लड़कियों को बनाएं सूझवान व परिपक्व

एक महिला को अपने जन्म से लेकर अपनी अंतिम सांस तक अनेकों चुनौतीपूर्ण पड़ावों में से गुज़रना पड़ता है। अनेकों ही कठिन परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है। उसे ज़िन्दगी के विभिन्न पड़ावों में कई कठिन ज़िम्मेदारियों को भी निभाना पड़ता है। इस दौरान उसे असंख्यक शारीरिक, मानसिक, वित्तीय और भावनात्मक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जिसके लिए उसका शारीरिक तौर पर स्वस्थ, शैक्षणिक रूप से योग्य और दिमागी तौर पर परिपक्व होना बेहद ज़रूरी होता है।
एक लड़की के माता-पिता उसकी शादी करने के बाद बोझ कम हुआ समझते हैं लेकिन लड़की पर ज़िम्मेदारियों का बोझ लगातार बढ़ता जाता है। ससुराल में नए बने रिश्तों की ज़िम्मेदारियों को निभाने से लड़की की लगातार शारीरिक और मानसिक परख होती रहती है। यह परीक्षा और भी गहरी हो जाती है जब वह लड़की गर्भवती होती है। यह समय उसकी ज़िन्दगी का महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है जब उसका शारीरिक तौर पर स्वस्थ और भावनात्मक तौर पर मजबूत होना बेहद ज़रूरी होता है। ऐसे समय लड़की को पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के साथ-साथ अपने शरीर का ध्यान भी रखना होता है ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे की भोजन संबंधी ज़रूरतें पूरी की जाए। शैक्षणिक तौर पर परिपक्व लड़की उपरोक्त बातों का ध्यान रखती हुई परिवार को होने वाले लड़के या लड़की के बीच भेदभाव वाले व्यवहार को दूर करने के लिए समझा भी सकती है।
लड़की के जीवन का अगला पड़ाव एक बच्चे की मां के रूप में होता है, जिसमें एक शैक्षणिक तौर पर योग्य लड़की अपनी संतान का अच्छे ढंग से पालन-पोषण करके उसकी पढ़ाई-लिखाई में सहायक हो सकती है और बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती है।
कई बार परिवार को वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ा है। ऐसे हालातों में एक शिक्षित लड़की रोज़गार प्राप्त करके परिवार को कठिन परिस्थिति से बाहर निकालने में सहायक हो सकती है। सो, बाकी रही बात यह कि आधुनिक समय में लड़का-लड़की के बीच भेदभाव को छोड़ कर लड़कियों का पालन-पोषण लड़कियों की तरह ही किया जाए और उन्हें शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाने के साथ-साथ शैक्षणिक तौर पर योग्य और भावनात्मक तौर पर मजबूत बनाया जाए ताकि वह ज़िन्दगी की सभी मुश्किलों को पार करती हुई संसार, समाज और देश  के विकास में अहम योगदान डाल सके।