘पश्चाताप’ करता है। क्षमा मांग लेता है। भूल करना स्वाभाविक होता है मगर यह मनुष्य का स्वभाव नहीं है लेकिन ‘दुष्टता’ जिसकी प्रकृति बन जाती है, स्वभाव बन जाता है, उनके परिवारों को देखिये। पति पत्नी, बाप-बेटा, सास ससुर की दुर्दशा देखने को मिलेगी। इसलिए कबीर कहते हैं, ‘तेरा दया धर्म न तन में मुखड़ा क्या देखो दर्पण में’।  ऊपरी सौंदर्य भले ही निखार लिया जाए लेकिन भीतर  ‘दुष्टता’ की जो चिता जलती है, उसके धुएं से मुंह काला हो जाता है।‘दयावान’ व्यक्ति भले ही देखने में सुंदर न हो मगर उसकी ‘दयालुता’ उसको सौंदर्यवान बना देती है, पूजनीय बना देती है मगर दुष्टता जहां हो, वहां का वातावरण विषाक्त होता है। कहते हैं—खीरा जब खाते हैं, तो उसके सिरे को चाकू से काट कर, उस पर नमक मल देते हैं ताकि उस खीरे का कड़वापन समाप्त हो जाये। कहने का तात्पर्य है कि ‘दुष्ट’ की सज़ा भी बड़ी कड़ी है। इसी दुष्ट दलन के लिए भगवान को स्वयं अवतार लेना पड़ता है। रावण और कंस दुष्टता के प्रतीक हैं। इन्हें मारने के लिए स्वयं भगवान आये थे : राम के रूप में, कृष्ण के रूप में। जो दुष्ट व्यक्ति हैं, उन्हें भगवान क्षमा नहीं करते।