रिश्तों में शून्य हो रहा है ‘अपनापन’

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज का अस्तित्व उसके आपसी मेल-मिलाप पर निर्भर करता है। अपनी सांझ, सहयोग और मिलने की भावना से ही एक स्वस्थ समाज का सृजन किया जा सकता है, लेकिन आज के मनुष्य के नैतिक मूल्यों में प्रतिदिन गिरावट आ रही है। एक समय ऐसा था जब हर कोई रिश्तेदारों की कद्र करता था, एक-दूसरे के साथ प्यार करना और सम्मान करना अपना कर्त्तव्य समझते थे, आज हर कोई अपने स्वार्थ के लिए एक-दूसरे साथ जुड़ा हुआ है।
हम भली-भांति जानते हैं कि आज हम एक पूंजीवादी, पदार्थवादी युग में विचर रहे हैं। पैसों की अंधी दौड़ में शामिल होकर हम नैतिक मूल्यों और अनमोल रिश्तों से मुंह मोड़ बैठे हैं। रिश्तों में प्यार, अपनापन, मेल-मिलाप, हमदर्दी, सम्मान जैसे पंख लगाकर उड़ गए हैं। एक मनुष्य चाहे कितना ही प्रतिभावान क्यों न हो, वह अकेला कुछ नहीं कर सकता। इस समाज में विचरते ही वह सबके साथ सांझ डालकर ही अपने परिवार, दोस्तों-मित्रों, अपने सहपाठियों, आस-पड़ोस के लिए बहुत कुछ हासिल कर सकता है।
आज के मॉडर्न समाज में बच्चों का वास्ता नई टैक्नोलॉजी के साथ बन रहा है। एक छत के नीचे रहकर भी पराए जैसा व्यवहार कर रहे हैं। घर में रह रहे बाकी पारिवारिक सदस्यों के साथ विशेष तौर पर बुजुर्गों के साथ उनका कोई लेना-देना नहीं है। टैक्नोलॉजी इस प्रकार हावी हो गई है कि वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहना पसंद करते हैं। बच्चों, परिवार, आस-पड़ोस, कार्यस्थल आदि स्थानों पर निजीवाद सोच हावी और अपनेपन की भावना बुरी तरह प्रभावित हो रही है। पुराने समय में मनुष्य अपने काम से खाली होकर अपने साथियों के साथ पेड़ों की छांव में बैठकर अपने सुख-दुख सांझा करता था। बाद में पार्क का रुझान बढ़ा और आजकल इसकी जगह अनेकों चल रहे चैनलों ने ले ली है। बच्चे भी अपनी खेलें भूलकर अधिक समय इंटरनैट पर व्यतीत करने को अधिक प्राथमिकता देते हैं। मनुष्य मानसिक तौर पर अकेला रह गया है। वह कई तरह की मानसिक बीमारियों से प्रभावित हो रहा है। अगर घर में या आस-पड़ोस में कोई बीमार या दुर्घटना हो जाए तो कोई भी एक-दूसरे का हालचाल पूछ कर राजी नहीं। अपनापन, हमदर्दी की भावना बुरी तरह चकनाचूर हो रही है। चाहे पैसों से मनुष्य ऐशो-आराम की सब चीज़ें खरीद सकता है, लेकिन मानसिक शांति और खुशियों को नहीं खरीद सकता। पैसों का अहंकार इस प्रकार प्रभावित कर रहा है कि अपने सगे रिश्तेदार भी परायों की तरह व्यवहार करने लग गए हैं।
आज के मनुष्य को चाहिए कि वह स्वार्थ की भावना त्याग कर अहंकार छोड़कर, ईर्ष्या से दूर रह कर और समय निकाल कर आपसी मेल-मिलाप को बढ़ाएं। सामाजिक रिश्तों का महत्त्व, दूसरों का सम्मान, मेल-मिलाप, सहनशीलता, भाईचारक सांझ जैसे गुणों को अपना कर समाज और मनुष्य के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।