फसली विभिन्नता में अमरूद की काश्त

कृषि में फसली-विभिन्नता लाना समय की मुख्य मांग है। बागवानी फसलें इसमें अहम भूमिका निभा सकती हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी बगीची या बाग में तथा प्रत्येक किसान अपने खेत में ट्यूबवैल या रास्तों पर फलों के पौधे लगाना चाहता है, परन्तु अक्सर ये पौधे चलते नहीं और पकने से पहले ही फल खराब होकर गिर जाते हैं, जिससे उत्पादकों में निराशा पैदा हो जाती है। नये बाग लगाने के बाद कई वर्ष इन्तज़ार करने पर भी उत्पादकों को लाभ नहीं होता। इसका कारण शुद्ध तथा बीमारी रहित पौधों का न मिलना है। बागबानी विभाग तथा पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी (पीएयू) की नर्सरियां पौधों की मांग को पूरा नहीं कर सकतीं। आम लोगों को निजी प्रमाणित नर्सिरियों संबंधी कोई विशेष जानकारी नहीं। वे आम व्यापारिक नर्सरियों या फेरी वालों से पैधे ले लेते हैं जो चलते नहीं। 
आजकल सदाबहार फलदार पौधे जैसे अमरूद, नींबू जाति, आम, लीची, लोकाठ, पपीता आदि लगाने के लिए उचित समय है। यह अगस्त-सितम्बर तक लगाए जाते हैं। सदाबहार फलों में पंजाब में अधिकतर अमरूद की काश्त की जाती है। लगभग 9495 हज़ार हैक्टेयर रकबे पर फलों की काश्त होती है, जिसमें से 11 प्रतिशत रकबे पर अमरूद लगाए हुए हैं। अमरूद की काश्त अधीन रकबे में गत कुछ वर्षों के दौरान काफी वृद्धि हुई है। और रकबा बढ़ाने की भी काफी गुंजाइश है। अमरूद एक मात्र फल है, जो वर्ष में दो बार फल देता है। इसकी उत्पादकता भी काफी अधिक है। दूसरे फलों के मुकाबले अमरूद के बागों की देखभाल तथा संभाल आसान है, परन्तु बरसात के मौसम में फल की मक्खी का हमला हो जाता है, जिससे फल खाने के काबिल नहीं रहते। फल की मक्खी नरमे में चिट्टी मक्खी की भांति अमरूदों के बागों को बड़ा नुकसान पहुंचाती है। यह मक्खी नरम छिलके पर अंडे देती है। अंडों में से बच्चे निकलने के बाद ये फलों में छेद करके भीतर चले जाते हैं तथा नरम गुद्दा खाते हैं। फल बदरंग हो जाता है। जब फल को काटते हैं तो कीड़े की सुंडियां फल के भीतर नज़र आती हैं। फल पेड़ों से गल कर नीचे गिर जाता है। बीमारी का शिकार हुए फलों को ज़मीन में गहरा खड्डा खोद कर दबा देना चाहिए ताकि मक्खियों की वृद्धि रुक जाए। 
बरसात के मौसम में पौधों पर फलों को अधिक पकने नहीं देना चाहिए और फल तैयार होते ही इसे तोड़ लेना चाहिए। ऐसा करने से शीत ऋतु में फलों की क्वालिटी बेहतर बनेगी। फलों की मक्खी की रोकथान के लिए पीएयू द्वारा तैयार की गई ‘पीएयू फ्रूट फ्लाई ट्रैप’ पेड़ को लगा देनी चाहिए। एकड़ में 16 ट्रैप लगाने आवश्यक हैं। ट्रैप को 1.5 मीटर की ऊंचाई पर लगाना चाहिए । फलों को पूरे तोड़े जाने तक यह ट्रैप लगे रहें। बागबानी विशेषज्ञों द्वारा तो यह सिफारिश की गई है कि अमरूद की