़खतरे में है सिखों का अल्प-संख्यक का दर्जा

दामन की फिक्र है
न ़गरेबां की फिक्र है।
अहले वतन को 
फितना-ए-दौरां की ़िफक्र है। 
सिख इस देश के तीसरे सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं तथा अल्पसंख्यक होने के नाते उसके कुछ अधिकार भी हैं। वास्तव में भारत में यह अधिकार अल्पसंख्यकों को उनके  समान विकास के आवश्यक समझते हुए शैक्षणिक तथा कुछ अन्य मामलों में दिये गये हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 79.80 प्रतिशत हिन्दू आबादी है, जबकि मुसलमान  14.2 फीसदी, इसाई 2.3 फीसदी, सिख 1.7 फीसदी, बोधी 0.7 फीसदी तथा जैनी 0.4 फीसदी हैं। जब भी भाजपा केन्द्र में सत्ता में आई है, उसके नेता प्रत्येक विषय को शायद हिन्दुओं के नुक्ता निगाह से ही देखते हैं। अब एक भाजपा नेता तथा वकील अश्वनी उपाध्याय ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग कानून 2004 की धारा 2 (एफ) को चुनौती दे दी है। यह धारा केन्द्र सरकार को अल्पसंख्यकों की पहचान तथा उन्हें दर्जा देने का अधिकार देती है। अब तक देश में अल्पसंख्यकों का दर्जा देश स्तर पर ही तय होता है, परन्तु इस भाजपा नेता तथा वकील ने मांग की है कि यह दर्जा राज्य स्तर पर तय हो. क्योंकि देश के लगभग 10 राज्यों में राज्य स्तर पर हिन्दू अल्पसंख्या में हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दू, यहूदी तथा बहाई लद्दाख, मिज़ोरम, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचर प्रदेश, पंजाब तथा मणिपुर आदि में अल्पसंख्या में हैं तथा उन लोगों को अल्पसंख्यकों की तरह अपने शैक्षणिक संस्थान चलाने के अधिकार नहीं हैं। 
केन्द्र की भाजपा सरकार की ओर से इस याचिका का जवाब जो एक हल्फिया बयान के रूप में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है, इस मांग को प्रोत्साहन देने वाला है। केन्द्र सरकार ने कहा है कि राज्यों में अल्पसंख्यक समुदाय अपने शैक्षणिक संस्थान खोल सकते हैं तथा चला सकते हैं। इस बारे फैसला राज्य ले सकते हैं परन्तु साथ ही केन्द्र ने यह भी कह दिया है कि अल्पसंख्यकों के मामले पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्यों को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इससे संविधान तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लघंन होगा। 
उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने 1993 में मुसलमानों, सिखों, इसाईयों, पारसियों तथा बोधियों को अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया था। फिर 2014 में जैन समुदाय को भी धार्मिक अल्पसंख्यक मान लिया गया था। 
ऊपर की नज़र से देखते हुए यह मांग शायद उचित दिखाई देती हो, परन्तु वास्तव में देश स्तर पर अल्पसंख्यकों को, विशेषकर सिखों को पंजाब में जो थोड़ी-बहुत शैक्षणिक सुविधा मिली हुई है, ऐसा होने पर समाप्त हो जाएगी। हालांकि सिख पहचान तो पहले ही खतरे में है। 
अब तो हद ही हो गई कि असम, जहां भाजपा का ही शासन है तथा हिन्दू स्पष्ट रूप में 61.47 प्रतिशत आबादी से बहुसंख्या में हैं, के मुख्यमंत्री हिंमाता बिसवा शर्मा ने बयान दिया है कि असम के जिन 9 ज़िलों में हिन्दू अल्पसंख्या में हैं, उनकी सरकार कोशिश करेगी कि इन ज़िलों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों का दर्जा तथा सुविधाएं दी जाएं। 
हैरानी की बात है कि  ‘एक देश-एक कानून’ की बात करने वाली भाजपा सिर्फ हिन्दुओं को लाभ पहुंचाने के नाम पर तथा बहुसंख्यक का ध्रुवीकरण करने के लिए एक देश से एक राज्य तक ही नहीं, एक ज़िले तक भी अल्पसंख्या तथा बहुसंख्या की बात करने लगी है तथा धार्मिक विभाजन बढ़ाने में लगी हुई है। ऐसी स्थिति में सिख नेतृत्व गहरी नींद सो रहा है। अभी कल ही शिरोमणि कमेटी का बजट अधिवेशन हुआ है परन्तु वहां इस मुद्दे बारे ज़िक्र तक नहीं हुआ। 
पंजाब के किसानों के लिए अवसर
हालांकि कोई युद्ध कभी भी किसी के लिए भी अच्छा समाचार नहीं होता। युद्ध मानवता का दुश्मन है परन्तु फिर भी प्रत्येक घटना के प्रतिक्रम के रूप में भिन्न-भिन्न प्रभाव देखने को मिलते हैं। यूके्रन-रूस युद्ध के कारण विश्व भर में गेहूं का संकट उत्पन्न हो रहा है। गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस बार 2015 रुपये है, परन्तु हरियाणा से मिले समाचारों के अनुसार गत वर्ष की गेहूं इस समय 2200 से 2300 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है। इसलिए यदि पंजाब के किसान इस बार मंडी में गेहूं लाने में अधिक जल्दबाज़ी न करें तथा अपनी समर्था के अनुसार कुछ गेहूं अपने गोदामों में रखने में सक्षम हों तो वह अंतर्राष्ट्रीय मंडी में गेहूं की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए इस बार अपनी गेहूं सरकारी कीमत से महंगे भाव पर बेचने में सक्षम हो सकते हैं, क्योंकि इस बार अंतर्राष्ट्रीय मंडी में भारतीय गेहूं की मांग बढ़ने के आसार दिखाई दे रहे हैं। 
खच्चर, घोड़े, हाथी ते गधे?
ये भी जानवर सारे, 
वो भी जानवर सारे,
जाने कैसी बस्ती है,
आदमी से डरता है।
इस तरह प्रतीत होता है कि कांग्रेस हाईकमान ने देश भर में हुई इतनी बड़ी हार से भी कोई सबक नहीं सीखा। पंजाब में तो बिल्कुल ही नहीं। पंजाब में कांग्रेस छिन्न-भिन्न हुई पड़ी है। पंजाब कांग्रेस के अधिकतर नेता दूसरों को घटिया नस्ल के जानवर बता रहे हैं तथा स्वयं को अच्छी नस्ल के जानवर घोषित करके पार्टी की बागडोर संभालने हेतु उताबले हैं। कोई कहता है मैं तो अरबी घोड़ा हूं और दूसरा खच्चर है। पंजाब कांग्रेस का नेतृत्व खच्चरों को नहीं देना चाहिए। दूसरा नेता कहता है कि वह तो गधे हैं, गधों के हाथ बागडोर न पकड़ाएं। तीसरा अपने-आप को हाथी बता रहा है परन्तु कांग्रेस हाईकमान बेबस प्रतीत होती है तथा कोई निर्णय लेने में समर्थ दिखाई नहीं दे रही। लोगों ने अभी भी कांग्रेस को पंजाब में विपक्ष के रूप में विचरण करने का ़फतवा दिया है परन्तु यदि अब भी पंजाब कांग्रेस इसी तरह की ‘सर्कस’ ही करती रही तो पूरा दोष ‘रिंग-मास्टर’ अर्थात् कांग्रेस हाईकमान के सिर ही आएगा तथा पंजाब में कांग्रेस और भी रसातल में जा गिरेगी। 
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