गोल्डन त्रिमूर्ति की अधूरी प्रेम कथाएं

लगभग तीन दशक से बॉलीवुड के स्टारडम पर खान त्रिमूर्ति शाहरुख खान, सलमान खान व आमिर खान- राज कर रही है। लेकिन इस खान त्रिमूर्ति से पहले हिंदी सिनेमा पर एक अन्य त्रिमूर्ति राज करती थी,जिसका सम्मान, शुहरत व योगदान अतुलनीय रहा है, जो इतिहास पुस्तकों में सुनहरे अक्षरों से लिखा जायेगा, इसलिए दिलीप कुमार, राज कपूर व देवानंद की तिगड़ी को गोल्डन त्रिमूर्ति कहा जाता है।
इस त्रिमूर्ति के तीसरे व अंतिम कोण दिलीप कुमार का भी 7 जुलाई 2021 को निधन हो गया और वास्तव में एक यादगार युग पर पर्दा गिर गया। खान त्रिमूर्ति की तरह यह तीनों गोल्डन सुपरस्टार आपस में अंतिम नाम या समान आयु शेयर नहीं करते थे, लेकिन इनमें मुख्यत: तीन बातें समान थीं। एक, तीनों ही बराबर के प्रतिभाशाली व कामयाब थे। दो, तीनों की ही पंजाबी जड़ें थीं, दिलीप कुमार व राज कपूर का संबंध पेशावर से था और देवानंद का शंकरगढ़ से था। यह दोनों जगह अब पाकिस्तान में हैं। अंतिम व सबसे महत्वपूर्ण यह कि इन तीनों की प्रेम कथाएं अधूरी रहीं। तीनों ही अपने जमाने की मशहूर व सफ ल अभिनेत्रियों को दिल दे बैठे थे, फि र जीवनभर इश्क में टूटे दिल पर मलाल करते रहे। दिलीप कुमार मधुबाला के इश्क में घायल हुए, राज कपूर का नर्गिस से अफेयर था और देवानंद सुरैया के प्यार में गिरफ्तार थे। लेकिन इन तीनों का प्रेम ही इस बात का प्रमाण है कभी कभी हालात संबंधों व रोमांस को पटरी से उतार देते हैं।
दिलीप कुमार व मधुबाला की पहली मुलाकात ‘ज्वार भाटा’ (1944) के सेट पर हुई थी, लेकिन उनका रोमांस ‘तराना’ (1951) के सेट पर आरंभ हुआ। पर्दे पर दोनों की केमिस्ट्री जबरदस्त थी, जो ‘मुगल-ए-आजम’ व ‘संगदिल’ जैसी हिट फि ल्मों में स्पष्ट दिखायी देती है, लेकिन ऑफ-स्क्रीन भी उनका तूफ ानी रोमांस किसी से छुपा हुआ न था। मूवी प्रीमियर से लेकर पार्टियों व सार्वजनिक कार्यक्रमों में यह सितारे दो जिस्म एक जान की तरह इस हद तक दिखायी देते थे कि फि ल्मी दुनिया के अधिकतर लोग मानते थे कि बिना किसी औपचारिक घोषणा के दोनों ने शादी कर ली है। अपने परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी मधुबाला पर थी, उनके पिता अताउल्लाह खान ही उनके फ ाइनेंस व करियर का प्रबंधन करते थे और चाहते थे कि दिलीप कुमार उनके प्रोडक्शन हाउस में काम करें, जिसके लिए कुमार तैयार नहीं थे। इसलिए अताउल्लाह खान दिलीप कुमार व मधुबाला के प्रेम के विरोधी हो गये और उन्होंने अपनी बेटी को ‘नया दौर’ (1957) की शूटिंग के लिए भोपाल नहीं जाने दिया क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि मधुबाला दिलीप कुमार के साथ अकेली रहे।