फसल सिर्फ शीत ऋतु में ही ली जाए। टहनियों के 20 से 30 सैंटीमीटर ऊपर के सिरों को अप्रैल के अंतिम सप्ताह में काट देना चाहिए। कीड़े रहित बढ़िया फल लेने के लिए बरसात में अकेले-अकेले फल पर नानवूवन लिफाफे चढ़ा देने चाहिएं। लिफाफे चढ़ाए हुए फलों को मक्खी खराब नहीं कर सकेगी और फल का आकार भी बढ़िया बनेगा। फल वाले लिफाफे में बरसात का पानी जमा नहीं होना चाहिए। विशेषज्ञों की शिफारिश के अनुसार जून में खाद डालनी चाहिए ताकि जुलाई-अगस्त में पौधे का विकास हो और इससे सितम्बर माह में सर्दियों की फसल के लिए अधिक फूल पड़ें। विशेषज्ञों के अनुसार पौधों का आकार छोटा रखना चाहिए और उनकी मार्च में कटिंग कर देनी चाहिए।
पीएयू से सम्मानित फलों के प्रगतिशील उत्पादक बलबीर सिंह जड़िया (धर्मकोट) कहते हैं कि फल को गिलहरियों से बचाने के लिए पिंजरे इस्तेमाल करने चाहिएं, जिनमें गिलहरियों को पकड़ने के बाद दूर जंगलों में छोड़ आना चाहिए। वह कहते हैं कि प्राकृतिक तौर पर पता होता है कि कौन-से फल में अधिक पौष्टिक तत्व होते हैं, तभी बरसात ऋतु में फल की मक्खी सबसे अधिक अमरूद फल पर हमला करती है। कृषि विशेषज्ञों ने बी अमरूद में सेब से अधिक पौष्टिक तत्व होने की पुष्टि की है। 
नये बाग लगाने तथा घरेलू बगीचियों में फल लगाने के लिए पीएयू द्वारा अमरूद की पंजाब सफैदा, पंजाब किरण, पंजाब एप्पल, सरदार, इलाहाबाद सफैदा तथा पंजाब पिंक आदि किस्मों की सिफारिश की गई है। पीएयू के क्षेत्रीय फल अनुसंधान केन्द्र बहादुरगढ़ (पटियाला) में अमरूद की प्रोसैसिंग वाली किस्में भी उपलब्ध की जा रही हैं। बागबानी विभाग द्वारा पटियाला-संगरूर तथा वजीदपुर में अमरूद एस्टेट स्थापित की गई है, जहां उत्पादकों को भिन्न-भिन्न किस्मों के पौधे तथा अमरूद की काश्त बारे तकनीकी जानकारी दी जाती है। अमरूद फल पर पटियाला ज़िले में उपरोक्त दोनों स्थानों पर अनुसंधान भी किया जा रहा है। बागबानी विभाग द्वारा राष्ट्रीय बागबानी मिशन की योजना अधीन नये बाग लगाने के लिए 40 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। 
फलों की काश्त अधीन रकबा बढ़ने तथा फसली-विभिन्नता में इसकी अहम भूमिका होने से व्यापारिक नर्सरियों की स्थापना का भी बड़ा स्कोप हो गया है। व्यापक नर्सरी स्वरोज़गार तथा बेरोज़गारी पढ़े-लिखे नौजवानों के लिए लाभदायक व्यवसाय है। इसके लिए केन्द्र की योजनाओं के अनुसार राष्ट्रीकृत बैंकों से ऋण भी मिल जाते हैं। आईसीएआर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के बागबानी विशेषज्ञों के अनुसार एक नर्सरी 75000 से 3.5 लाख रुपये वार्षिक तक कमाई करके रोज़गार का साधन बन सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नर्सरियों की व्यापक तौर पर स्थापना करने के लिए प्रशिक्षण एवं सलाहकार सेवाएं उपलब्ध करता है।