रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत पर पड़ेगा बुरा असर

यूक्रेन ने अपने यहां आपात स्थिति घोषित करके अपने नागरिकों को लड़ने की ट्रेनिंग देनी शुरू ही की थी कि मास्को ने कीव में अपना दूतावास खाली कर दिया। इस दौरान पूर्वी यूक्रेन  में यूक्रेनी सेना व रूस-समर्थित विद्रोहियों के बीच गोलीबारी जारी थी। अमरीका व यूरोपीय देश रूस पर रणनीतिक आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए तैयारी कर रहे थे। स्थिति निरन्तर बद से बदतर होती जा रही थी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अपने दो दिन पहले के बयान में कहा था  कि उनका देश डिप्लोमेसी के लिए हमेशा खुला रहता है, लेकिन अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हित उसकी प्राथमिकता हैं। इस बयान से युद्ध टलने व शांति बहाल होने के कुछ संकेत मिल रहे थे।
लेकिन लगता है, यह कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना वाला मामला था क्योंकि 24 फरवरी को भारतीय समय के मुताबिक सुबह 5 बजे रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया और यूक्रेन ने अपने यहां मार्शल लॉ लगा दिया। यूक्रेन ने ‘नोटिस टू एयर मिशन्स’ भी जारी कर दिया है, जिसका अर्थ है कि सभी नागरिक उड़ानें बंद कर दी गई हैं। भारतीय नागरिकों को लाने के लिए एयर इंडिया की एक फ्लाइट (ए11947) इस नोटिस के जारी होने से कुछ ही समय पहले नई दिल्ली से कीव के लिए उड़ी थी, जो वापस लौट आयी। इससे पहले एक फ्लाइट कुछ भारतीय नागरिकों व छात्रों को सुरक्षित वापस लायी थी। अब सवाल यह है कि इस युद्ध के दुनिया, विशेषकर भारत पर क्या प्रभाव पड़ेंगे? यह जानना जरूरी है।
रूस ने यूक्त्रेन के इन्फ्रास्टक्चर और उसके सीमा सुरक्षा बलों पर मिसाइल से हमले किये हैं। यूक्रेन के अनेक शहरों में धमाके सुनायी दिए हैं। राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के विरुद्ध सैन्य ऑपरेशन शुरू करने की घोषणा करते हुए अन्य देशों को चेतावनी दी है कि रूस के इस एक्शन में हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास का ‘परिणाम वह होगा जो पहले कभी देखा नहीं गया है’। पुतिन जब यह धमकी दे रहे थे, तभी कीव, खार्किव व यूक्रेन के अन्य क्षेत्रों में भयंकर विस्फोट सुनायी दिए। बाद में कीव में एयर साईरन बज उठे, यह संकेत देते हुए कि शहर पर हमला हो गया है। यूक्रेन के विदेश मंत्री ने कहा है कि उनका देश पुतिन के ‘आक्रमणकारी युद्ध’ से अपनी रक्षा करेगा और जीतेगा भी।
गौरतलब है कि रूस के हमले से कुछ ही घंटे पहले अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ  स्टेट एंटनी ब्लिंकेन ने कहा था कि ‘चंद घंटों में रूस यूक्रेन में घुस जायेगा। इससे पहले रूस ने कहा था कि अलगाववादियों ने क्रेमलिन से यूक्रेन की ‘आक्रामकता’ को रोकने के लिए मदद मांगी है। यूक्रेन से अलग हुए डोनेत्स्क व लुहांस्क में कई दिनों से बम धमाकों की आवाजें सुनने को मिल रही थीं । रूस-यूक्रेन सीमा पर रूस ने लगभग 1,90,000 सैनिक तैनात किये हुए थे जो कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी तैनाती थी। तनाव उस समय अधिक बढ़ गया  जब पुतिन ने दो अलगाववादी क्षेत्रों डोनेत्स्क व लुहांस्क को मान्यता प्रदान कर दी और वहां ‘पीसकीपर’ का नाम देकर अपनी सेना तैनात कर दी थी।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने वर्तमान स्थिति में अपनी अपील बदलते हुए पुतिन से आग्रह किया है कि वह ‘मानवता के लिए अपनी सेना वापस रूस बुला लें। इस टकराव को अभी रुकना चाहिए’। लेकिन लगता नहीं कि यह युद्ध जल्द रुकेगा। 
यूक्रेन में भू-राजनीतिक स्थिति के बिगड़ते ही कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास मंडराने लगी है। भारत में इसका प्रभाव आने वाले दिनों में शिद्दत से महसूस होगा। कागज पर 2017 से भारत पेट्रोल व डीजल की कीमत दैनिक आधार पर तय करता है। पांच राज्यो उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा व मणिपुर में विधानसभा के चुनाव घोषित होते ही तेल के दाम बढ़ने बंद हो गये थे। ज़ाहिर है सत्तारूढ़ दल अपना चुनावी गणित गड़बड़ाना नहीं चाहता था। बहरहाल, कई सप्ताह के स्थगन के बाद 7 मार्च को मतदान का अंतिम चरण सम्पन्न होते ही तेल व कुकिंग गैस के फुटकर दामों में वृद्धि होना लगभग तय है। जब तेल के दाम बढ़ेंगे तो जाहिर है, अन्य चीजें भी महंगी होंगी। पहले से ही महंगाई की मार झेल रही आम जनता के लिए यूक्रेन में युद्ध  के कारण और बुरे दिन आ सकते हैं। यह सब उस समय आशंकित है जब निजी खपत अभी तक पूर्व कोविड-19 महामारी स्तर पर नहीं लौटी है। इस अनुमानित दयनीय स्थिति से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि भारत सरकार तुरंत प्रभाव से तेल करों में कटौती करे ताकि कच्चे तेल के दामों में जो वृद्धि हुई है उसके प्रभाव को कम किया जा सके।
साल 2014-15 व 2020-21 की अवधि के बीच कच्चे तेल के दाम काफी कम रहे, 43 से 68 डॉलर प्रति बैरल के बीच। इस समय का उपयोग भारत सरकार ने तेल करों में इजाफा करने में व्यतीत किया और फलस्वरूप अधिकतर लाभ खुद ही उठाया। वित्तीय वर्ष-15 और वित्तीय वर्ष-21 के बीच पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी के तौरपर भारत सरकार ने 16.7 लाख करोड़ रुपये एकत्र किये। बढ़ी हुई एक्साइज ड्यूटी का अधिकतर हिस्सा केंद्र सरकार ने अपने पास रख लिया। भारत में जो 100 यात्री वाहन बिकते हैं, उनमें से लगभग 80 प्रवेश-स्तर के दो पहिया वाहन होते हैं जोकि पेट्रोल से चलते हैं। इसलिए तेल के महंगा होने से जनसंख्या के कमजोर वर्ग पर कुप्रभाव पड़ता है, जोकि पहले से ही तेल व खाद्यान के अतिरिक्त अन्य चीजों की महंगाई से परेशान है। तेल के दाम बढ़ते हैं तो मध्यम वर्ग के घरों को अपना बजट एडजस्ट करना पड़ता है, जिससे खपत क्षमता कमजोर हो जाती है और विकास-उन्मुखी बजट की महत्वपूर्ण बुनियाद ही बेकार हो जायेगी। तेल कर कम करने से भारतीय नागरिकों को कुछ तो राहत मिलेगी, वरन् तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जाता यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए ही कोविड महामारी से भयंकर मुसीबत लाने वाला है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर