अकबर दरबार के कुशल नौ रत्न

विषम राजनीतिक परिस्थितियों के कारण बादशाह अकबर की शिक्षा-दीक्षा उचित ढंग से नहीं हो पाई थी। वास्तव में अकबर लगभग निरक्षर ही थे लेकिन विद्वानों व प्रतिभाशाली लोगों के लिए उनके मन में एक विशेष स्थान अवश्य था। वो गुणीजनों से अनेक विषयों पर स्वयं ख़ूब चर्चा करते थे और उन्होंने विद्वानों और गुणीजनों को अपने दरबार में लाने के लिए कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी।  जिस प्रकार आज विश्व में सात आश्चर्य माने जाते हैं उसी प्रकार मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार में नौ आश्चर्य थे जिन्हें नौ रत्न के रूप में जाता जाता है। आश्चर्य अथवा रत्न इसलिए कि ये अकबर के वो दरबारी थे जो साहित्य, धर्म-दर्शन, अनुवाद, संगीत, कला, मनोरंजन, चिकित्सा, युद्धकौशल, राज्य प्रबंधन, भूमि प्रबंधन व करसुधार आदि क्षेत्रों में अद्वितीय योग्यता रखते थे। संभवत: इन्हीं नौ रत्नों की बदौलत अकबर के काल में ख़ूब उन्नति हुई और अकबर के काल को मुग़लकाल में स्वर्ण काल के रूप में जाना गया। आइए जानने का प्रयास करते हैं अकबर के दरबार के इन नौ रत्नों के बारे में:
तानसेन
तानसेन अकबर के दरबार के एक महान संगीतज्ञ थे। तानसेन का वास्तविक नाम रामतनु पाण्डे था। उनका जन्म ग्वालियर के पास बेहट नामक गाँव में हुआ था। तानसेन ने संगीत की शिक्षा वृंदावन के प्रसिद्ध संगीतज्ञ स्वामी हरिदास से ग्रहण की। अकबर के दरबार में आने से पूर्व तानसेन कई रियासतों के दरबारों में रहे। उनके गायन की प्रसिद्धि सुनकर अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुला लिया। तानसेन को आज भी संगीत सम्राट के रूप में जाना जाता है और उनके नाम से संगीत के क्षेत्र में कई पुरस्कार व सम्मान दिए जाते हैं। तानसेन की समाधि ग्वालियर में बनी हुई है जहाँ उनकी याद में हर वर्ष बहुत बड़ा संगीत का कार्यक्र म तानसेन संगीत समारोह आयोजित किया जाता है।
बीरबल
आज अकबर-बीरबल के जो क़िस्से घर-घर में प्रचलित हैं, वो बादशाह अकबर और उनके प्रसिद्ध दरबारी बीरबल ही थे। बीरबल अकबर के दरबार में विदूषक ही नहीं अपितु उनके सलाहकार भी थे। बीरबल अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति व एक कवि भी थे। बीरबल का मूल नाम महेशदास था। कुछ लोग कहते हैं कि ये ओरछा के एक ब्राह्मण थे जबकि कुछ लोगों का मानना है कि बीरबल का संबंध हरियाणा के नारनौल से है। जो भी हो बीरबल सचमुच विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
मानसिंह
आमेर के राजा मानसिंह एक राजपूत शासक व अकबर के सेनापति थे। ये अकबर के रिश्तेदार भी थे जो अकबर की पटरानी जोधाबाई के भतीजे या भाई लगते थे। अकबर के साम्राज्य को सुदृढ़ करने व मुग़ल साम्राज्य के शत्रुओं को सबक़ सिखाने के लिए मानसिंह ने अनेक अभियानों में हिस्सा लिया व सफलता पाई।
राजा टोडरमल
टोडरमल अकबर के राजकाज में लगान संबंधी कार्य देखते थे। टोडरमल की प्रसिद्धि का मुख्य कारण है उनके लगान संबंधी सुधार कार्य। टोडरमल ने अकबर से पहले शेरशाह सूरी के कार्यकाल में भी लगान संबंधी कई महत्वपूर्ण सुधार कार्य किए थे।
रहीम
रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। रहीम अकबर के संरक्षक बैरम ख़ाँ के पुत्र थे जो अकबर के एक सेनापति भी थे। रहीम की प्रसिद्धि का आधार उनकी बहादुरी ही नहीं अपितु उनकी दानशीलता भी है। हिन्दी व संस्कृत सहित रहीम अरबी, फ़ारसी, तुकऱ्ी आदि कई भाषाओं के विद्धान थे। तुकऱ्ी में लिखित बाबर की आत्मकथा अथवा जीवनी ‘बाबरनामा’ का फ़ारसी में अनुवाद भी रहीम ने ही किया था। रहीम एक सहृदय कवि भी थे। हिन्दी में उन्होंने बहुत ही सुंदर नीतिपरक दोहों की रचना की जो आज भी कम प्रासंगिक नहीं। उनके दोहों के कारण हिन्दी साहित्य में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान है।
अबुल फ़ज़ल
अबुल फ़ज़ल का पूरा नाम अबुल फ़ज़ल इब्न मुबारक था व उनके पिता का नाम था शेख़ मुबारक नागौरी। अबुल फ़ज़ल का जन्म 14 जनवरी सन् 1551 को आगरा में हुआ। अपनी प्रतिभा के कारण कम उम्र में ही ये अकबर के दरबार में प्रवेश पा गए थे। अपनी प्रतिभा और निष्ठा के कारण ये प्रधान मंत्री के पद तक पहुँच गए। अबुल फ़ज़ल ने अकबर के राज्यकाल के विषय में प्रसिद्ध पुस्तक ‘आईने-अकबरी’ व अकबर की जीवनी ‘अकबरनामा’ लिखा जिसमें उस समय के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है।
फ़ैज़ी
फ़ैज़ी का पूरा नाम अबुल फ़ैज़ था लेकिन वो फ़ैज़ी के नाम से ही प्रसिद्ध हुए हैं। इनके पिता का नाम शेख़ मुबारक नागौरी था। फ़ैज़ी का जन्म 24 सितंबर सन् 1547 को आगरा में हुआ। अबुल फ़ज़ल के बड़े भाई फ़ैज़ी भी अकबर के दरबार के प्रसिद्ध साहित्यकार थे जिन्हें मलिकुश्शुअरा या कविसम्राट की उपाधि प्राप्त हुई थी। पहले इन्होंने शहज़ादों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी उठाई और बाद में दरबार में कई महत्वपूर्ण पदों तक पहुँचे। क्षय रोग के कारण पाँच अक्तूबर सन् 1995 को लाहौर में इनकी मृत्यु हो गई। 
मुल्ला दो प्याज़ा
मुल्ला दो प्याज़ा भी अकबर के दरबार के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
हकीम हुम्माम
हकीम हुम्माम एक मशहूर चिकित्सक थे। अकबर के निजी चिकित्सक होने व एक अच्छे हकीम होने की वजह से ही उन्हें अकबर के नौ रत्नों में स्थान मिला।

(उर्वशी)