बीआर चोपड़ा ने इस फि ल्म में मधुबाला की जगह वैजयंतीमाला को ले लिया और मधुबाला ने जो एडवांस 30,000 रूपये लिए थे उसे वापस लेने के लिए अताउल्लाह खान पर मुकदमा कायम कर दिया। सुनवायी के दौरान दिलीप कुमार ने चोपड़ा के पक्ष में गवाही दी, जो जाहिर मधुबाला के पिता के विरोध में गई, जिससे वह नाराज हो गईं। एक पिता के लालच व एक मुकदमे ने एक प्रेम का इस हद तक अंत कर दिया कि ‘मुगल-ए-आजम’ के सेट पर दिलीप कुमार व मधुबाला एक दूसरे से बोलते तक नहीं थे जबकि फि ल्म में उन्हें ऐसे एक्टिंग करनी होती थी जैसे आपस में प्रेम में पागल हों। देवानंद व सुरैया की मुलाकात ‘विद्या’ (1948) के सेट पर हुई थी और दोनों ने साथ में 7 फि ल्में कीं। देवानंद को तो गायिका-अभिनेत्री सुरैया की सादगी से पहली नजर में ही प्यार हो गया था, लेकिन सुरैया देवानंद के प्रति अपने प्यार का एहसास करने के फि ल्मी पल चाहिए था।  वह पल आया ‘किनारे किनारे चले जायेंगे’ गीत की शूटिंग करते हुए जब पानी में नाव उलट गई तो देवानंद ने सुरैया को डूबने से बचाया। सुरैया बोलीं, अगर आज तुमने मेरी जान नहीं बचायी होती तो मैं तो मर ही गई होती।  इस पर देवानंद ने जवाब दिया, तुम्हारे जीवन के साथ मेरी भी जिंदगी खत्म हो जाती। इस तरह  दोनों का प्रेम आरंभ हो गया।
लेकिन जल्द ही अंधी धार्मिकता दोनों के प्रेम के बीच आ गई। दोनों ने ‘जीत’ (1949) के सेट से भागकर शादी करने की योजना बनायी। लेकिन भाग्य की कुछ अलग ही योजना थी। सुरैया की नानी बादशाह बेगम को भनक लग गई और वह सुरैया को पकड़कर घर ले गईं। फि र भी दोनों छुप छुपकर सुरैया के टेरेस पर मिलने लगे। यह राज भी खुल गया और ‘दो सितारे’ (1951) के बाद सुरैया को देवानंद के साथ काम करने से मना कर दिया गया। देवानंद के लिए सिर्फ  प्यार ही एकमात्र धर्म था, लेकिन वह सुरैया की ‘बुजदिली’ से बहुत आहत हुए थे। दिल तो सुरैया का भी टूटा था, वह जीवनभर अविवाहित रहीं, लेकिन वह खुद को ‘बुजदिल’ मानने के लिए तैयार नहीं थीं, क्योंकि उनका मानना था कि अगर वह साहस दिखातीं तो उनकी नानी उन दोनों के साथ कुछ भी करा सकती थीं।
राज कपूर व नर्गिस के रोमांस पर तो पहले दिन से ही ‘दुखद अंत’ लिखा हुआ था। ‘अंदाज’ (1948) के सेट पर पहली नजर में ही नर्गिस को दिल दे बैठने वाले राज कपूर पहले से ही विवाहित व पांच बच्चों के पिता थे। इसके बावजूद नर्गिस उनसे विवाह करने के लिए तैयार थीं। राज कपूर ने अपने बीवी बच्चों को छोड़ने से इंकार कर दिया, जिसके बाद 1950 के दशक के मध्य में नौ वर्ष के व्यक्तिगत व प्रोफेशनल साथ के बाद वे अलग हो गये और फि र साथ काम नहीं किया। अलग-अलग रास्ता अपनाने से दोनों ही टूट गये थे। नर्गिस डिप्रेशन में चली गईं और उन्होंने जीने की इच्छा छोड़ दी और अगर सुनील दत्त उनके जीवन में न आते तो शायद वह आत्महत्या कर लेतीं। नर्गिस ने 1958 में सुनील दत्त से शादी कर ली। राज कपूर को यह धोखा महसूस हुआ और वह हर रात शराब पीकर घर लौटते और रोते हुए बाथटब में समा जाते। सच प्रेम की डगर बहुत कठिन होती है, उनके लिए भी जो सफ ल व अपने प्रशंसकों के दिल पर राज करते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर