सच्च्े दोस्त की परख ज़रूरी

हम सभी संसार में रहते हैं। ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है। अपने माता-पिता द्वारा हम इस सुंदर संसार के दीदार करते हैं। फिर माता-पिता हमें स्कूल में पढ़ने हेतु भेजते हैं। कई दोस्त हमारे दिल के करीब आ जाते हैं। उनके साथ फिर हम गहरा रिश्ता बना लेते हैं। फिर हम उनके हर दुख-सुख में शामिल होते हैं। हम उनसे हर सुख-दुख की बात  करने लग जाते हैं। दोस्ती के बाद फिर उन परिवारों में पारिवारिक संबंध बन जाते हैं। पारिवारिक संबंधों से हमारी दोस्ती और गहरी हो जाती है, जिस कारण हम एक-दूसरे के घर आना-जाना शुरू कर देते हैं तथा हम कुछ ही समय में घुल-मिल जाते हैं। एक-दूसरे के दिल के करीब आ जाते हैं। नज़दीकियां बहुत बढ़ जाती हैं जिस कारण हम दिल के राज एक-दूसरे को बताना शुरू कर देते हैं। धीरे-धीरे हमें पता ही नहीं चलता कि हमारी निकटता कितनी बढ़ गई है। इकट्ठे जाना, इकट्ठे शापिंग करना, इकट्ठे खाना, पता ही नहीं चलता, किस समय हम दोस्ती में इतना समा गए हैं। कई बार आम देखने में आता है कि यदि एक दोस्त के घर खाना खाते हैं तो दूसरे दोस्त के घर चाय पीते हैं। पता ही नहीं चलता कि किस तरह एक-दूसरे के करीबी बन जाते हैं। खून के रिश्तों से भी अधिक हमारा लगाव हो जाता है। यह बात भूल जाते हैं कि हम दोस्त बने हैं। कोई भी अच्छा-बुरा काम हो एक-दूसरे को बताते हैं। कहने का अभिप्राय है कि दोस्ती में आपस में घी-शक्कर बन जाते हैं।
दोस्ती आगे बढ़ती रहती है। अक्सर देखा जाता है कि जब दो दोस्तों के बीच तीसरा व्यक्ति आ जाता है तो फिर दिल में कड़वाहट बढ़नी शुरू हो जाती है। कई बार तकरार हो जाती है, जिस कारण हमारी दोस्ती में कड़वाहट पैदा होनी शुरू हो जाती है। कड़वाहट इतनी बढ़ जाती है कि हम पुलिस व कचहरी की ओर रुख करते हैं। बिजनेस, कारोबार में तो लड़ाई-झगड़े होते देखे गए हैं। यदि किसी के साथ हमारी दोस्ती हो जाती है तो पहले उस व्यक्ति को देखें कि वह व्यक्ति किस तरह का है। एकाएक दूसरों पर विश्वास न करें एवं उसे अपने घर के सभी राज मत बताएं। हर एक को अपने घर नहीं लेकर आना चाहिए। दोस्ती सिर्फ बाहर तक ही सीमित रखनी चाहिए। यदि आपको लगता है कि यह व्यक्ति समझदार है, बात को सहन करने वाला है, फिर उसके साथ निकटता बढ़ाएं, उसके साथ पारिवारिक संबंध बनाएं। मिलनसार होने से उस व्यक्ति को हमारे घर के सभी राज पता लग जाते हैं। जब तकरार होती है तो वह हमारे घर की बातों को बाहर चार व्यक्तियों में बताता है। बातों को और बढ़ा-चढ़ा कर आगे अन्य व्यक्तियों को बताता है। बाहर के व्यक्ति ऐसी बातों का लाभ उठाते हैं। माहौल इस तरह का बन जाता है कि हम उसकी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करते। इससे घर का माहौल बिगड़ जाता है। वह दोस्त जिसके आप सबसे अधिक करीब होते हैं वह आपकी बातों के चर्चे पूरे शहर में करना शुरू कर देता है।
 लड़ाई-झगड़ा कभी भी मत करें। दोस्ती रखें, दोस्त अवश्य बनाएं लेकिन ऐसा दोस्त बनाएं जो थोड़ा ़गम भी सहन करे। यदि दोस्ती में कोई बात हो जाती है तो बैठ कर सुलझाएं। तीसरे व्यक्ति की कभी राय न लें। दोस्ती में सहनशीलता, नम्रता बहुत ज़रूरी है। दोस्ती में कई चीज़ों को नज़र अंदाज़ करना पड़ता है। तनाव तो लेना ही नहीं चाहिए। यदि हम स्वयं तनाव में रहते हैं तो हमारे घर का माहौल भी तनावपूर्ण हो जाता है। ठीक है दोस्त अवश्य बनाएं। दोस्ती, प्यार में एक-दूरी बनाकर रखनी चाहिए। यदि हम दोस्ती में संतुलन बना कर रखेंगे तो कभी हमारी दोस्ती में मन-मुटाव नहीं होगा।