बच्चें का ननिहाल  के प्रति कम होता मोह

अब कोई नहीं कहता, ‘नानके जावांगे, मोटे हो के आवांगे’। यह कहावत अब बहुत पुरानी-सी लगती है। कोई समय था जब बच्चे बहुत बेसब्री से गर्मियों की छुट्टियों का इंतजार करते थे। उन्हें पता होता था कि उनके सभी चाव तो ननिहाल  जाकर ही पूरे होंगे। दूसरी ओर मां भी सारा वर्ष इसी उम्मीद में काट लेती है कि छुट्टियों में बेटी बच्चों को ननिहाल  लेकर आएगी। बच्चे भी रोज़ाना दिन गिनते हैं कि कितने दिन रह गए हैं। वह भी जानते हैं कि सारी ख्वाहिशें और जिद्द वहीं जाकर ही पूरी होगी। उनके लिए ननिहाल  गिफ्ट सैंटर से कम नहीं होता था। जिस चीज़ पर हाथ रखो वहीं मिल जाती थी। नानी भी उनके लिए वर्ष भर चीज़ें जोड़ती रहती थी। नाना भी देख-देख कर खुश होता था जब बच्चे अपनी चीज़ों को छुपा कर रखते थे। यह वह जगह होती है जहां न कोई रोट-टोक, हर तरह का मनपसंद खाना, मौज-मस्ती, घूमने-फिरने के साथ-साथ वर्ष भर के सभी वायदे पूरे किये जाते थे।
छुट्टियों में बेटियों को भी मायके जाने का बहुत उत्साह होता था। यही वह स्थान होता है जहां जाकर वह अपनापन महसूस करती। पुरानी यादों को बच्चों के साथ सांझा करती है। गली-मोहल्ले और पुराने लोगों से मिलकर तरोताज़ा हो जाती है। वर्ष भर के दुख-सुख का पिटारा भी वह मां के साथ खोलती और दिला हल्का करती है। बच्चे वहां जाकर मामा-मामी के करीबी हो जाते हैं।
लेकिन बहुत चिन्ताजनक बात है कि अब बच्चों का अपने ननिहाल के प्रति प्यार कम हो रहा है। नाना-नानी जो वर्ष भर उनके आने का इंतजार करते रहते थे वहां जाना पसंद नहीं करते। उन्हें ननिहाल बोर लगते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण सोशल मीडिया है, कहने को तो यह सोशल है लेकिन इसका प्रयोग सभी को अकेला कर देता है। स्मार्ट फोन ने हर बच्चे को अकेला कर दिया है। वह उसी के साथ ही पूरा दिन बिताने में आनंद महसूस करते हैं। कहीं जाना उन्हें बोझ लगता है। किसी का घर आना भी उन्हें पसंद नहीं। वह स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। आज के युग में व्हाट्सएप, फेसबुक और इंटरनेट आदि ही उनके मित्र और रिश्तेदार हैं। इनकी उपस्थिति में ननिहाल का महत्त्व कमज़ोर पड़ गया है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे रिश्ते बेबस हो गए हैं।
घर में हर तरह की सुविधाएं होने के कारण बेटियां मायके और बच्चे ननिहाल जाने से जी चुराते हैं। आधुनिक तकनीकों ने भी लोगों को बहुत नज़दीक कर दिया है। फोन और वीडियो कॉल करके एक-दूसरे से पल-पल की खबर लेते  रहते हैं। लेकिन नानी-नाना तो आज भी छुट्टियों में 


अपने नाती-नातिन का इंतजार करते रहते हैं। बेशक आप अधिक दिनों तक छुट्टियों में ननिहाल न जाएं लेकिन उनके इंतजार को उदासी में बदलने न दें। अपनी सुविधा के अनुसार दो-चार दिनों के लिए ननिहाल के आंगन की रौनक ज़रूर बनें। वहां जाकर स्मार्ट फोन पर मस्त रहने के बजाय नानी-नाना के पास आशीर्वाद के साथ-साथ उनके अनुभवों से सीख लें और उनका लाभ उठाएं। समम-समय पर उनके साथ सम्पर्क करते रहें और आशीर्वाद लेते रहें। भगवान करे ननिहाल का महत्त्व हमेशा बना रहे।