गोबिन्द सागर त्रासदी की पीड़ा


हिमाचल प्रदेश के ज़िला ऊना के निकट स्थित गोबिन्द सागर झील में पंजाब प्रदेश के कस्बा बनूड़ के सात युवाओं के डूब कर मारे जाने की घटना ने एक ओर जहां दोनों प्रदेशों के लोगों को स्तब्ध करके रख दिया है, वहीं इस घटना ने इस प्रकार की प्राकृतिक अथवा मानव-जनित आपदा घटनाओं के प्रति सार्वजनिक सतर्कता और जागरूकता की आवश्यकता को भी और बढ़ाया है। उत्तर भारतीय समाज के लिए अधिकतर धर्म-स्थल हिमाचल की धरा पर स्थित होने तथा इसके पहाड़ी राज्य होने के कारण बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंजाब, हरियाणा और अन्य प्रांतों से इस ओर आते रहते हैं। इसी कारण इस प्रकार की घटनाएं भी अक्सर होती रहती हैं। हिमाचल से उतरते पानी और खास कर वर्षा के मौसम में नदी-नालों में उफनती बाढ़ के दिनों में इस प्रकार डूबने अथवा मंदिरों आदि धार्मिक स्थलों में भारी भीड़ के कारण भगदड़ मचने से लोगों के मारे जाने की घटनाएं अधिक होने लगती हैं। धर्म-स्थलों और आस्था केन्द्रों पर अचानक हुई आगज़नी की घटनाओं जैसी त्रासदियां भी प्राय: घटित होती हैं। कुछ वर्ष पूर्व मंदिर नैना देवी में मची भगदड़ में दर्जनों लोगों के हताहत हो जाने की घटना भुलाये भी कभी नहीं भूलती है। गोबिन्द सागर झील की घटना इसलिए भी अधिक त्रासद हो गुज़रती है कि सात मृतकों में से दो सगे भाइयों सहित चार सदस्य एक ही परिवार के हैं, और कि सभी युवा थे।
प्राय: होता यह है कि जब भी इस प्रकार की कोई बड़ी त्रासदी व्याप्त होती है, तो समाज, सरकार और अन्य कई सम्बद्ध वर्गों में बड़ी हाय-तौबा मचती है। घटना को लेकर बयानबाज़ी और घोषणाएं भी बहुतेरी होती हैं, परन्तु समय के व्यतीत होते जाते अन्तराल के बाद ये सब ‘पर-उपदेश बहुतेरे’ जैसा कथन बन कर रह जाती हैं। देश और दुनिया में आज ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र इतना विकसित और विस्तृत हो चुके हैं, कि इस प्रकार की कोई घटना अथवा आपदा घटित ही नहीं होनी चाहिए, अथवा हो भी जाए, तो इतने बड़े नुकसान की आशंका को पहले पायदान पर ही रोक लिये जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन मौजूदा दुर्घटना में स्थानीय प्रशासन की सुस्ती एवं उदासीनता साफ-साफ नज़र आती है। बेशक श्रद्धा और आस्था के धरातल पर श्रद्धालुओं की लापरवाही भी उभर कर सामने आती है, परन्तु यहां भी दोष सीधे-सीधे प्रशासन पर ही आयद होता है।
भारत का जन-साधारण अधिकतर धर्म-भीरू है। पंजाब और हिमाचल की धरती उत्सवों की भूमि है। मंदिरों और पर्व-स्नान स्थलों पर अक्सर ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं, अत: सरकारी प्रशासनों की ओर से ऐसे केन्द्रों पर सुरक्षा-उपायों और अग्रिम चेतावनियों संबंधी सूचनाएं महत्त्वपूर्ण स्थलों पर आयद किये जाने की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। उत्साह एवं आस्था के अन्तर्गत श्रद्धालु ़खतरे की आशंकाओं के बावजूद भीड़-चाल हो जाते हैं। इन आस्था केन्द्रों में अथाह धन-राशि चढ़ावे में चढ़ती है। सरकारों को भी श्रद्धालुओं अथवा सैलानियों से भारी राजस्व प्राप्त होता है, परन्तु प्राय: इसी के अनुरूप अथवा आवश्यकतानुसार न तो सुविधाएं दी जाती हैं, न समुचित सुरक्षा उपाय किये जाते हैं। हम समझते हैं कि ऐसे सभी नाज़ुक स्थलों पर स्थानीय सुरक्षा हेतु पर्याप्त प्रहरी तैनात होने चाहिएं। आस्था केन्द्रों में समुचित बचाव तंत्र विकसित किया जाए चाहिए जो स्थायी रूप से तैनात रहे। वर्तमान घटना के समय भी, बाद दोपहर 3.30 बजे घटी घटना के सवा घंटे बाद बचाव दल ने सिर्फ कोशिशें ही शुरू कीं जबकि गोबिन्द सागर के गोताखोर पौने 6 बजे पहुंचे।
हम समझते हैं कि इस प्रकार के सार्वजनिक पर्यटन स्नान  केन्द्रों, आस्था स्थलों तथा मंदिरों आदि की वर्तमान वस्तु- स्थिति को जान कर समुचित सुरक्षा उपाय किये जाने चाहिएं। खास तौर पर मेला-पर्व अवसरों अथवा वर्षा ऋतु में प्रशासन की ओर से निरन्तर पहरेदारी और सतर्कता प्रबन्धों का होना  बहुत ज़रूरी है। हम यह भी समझते हैं कि सरकारें, प्रशासन तथा जन-साधारण यदि इतने बड़े दुखांत के बाद भी कोई शिक्षा ग्रहण नहीं करते तो इससे भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं को रोकना मुश्किल होगा। यहां हम यह भी सुझाव देना चाहते हैं कि बच्चों को स्कूलों के स्तर पर ही पानी, आग तथा भूकम्प आदि से बचाव के तरीके अवश्य सिखाये जाने चाहिएं। इस तरह के यत्नों से ही ऐसी दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है।